रस्म अदायगी के पेड़ न लगाएं…पौधे लगाकर बचाने का भी रिकार्ड बनायें

रस्म अदायगी के पेड़ न लगाएं…पौधे लगाकर बचाने का भी रिकार्ड बनायें

प्लीज! रस्म अदायगी के पेड़ न लगायें। मानसून लगभग समीप है। हर तरफ पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ के सुने-सुनाये नारे फिर गूंजेंगे। पौधे रोपने के रिकार्ड बनाये जाएंगे। लेकिन, सवाल यह है कि हम हर वर्ष बढ़ते तापमान के आदी हो रहे हैं, प्रकृति जो ताजगी और ठंडक मुफ्त में देने को राजी है, उसे हम एसी, कूलर जैसी चीजों को महंगे दामों में खरीदकर खुश और संतुष्ट होने का ढोंग कर रहे हैं। यदि सच में प्रकृति की सेवा करना ही है तो पेड़ लगाने का नहीं पेड़ बचाने का रिकार्ड बनाईये।
बीते दशकों में जितने पौधे रोपे गये हैं, यदि उनमें से 50 फीसद भी बचा लिये होते तो आज जो भयावह हालात हो रहे हैं, शायद वह नहीं होते। बीते वर्षों में सच्चाई देखें तो पौधे रोपे गये हैं, पेड़ बनने तक उनकी देखभाल बिलकुल नहीं की गई है। जाहिर है, पौधे रोपने मात्र की औचारिकता की गई है, हजारों पौधे जानवरों के पेट में चले गये, कुछ धूप में सूखकर खत्म हो गये। प्रकृति को ठगने वाले अगले वर्ष फिर उसी ढर्रे पर आ जाते हैं। प्रकृति ने ढगना शुरु कर दिया तो कहीं का नहीं छोड़ेगी, इसकी शुरुआत तो हो ही चुकी है, परंतु अब भी लगता नहीं कि एक पौधे को रोपकर उस पर बीस-बीस लोग लदकर फोटो नहीं खिंचायेंगे। ये फोटो भी खिंचायेंगे और अखबारों में छपने के लिए देकर सबसे बड़े पर्यावरण प्रेमी होने का तमगा लेकर घूमेंगे भी। कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होती का मुहावरा भी हम मनुष्यों ने ही बनाया है, लेकिन यह कुत्ते के पूंछ के साथ स्वयं पर भी लागू होता है, यह किसी ने सोचा नहीं।
ऐसे प्रकृति प्रेमी हर जगह पाये जाते हैं। अकेले, समूहों में, सरकारी आयोजनों में। हर जगह। इन्हें केवल फोटो सेशन से मतलब होता है, इनके पास पौधे को पेड़ बनाने तक सहेजने की कोई योजना नहीं होती। करीब एक पखवाड़े बाद मानसून की आमद हो सकती है, फिर जैसे बरसाती मेंढक आते हैं, ये भी आएंगे। इनका महाकुंभ भी लगेगा। नेता, अधिकारी, सरकारी योजनाओं के माध्यम से पौधे लगाने की मैराथन दौड़ भी चलेगी। आमजन भी ऐसे अभियानों में खूब उत्साह दिखाते हैं, फिर सहेजने के नाम पर सबका उत्साह ठंडा पड़ जाता है। जिस तरह से गर्मी ने तेवर दिखाये हैं, इस शहर में फिर से वैसा ही एक अभियान चलाने की जरूरत है, जैसे विधायक वृक्ष मित्र योजना के अंतगर्त अभियान चलाकर सैंकड़ों पौधों को न सिर्फ रोपा गया बल्कि उनको सहेजा भी गया। सैंकड़ों पौधे, पेड़ बनकर प्रकृति पर उपकार मान रहे हैं, लेकिन इतने से ही बस नहीं होना चाहिए। पहल तो हो चुकी, उसे आगे ले जाने की जिम्मेदारी फिर किसी व्यक्ति, संस्था, संगठन ने नहीं उठायी। मानसून के पूर्व जितने पौधे रोपे जाते हैं, उसमें से दस फीसद भी सहेजे नहीं जाते हैं। जरूरत पौधरोपण की है, उसे केवल फैशन बनाने की नहीं है।
सच कहें तो पौधरोपण केवल फैशन बन गया है। जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे पौध उपलब्ध करायें, जो पौधरोपण के लिए समय दे सकते हैं, उनकी और सहेजने वाली की अलग-अलग टीम भी बनायी जा सकती है। पौधों को पानी देने के लिए नगर पालिका प्रशासन की मदद से टेंकर के माध्यम से सिंचाई की जा सकती है, केवल तब तक, जब तक बारिश की बूंदें धरती की आत्मा को तर न कर दें, नगर पालिका प्रशासन इनकी रक्षा के लिए ट्री गार्ड दे सकती है, लेकिन स्वयं पौधे लगाने का पिछले कई वर्षों से असफल प्रयास किया जा रहा है, जो उचित नहीं है।
जंगल खत्म हो रहे हैं, लेकिन पौधों को पेड़ बनने तक सहेजने की फिक्र किसी को नहीं है। यह समझना बहुत जरूरी है कि हरियाली को सहेजने के प्रयासों में ईमानदारी हो, रोपे गये पौधे के साथ फोटो खिंचाने हजारों चेहरे सामने आ जाते हैं, उनको सहेजने के लिए उतने हाथ आगे नहीं आते। चंद लोगों के भरोसे पौधरोपण अभियान उतनी सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है, जितने की दरकार है। पिछले दशकों से देखा जा रहा है कि सबसे अधिक लापरवाही सरकारी अभियानों में होती है, सरकारी मुलाजिम केवल आदेश का पालन करने के लिए पौधे रोप देता है, फोटो खींचकर सोशल मीडिया के माध्यम से ऊपर भेज देता है, उसकी ड्यूटी पूरी हो जाती है, वैसे योजनाकार उसे ड्यूटी भी इतनी ही सौंपते हैं।
कुल जमा बात इतनी है कि पौधरोपण और प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी निभाने में लापरवाही प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रही है, यही आलम रहा तो वातानुकूलित कक्षों में बैठकर योजना बनाने वालों के एसी भी फेल हो जाएंगे, क्योंकि पंखे-कूलर तो अब गर्मियों में काम के नहीं रह जाते हैं। जरूरत एसी की संख्या बढ़ाने की नहीं, क्योंकि उससे वातावरण में प्रदूषण फैलता है, पेड़ों की संख्या बढ़ाने की है, जिससे वातावरण स्वच्छ होता है और शुद्ध हवा में सांस लेने का अवसर मिलता है। तो पौधरोपण अभियान को अवसर मानकर जेबें भरने की नहीं, ईमानदारी से प्रकृति की सेवा करके फैफड़ों में ताजा सासें भरने की जरूरत है।

Royal
CATEGORIES
Share This
error: Content is protected !!