बॉलीवुड के चमकते सितारों की भी एक स्याह परछाईं होती है, और गोविंदा की कहानी इसका जीता-जागता उदाहरण है। एक समय था जब गोविंदा का नाम ही बॉक्स ऑफिस पर हिट फिल्म की गारंटी हुआ करता था। उनका डांस, कॉमिक टाइमिंग और मास अपील ऐसी थी कि जनता उन्हें सिर-आंखों पर बिठा लेती थी। लेकिन इस सफलता के पीछे छिपा है एक लंबा संघर्ष, कई उतार-चढ़ाव और अनकही कहानियों से भरा जीवन।
बॉलीवुड की विरासत, लेकिन बिना शॉर्टकट के सफर
गोविंदा का जन्म 21 दिसंबर 1963 को महाराष्ट्र के विरार में हुआ। पिता अरुण आहूजा खुद एक अभिनेता रहे, और मां निर्मला आहूजा 1940 के दशक की फिल्म अभिनेत्री व हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका थीं। हालांकि, यह फिल्मी विरासत गोविंदा के करियर के लिए आसान राह नहीं बनी। उनके पिता ने एक फिल्म प्रोड्यूस की, जो बुरी तरह फ्लॉप हो गई। इस असफलता ने पूरे परिवार को आर्थिक तंगी में धकेल दिया और उन्हें अपने बंगले से हटकर विरार में आकर बसना पड़ा।
छोटे शहर से बड़े सपने – ऐसे शुरू हुआ करियर
गोविंदा वसई कॉलेज से कॉमर्स ग्रैजुएट हैं। फिल्मों का शौक उन्हें विरासत से जरूर मिला, लेकिन उन्होंने अपना रास्ता खुद बनाया। एक बार उन्होंने डिस्को डांसर फिल्म देखी, और उसके डांस मूव्स देखकर इतना प्रभावित हुए कि घंटों प्रैक्टिस करके एक वीडियो कैसेट तैयार किया। यही वीडियो उनके फिल्मी सफर की पहली सीढ़ी बना।
उनका पहला काम एक खाद के विज्ञापन में था, और पहला लीड रोल उन्हें अपने अंकल आनंद द्वारा निर्देशित फिल्म में मिला। 1986 में फिल्म इल्जाम से उन्होंने बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री ली। इसके बाद मानो उन्होंने पीछे मुड़कर देखा ही नहीं।
21 की उम्र में 75 फिल्में – काम के बोझ में फंसा स्टार
कहा जाता है कि गोविंदा ने महज 21 साल की उम्र में 75 फिल्में साइन कर ली थीं। इतनी ज्यादा फिल्मों के चलते वह समय पर सेट पर नहीं पहुंच पाते थे। फिर भी उनका जलवा ऐसा था कि निर्माता-निर्देशक उन्हें लेने को आतुर रहते। उनका मास अपील और कमाल की कॉमिक टाइमिंग उन्हें हर घर का चहेता बना चुकी थी।
‘ची ची’ से ‘नंबर वन’ बनने तक का सफर
गोविंदा को घर में ‘ची ची’ कहकर पुकारा जाता था। उनके करियर की सबसे खास बात रही उनका ‘नंबर वन’ टैग। कुली नंबर वन, आंटी नंबर वन, हीरो नंबर वन, राजा बाबू जैसी फिल्मों ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया। इस ‘नंबर वन’ सीरीज ने उन्हें एक अलग ही पहचान दी। उनके डांसिंग स्टाइल, रंगीन कपड़े और एनर्जी से भरे सीन्स आज भी दर्शकों के दिल में ताजा हैं।
डेविड धवन के साथ सुपरहिट जोड़ी
अगर 90 के दशक की सबसे जबरदस्त फिल्मी जोड़ियों की बात करें, तो डेविड धवन और गोविंदा का नाम सबसे ऊपर आता है। दोनों ने मिलकर कई ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं। निर्देशक डेविड धवन के साथ उनका तालमेल इस कदर था कि फिल्म में सिर्फ उनका नाम भर ही हिट की गारंटी बन जाता था।
दोस्तों और सहकलाकारों का साथ – पर्दे पर भी और ज़िंदगी में भी
गोविंदा ने शक्ति कपूर के साथ 42 और कादर खान के साथ 41 फिल्में कीं। इन तीनों की तिकड़ी ने दर्शकों को खूब हंसाया। वहीं, नीलम, करिश्मा कपूर और रवीना टंडन के साथ भी उन्होंने 10-10 फिल्मों में काम किया। उनकी केमिस्ट्री इतनी लोकप्रिय रही कि बार-बार इन्हें स्क्रीन पर देखने की मांग बनी रही।
पुरस्कार और पहचान
गोविंदा अब तक बारह बार फिल्मफेयर के लिए नामांकित हो चुके हैं। उन्हें एक बार बेस्ट कॉमेडियन का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला, इसके अलावा चार ज़ी सिने अवॉर्ड भी उनके नाम हैं। उन्होंने फिल्म हद कर दी आपने में छह किरदार निभाकर अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवाया।
राजनीति में कदम – लेकिन अधूरा सफर
2004 में गोविंदा ने राजनीति की दुनिया में कदम रखा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से सांसद बने। उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रवास को अपना एजेंडा बताया। लेकिन उनका राजनीतिक सफर विवादों से घिरा रहा। उन पर आरोप लगे कि वे अपने क्षेत्र में लोगों से नहीं मिलते। खासकर 2005 की बारिश के दौरान जब 450 लोगों की जान गई, तब उनकी अनुपस्थिति पर सवाल उठे। दस महीने तक उन्होंने सांसद निधि का इस्तेमाल नहीं किया, और मीडिया में आलोचना के बाद ही सक्रियता दिखाई।
विवादों से भी नाता रहा
गोविंदा का फिल्मी सफर जितना रंगीन रहा, विवादों से भी वह अछूते नहीं रहे। एक बार उन्होंने फिल्म मनी है तो हनी है के सेट पर एक व्यक्ति को थप्पड़ मार दिया, जो महिलाओं के साथ बदसलूकी कर रहा था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां गोविंदा को माफी मांगनी पड़ी।
एक और हादसे में फिल्म खुद्दार की शूटिंग के लिए जाते समय उनका एक्सीडेंट हो गया, फिर भी उन्होंने शूटिंग नहीं रोकी और काम जारी रखा।
आज भी यादों में ज़िंदा है ‘गोविंदा टाइम’
आज गोविंदा भले ही पहले जैसे सक्रिय न हों, लेकिन उनके नाम से जुड़ी यादें आज भी दर्शकों के दिलों में ज़िंदा हैं। उनकी फिल्मों के गाने, डांस मूव्स, कॉमेडी टाइमिंग और संवाद अदायगी आज भी यूट्यूब और सोशल मीडिया पर ट्रेंड करते हैं।
निष्कर्ष: गोविंदा सिर्फ अभिनेता नहीं, एक युग हैं
गोविंदा का जीवन हमें यह सिखाता है कि टैलेंट और मेहनत से कोई भी बुलंदी हासिल की जा सकती है, चाहे शुरुआत कितनी भी मुश्किल हो। उन्होंने न सिर्फ 90 के दशक की पहचान बनाई, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल कायम की। उनका नाम हमेशा बॉलीवुड के इतिहास में ‘नंबर वन’ के रूप में दर्ज रहेगा।
अखिलेश शुक्ला

सेवा निवृत्त प्राचार्य, लेखक, ब्लॉगर
इ-समीक्षक, लेखक व साहित्यकार