लोकसभा चुनाव : नई बहस … कम वोटिंग परसेंटेज से किसे फायदा, किसे नुकसान

लोकसभा चुनाव : नई बहस … कम वोटिंग परसेंटेज से किसे फायदा, किसे नुकसान

लोकसभा चुनाव में कम वोटिंग प्रतिशत से राजनीतिक दलों की पेशानी पर बल पड़ रहे हैं। राष्ट्रीय नेताओं, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रियों और प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने भी सभाओं में लोगों से अधिक से अधिक मतदान करने घरों से निकलने का आह्वान किया, लेकिन मतदाता की खामोशी को वे वोट में तब्दील करने में कामयाब नहीं रह सके। मतदान कम होने के कई कारण गिनाये जा सकते हैं और गिनाये भी जा रहे हैं।
इस बीच कम वोटिंग टर्न आउट या कम वोटिंग ट्रेंड को लेकर नई बहस के साथ ही राजनीतिक गुणा-भाग भी लगाये जा रहे हैं। 19 अप्रैल को 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की कुल 102 सीटों पर वोटिंग हुई। पहले फेज की वोटिंग में करीब 63 फीसद वोट पड़े, जबकि इन्हीं सीटों पर 2019 के आम चुनाव में 66.44 प्रतिशत मतदान हुआ था। यानी करीब 3:3 प्रतिशत कम मतदान। 26 अप्रैल को दूसरे चरण में 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की कुल 88 सीटों पर हुए दूसरे फेज में भी 63.00 प्रतिशत मतदाता मतदान करने निकले। 2019 में इन्हीं सीटों पर 70.05 फीसद वोटर्स उत्साह से मतदान करने पहुंचे थे। कम वोटिंग के कारणों में कुछ राज्यों में तेज गर्मी और लू का असर, मतदाताओं पर किसी भी मुद्दे का असर नहीं होने से उनमें उत्साह की कमी और सरकारी कामकाज से असंतोष भी एक वजह बतायी जा रही है।
इसके अलावा मध्यप्रदेश के भाजपा अध्यक्ष और खजुराहो से पार्टी प्रत्याशी वीडी शर्मा ने निर्वाचन आयोग को एक पत्र लिखकर एक नयी वजह का जिक्र करके आगे इसमें सुधार की मांग कर नयी वजह पर बहस छेडऩे का प्रयास किया है। उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए पत्र में लिखा है कि मतदान में कई युवा मतदाताओं ने भाग लिया तथा उन्होंने पहचान पत्र के रूप में डिजीलॉकर में सुरक्षित पहचान पत्र मतदान अधिकारी को दिखाया किन्तु कई मतदान केन्द्रों पर मतदान अधिकारियों ने डिजीलॉकर में सुरक्षित पहचान पत्र को स्वीकार नहीं करते हुए पहचान पत्र का भौतिक रूप प्रस्तुत करने पर जोर दिया। सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के कारण युवा वर्ग अपने दस्तावेज डिजीलॉकर में सुरक्षित रखते हैं, उन्होंने कहा कि डिजीलॉकर में सुरक्षित दस्तावेजों को भी भौतिक दस्तावेज की मान्यता प्रदान की जाए। निर्वाचन अधिकारियों द्वारा डिजीलॉकर में सुरक्षित दस्तावेजों को मान्य नहीं किये जाने के कारण कई मतदान केन्द्रों पर युवा वर्ग के मतदाताओं को बिना मतदान किये वापस आना पड़ा, जिससे उनके लोकसभा क्षेत्र खजुराहो में लगभग 5 प्रतिशत मतदान में कमी आई है। उन्होंने मांग की है कि तीसरे और चौथे चरण के मतदान में जिला निर्वाचन अधिकारियों/कलेक्टर्स को निर्देश दें कि डिजीलॉकर में सुरक्षित ऐसे पहचान पत्र जिन्हें भारत निर्वाचन आयोग ने अधिसूचित किया हो, मतदान अधिकारी स्वीकारें, ताकि युवा पीढ़ी मतदान के मौलिक अधिकार का उपयोग कर सकें।
इसके अलावा यदि हम 2019 से 2024 की तुलना करें तो इस लोकसभा चुनाव में वोटरों में कुछ उदासीनता दिखी है। कम वोटिंग से किसे फायदा और किसे नुकसान होगा, कहना जरा मुश्किल है, क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें वोटिंग प्रतिशत कम होने पर भी सरकारें जीतकर आती हैं और कई बार हारती भी हैं। विगत 17 लोकसभा चुनावों में वोटिंग ट्रेंड पर नजर डालेंगे तो स्पष्ट होगा कि 5 बार मतदान घटा है और 4 बार सरकार बदली तथा 7 बार मतदान बढ़ा, तो 4 बार सरकार बदली भी है। दरअसल पहले चरण के कम वोटिंग प्रतिशत के बाद से ही कयास लगाये जाने लगे और कारण गिनाये जाने लगे थे कि कुछ मतदाता पूर्व से मोदी को वोट देने का फैसला कर चुके थे। विपक्ष में भी कुछ नेता यही मानकर चल रहे थे कि सरकार तो बननी नहीं है, उन्होंने मतदाताओं को घर से निकालने में ज्यादा मेहनत नहीं की। कुछ मतदाता तो मानकर बैठा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही बनेंगे, मेरे एक वोट नहीं देने से क्या होगा? कुछ मतदाता मतदान केन्द्र पर जाकर छोटी सी लाइन देखकर भी बिना मतदान के वापस आ गये।
राम मंदिर को चुनावों से पहले बड़ा मुद्दा माना जा रहा था, और भाजपा इसके भरोसे नैया पार लगने की उम्मीद में थी, निर्वाचन आयोग की सख्ती के कारण राम मंदिर का मुद्दा नेताओं के भाषणों से पूरी तरह से गायब रहा। इस बार 2019 की तरह कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं थी और ना ही मोदी लहर रही। अब देखना है कि मतदाता किसे फीलगुड का अहसास कराएगा, ईवीएम से निकलने वाले आंकड़े किसको मतबूत करेंगे, मतदाता ने बदलाव किया है या फिर मोदी सरकार पर भरोसा जताया है, यह मतगणना के शुरुआती रुझानों से ही पता चल जाएगा। फिलहाल करना होगा इंतजार।

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