इटारसी। हिंदू धर्म में सभी व्रत त्योहार किसी ना किसी भगवान को समर्पित होते हैं। इस दिन उनकी पूजा की जाती है। इसी प्रकार से महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का व्रत भी शिवजी और माता पार्वती को समर्पित होता है। महाशिवरात्रि के दिन उन्हीं की पूजा भी की जाती है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी (Phalgun Krishna Chaturdashi) में यह महाशिवरात्रि का व्रत होता है। इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 11 मार्च यानि गुरुवार को है। शिवरात्रि में धर्म एवं नियम पूर्वक शिव पूजन एवं उपवास करने से भक्तों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती विवाह संपन्न हुआ था। इस दिन सभी लोग व्रत करके शिवजी की आराधना करते हैं। आइए जानते शिवरात्रि के व्रत और पूजन विधि के बारे में…
महाशिवरात्रि व्रत शुभ मुहूर्त-
निशीथ काल पूजा मुहूर्त – रात्रि 12:06:41 से रात्रि 12:55:14 तक।
अवधि:0 घंटे 48 मिनट।
महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त – सुबह 06:36:06 से दोपहर 15:04:32 तक।
महाशिवरात्रि व्रत पूजा विधि-
आचार्य पंडित विकास शर्मा के अनुसार मिट्टी या तांबे के लोटे में पानी या दूध भरकर ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि जालकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन शिवपुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है। शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि का पूजा निशिथ काल में करना उत्तम माना गया है। हालांकि भक्त अपनी सुविधानुसार भी भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं।
चार पहर की पूजा विशेष महत्व
महाशिवरात्रि पर विधि विधान के साथ शिव पूजन करने वाले श्रद्धालुओं के सभी मनोरथ पूरे होते हैं। महाशिवरात्रि पर चार पहर की पूजा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा मुख्य रूप से की जाती है। लेकिन इस दिन भगवान शिव की पूजा चारो पहर करने से जीवन के सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होने के बाद अंत में भगवान शिव की चरणो में स्थान प्राप्त होता है।
महाशिवरात्रि पर किसी भी समय भगवान शिव की पूजा की जा सकती है। लेकिन इस दिन भगवान शिव की चार पहर की पूजा को अधिक महत्व दिया गया है। शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि का हर क्षण शिव कृपा से भरा हुआ होता है। लेकिन इस दिन मध्य रात्रि में की गई पूजा विशेष लाभ देती है।वहीं इस दिन चार पहर की पूजा को भी अत्याधिक विशेष माना जाता है। यह चार पहर संध्या काल से शुरू होकर दूसरे दिन ब्रह्म मुहूर्त में जाकर समाप्त होते हैं। महाशिवरात्रि की इस पूजा में रात्रि का संपूर्ण उपयोग किया जाता है। जिससे भगवान शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त हो सके। भगवान शिव की चारो पहर की पूजा मुख्यत: जीवन के चारो अंगों को नियंत्रित करती है। यह जीवन के चार अंग हैं धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष। जो भगवान शिव की पूजा से साधे जा सकते हैं।
पहले पहर की पूजा
महाशिवरात्रि के दिन हर पहर की पूजा का एक विशेष विधान होता है। जिसका पालन करने से आप विशेष लाभ की प्राप्ति कर सकते हैं। महाशिवरात्रि के पहले पहर की पूजा शाम के समय में की जाती है। यह पूजा प्रदोष काल में सूर्यास्त के बाद की जाती है। यह समय शाम 6 बजे 46 मिनट से रात 9 बजे के बीच का होता है। महाशिवरात्रि पर इस पहर की पूजा से ही सभी प्रकार के दोषों का नाश हो जाता है और आपको इसका विशेष लाभ प्राप्त होता है।
दूसरे पहर की पूजा
यदि आप पहले पहर की पूजा करते हैं तो आपका धर्म मजबूत होता है। महाशिवरात्रि के दिन दूसरे पहर की पूजा रात में की जाती है। यह पूजा रात 9 बजकर 47 मिनट से रात्रि 12 बजकर 48 मिनट के बीच में की जाती है। इस पूजा में भगवान शिव को दही अर्पित किया जाता है। इसके बाद भगवान शिव का फिर से अभिषेक किया जाता है। इस पहर की पूजा में भगवान शिव के मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए। दूसरे पहर की पूजा करने से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
तीसरे पहर की पूजा
महाशिवरात्रि पर तीसरे पहर की पूजा मध्य रात्रि में की जाती है। इस पूजा को करने का समय रात्रि 12 बजकर 48 मिनट से सुबह 3 बजकर 49 मिनट तक का होता है। इस पहर में भगवान शिव की स्तुति करना अत्यंत ही शुभ माना जाता है। इस पूजा से हर प्रकार की मनोकामना की पूर्ति होती है।
चौथे पहर की पूजा
महाशिवरात्रि की चौथे पहर की पूजा ब्रह्ममुहूर्त में की जाती है। यह पूजा सुबह के 3 बजे से सूर्योदय तक की जाती है। इस पूजा से सभी प्रकार के नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।