लॉकडाउन, एक भयावह सच। क्या दोबारा इसका सामना करना पड़ेगा। सवाल, ज्यादातर लोगों के जेहन में है। जवाब भले ही वक्त के साथ आएगा। लेकिन, हां या ना। यह आपके व्यवहार पर ही निर्भर करता है। इतनी बड़ी महामारी इनसानी जिंदगी को कुछ सबक देने आयी थी, लेकिन हम अपनी मनमानी पर उतारू रहे। कई जानें गईं, अपनों को खोया। फिर भी लापरवाह बने रहे। मास्क पहनना अपनी तौहीन मानते रहे और बेवजह बाजार में घूमना, भीड़ लगाकर बेखौफ मजलिस जमाना अपनी शान समझते रहे। यह भी कई लोग मजाक में कहते रहे कि हम मुंह नहीं छिपाते।
ओके। मत छिपाईये मुंह। कोरोना का दूसरा दौर आएगा तो हो सकता है कि आपको मुंह दिखाने लायक भी न छोड़े। सच है, मुंह नहीं छिपाना चाहिए। लेकिन, इसमें भी तो बुद्धिमता का परिचय दिया जा सकता है। मुंह नहीं छिपा सकते तो ढंक ही लीजिए। समाज की नहीं, अपनी नहीं तो परिवार की चिंता कीजिए। आप लापरवाही करेंगे और भोगना आपके परिवार को पड़ेगा। उनके परिवारों में जाकर देखिये, उनके हाल जानिये जिन्होंने पहले दौर में अपनों को खोया है। कोरोना का भयावह सच उनसे ज्यादा बेहतर कौन जान सकता है?
जिन लोगों ने कोरोना जैसी महामारी को पहली बार देखा है, वे इतिहास नहीं जानते होंगे। जो लोग स्पेनिश फ्लू के विषय में इतिहास की जानकारी रखते हैं, वे बताते हैं कि इसका दूसरा दौर विश्व को बड़ी तबाही देकर गया था। इसमें जानोमाल का काफी नुकसान हुआ था। गुरुवार को जब देश में 23 दिसंबर 2020 के बाद एक दिन में सर्वाधिक मरीज सामने आये तो लगा कि स्थिति को भयावह होने से हम ही रोक सकते हैं। लॉकडाउन पहले दौर में उस लिहाज से ठीक था, कि हमें अपने संसाधन बढ़ाने थे, मेडिकल क्षेत्र को इससे लडऩे को तैयार करना था, सुविधाएं जुटानी थीं। लेकिन, अब लॉक डाउन से आगे जाकर सोचना होगा। यदि सरकार को सख्ती करनी पड़े तो भी उसे गुरेज नहीं करना चाहिए। चंद लोगों की मनमानी और लापरवाही से बड़ी आबादी की जान सांसत में हो, यह स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
अभी कोरोना का दूसरा दौर महाराष्ट्र में सबसे अधिक चिंताजनक है। पंजाब, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल भी इसकी जद में आ चुके हैं। हालात देश के अन्य राज्यों में चिंताजनक बनें, इससे पहले कदम उठाये जाने चाहिए। भीड़तंत्र को हावी नहीं होने देना चाहिए। सरकार को सख्ती बरतनी चाहिए। जांच का दायरा बढ़ाएं, टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाएं, बाजारों की व्यवस्था ऐसी करें कि भीड़ कम से कम पहुंचें। सार्वजनिक स्थलों पर भी कुछ प्रतिबंधों के साथ लोगों के एकत्र होने अनुमति दी जानी चाहिए। महाराष्ट्र के कुछ शहर लॉकडाउन जैसे अप्रिय हालात से गुजर रहे हैं, लेकिन यह बहुत ज्यादा सुरक्षित हल नहीं है। यह आर्थिक रूप से कमर तोडऩे वाला निर्णय है। देश को इसकी तरफ जाने से बचाना होगा। इसके लिए जनता को ही समझदारी दिखानी होगी।
अनलॉक की प्रक्रिया से अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है, ऐसे में पुन: लॉकडाउन की ओर लौटना देश के साथ खिलवाड़ होगा। अभी कई संस्थान और मध्यम वर्गीय परिवार पहले लॉकडाउन की भयावह यादें और बिगड़ी अर्थव्यवस्था से उबरे भी नहीं हैं, दूसरा दौर उनके लिए मौत की तरफ ले जाने जैसा होगा। यदि अभी मृत्यु दर कम है, संक्रमण का दूसरा दौर अधिक जानलेवा नहीं है तो उसके पीछे पहले की तुलना में वर्तमान में बेहतर चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं का हाथ है। लॉक डाउन से कोरोना संक्रमण नहीं होगा, यह गारंटी नहीं दी जा सकती है। अलबत्ता यह हालात से लडऩे की तैयारी का वक्त देता है। जो तैयारी करनी थी, हो चुकी है। अस्पतालों में व्यवस्था पहले से बेहतर है, जांच के उपकरण पर्याप्त हो गये, अब तो टीकाकरण भी प्रारंभ हो गया है, फिर से जीने के हालात बनने लगे हैं, ऐसे में लॉकडाउन जैसी आशंकाओं को खारिज किया जाना चाहिए और यह बस होगा सरकारों के दूरदर्शी निर्णयों और आमजन के समझदारी दिखाने से। मास्क का अनिवार्य उपयोग किया जाए, शारीरिक दूरी का पालन किया जाए, जहां तक संभव हो, सार्वजनिक स्थलों पर जाने से बचें, तभी हम इस विकट संकट की खड़ी को धैर्यपूर्वक टाल सकते हैं। आपको घर में कैद होने से बचाना है तो सावधानी बरतना ही एकमात्र उपाय हैं जो आपको लॉकडाउन जैसी भयावह स्थिति से बचा सकता है।