अधिकृत तौर पर चुनाव का प्रचार थम गया है। यानी चुनावी शोरगुल से मुक्ति मिली, ऐसा माना जाना चाहिए। हालांकि चुनावी शोर किसने सुना, पता नहीं। सन्नाटे के बावजूद चुनाव जैसा शोर तो शायद ही किसी को सुनाई दिया हो, हमें तो नहीं। मतदाताओं की चुप्पी और राजनैतिक दलों के कथित उत्साही चुनावी अभियान के बावजूद शोर नहीं होना, एक स्लोगन की याद दिलाता है ‘मेहनत इतनी खामोशी से करो कि सफलता शोर मचा दे।’ हो सकता है कि इसी से प्रेरित होकर राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता खामोशी से मेहनत कर रहे हों, क्योंकि हम किसी की मेहनत पर सवाल भी नहीं उठा सकते। हो सकता हो, वहां मेहनत हो रही हो, जहां हमारी पहुंच नहीं हो।
बहरहाल, इन सबके बीच मतदाता जरूरी खामोश है। उसे तो खामोशी से मेहनत करना भी नहीं है, एक दिन उसका होता है, उसे ईवीएम की बटन दबाना, बीप सुनना और वीवीपैट में पर्ची देखकर इस अकड़ के साथ मतदान केन्द्र से बाहर आना है कि उसने अपना जनप्रतिनिधि, अपनी सरकार चुन ली। लेकिन, मतदाता की यह खामोशी राजनैतिक दलों को अवश्य विचलित कर रही होगी। यद्यपि कोई भी नेता यह मानने को तैयार कतई नहीं होता है कि वह प्रचार में पीछे है या वह पिछड़ रहा है। हरेक को अपनी निश्चित जीत दिखाई देती है, सब अपनी क्षमता अनुसार सर्वोत्कृष्ट करना मानकर चलते ही हैं।
मान लेते हैं कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। लेकिन इस बार मतदाताओं की खामोशी ने हर उम्मीदवारों के हौंसले को पस्त कर दिया है, भले कोई उम्मीदवार या पार्टी के सदस्य नहीं मानें। लेकिन मतदाताओं की खामोशी बीजेपी-कांग्रेस समेत सभी उम्मीदवारों को टेंशन में डाले हुए है। गांव तक उम्मीदवारों का प्रचार भी ठंडा ही रहा तो शहरों में भी वोटर्स की दिलचस्पी कम ही चुनावों में दिख रही है।
राजनीतिक दलों के दावे पर भी जनता इस चुनाव में भरोसा पैदा नहीं कर सकी तो प्रशासन लोगों से अनिवार्य वोट की अपील कर रहा है। प्रशासन तरह-तरह के तरीके अपना रहा है। अब तो चुनाव में ऑफर की घुसपैठ भी हो गयी है। इटारसी एसडीएम ने तो रेस्टोरेंट संचालकों से मतदान के बाद उंगली पर स्याही का निशान दिखाने पर मिठाई और नाश्ते में 20 प्रतिशत की छूट का वादा भी ले लिया है। दरअसल इस बार 26 अप्रैल को सर्वाधिक विवाह समारोह और मौसम में गर्मी होने से चुनावी माहौल ठंडा पड़ा हुआ है। ऐसे हालात में प्रशासन विवाह वाले घरों में भी पहुंचकर लोगों को मतदान केन्द्रों तक जाने के लिए शपथ दिला रहा है। लेकिन, शपथ लेकर भी मतदाता मतदान केन्द्रों पर पहुंच जाएं, इसका भरोसा कुछ कम ही है।
यह सौ फीसद सच है कि इस बार के लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के बाद भी 2019 जैसा प्रचार बीजेपी और कांग्रेस में नहीं दिखा, तो जनता के स्थानीय मुद्दों से नेताओं की दूरी भी वोटर को नहीं लुभा सकी है। हालांकि प्रशासन लगातार वोट के लिये लोगों से अपील तो कर रहा है। लेकिन कनेक्ट कम ही लोगों को कर सका है। बहरहाल कल वोटिंग होनी है और चिंता कम वोटिंग को लेकर है, जो प्रशासन से लेकर चुनाव लड़ रहे उमीदवारों के माथे पर बल डाले हुए हैं।