होशंगाबाद। झरोखा गीत ऋषि महान गीतकार का
स्व. गोपाल दास नीरज दिवंगत होने के बाद अनगिनत दर्द भीगे मोहक मधुर गीतों में स्पंदित हमारे प्राणों में बसे हैं, धड़कन में रहते हैं, सांसों को सुबह सुबह की पावन मलयानिल खुशबू से भिगो देते हैं। नीरज के गीत उनकी पूजा, प्रार्थना, उपासना हैं। विनम्रता पूर्वक उस महाकवि के पुण्य स्मरण में अपनी ये काव्य पंक्ति पंखुड़ी अर्पित करता हूं, मैं दर्द का आराधक हूं, पीड़ा मेरी इस्ट हैं, घुटन जलन स्तुति प्रार्थना, आंहे आंसू पुस्प पत्र हैं; लिहाजा वेदना उनकी आराध्य देवी थी, उन्हीं का अखंड कीर्तन उनके गीत हैं, जो आज भी और दशावधियो तक गुन गनाए जाते रहेंगे। जन्म ४ जनवरी १९२५ को इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में हुआ था। छः बरस की आयु में पिताजी स्व. ब्रजकिशोर सक्सेना परलोक सिधार गए। लिहाजा उन्हें उनके बुआ फूफा अपने साथ ले गये, वंही नीरज की परवरिश हुई। जैसे तैसे मैट्रिक पास कर घर की परेशानी को समझते टायपिंग सीख कर कचहरी मै बैठ गए। टायपिंग करने लगे, फिर दिल्ली आकर सफाई विभाग में नौकरी कर ली। वेतन कम मिलता, घर भेजते जो बचता उसमे गुजर करते, बाल्कट ब्रदर्स के यहां नोकरी की सिनेमाघर की दुकान में नोकरी की। प्राईवेट पढ़ाई कर 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम.ए. किया।
कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हो गए, लेकिन जल्द ही यह नौकरी चली गई। रोजी रोटी के चक्कर में नीरज जी घोर हला हल पीते रहे, पान बीड़ी तम्बाकू बेची, अखबार बेचे, यहां तक यमुना मै डुबकी लगाकर पैसे खोजे। लेकिन अपने अभिन्न कवि मित्र स्व. प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी की कविता पंक्ति में कहे तो हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा की धुन लिए, नीरज संघर्ष सरोवर में ऐसी मोहक मधुर मंद सुगन्ध बिखरते खिले कि दुनिया उनकी दीवानी हो गई। 44 के आसपास वे कवि सम्मेलन जाने लगे। यह आलम बन गया, कि नीरज जी महीने महीने घर नहीं लौट पाते थे। एक कवि सम्मेलन से लौट रहे होते, रास्ते में ही उनके मुरीद लोग मान मनुहार कर दूसरे प्रोग्राम के लिए उतार लेते थे। प्यार मोहब्बत पर लुटने मिटने बाले फक्कड़ संत कवि मना नहीं कर पाते थे। नीरज का नशा इस तरह लोगो के सर चढ़ा था, कि सफ़र में जिन स्टेशनों से रेल गाड़ी गुजरती वहां उनके अनुरागी महिला पुरुष नाश्ते भोजन का डिब्बा लेकर खड़े होते। उनके गीत युवा लड़के लड़कियां अपने प्रेम पत्रों में कोट करते। मुझे दो तीन बार उनसे मिलने का सौभाग्य मिला। बचपन में स्कूल जीवन में तो, बड़े होकर कविता पत्रकारिता करते हुए होशंगाबाद में। वे राम जी बाबा मेले के कवि सम्मेलन में आए थे, उनके साथ कविवर और सांसद स्व. बाल कवि वैरागी, शैल चतुर्वेदी आदि भी थे। बाद में शासकीय होम साइंस कॉलेज में “कविता की दोपहर नीरज के संग” कार्यक्रम में भी गए थे। तभी मुझे सौभाग्य मिला उनके निकट दर्शन ओर चर्चा का। मिलते ही तपाक से बोले भाई जर्नलिस्ट क्या नाम हैं? मेंने कहा जी पंकज पटेरिया। बोले एक ही तो हैं; शब्द भर बदले हैं अर्थ तो एक ही हैं दोस्त। महक फैलने में वक्त लगता है। तब मैं समझ नहीं पाया। बाद में ज्ञात हुआ नीरज जी सिद्ध ज्योतिष और न्यूमेरोलॉजिस्ट भी थे। प्रधान मंत्री स्व. अटल जी और वे कानपुर में साथ पढ़े थे। अच्छे मित्र दोनों कवि थे। कहते हैं दोनों की जन्म कुंडली में बहुत समानता थी। उन्होंने कहा था कि उनकी मृत्यु के 29 अथवा 30 दिन बाद अटल जी भी विदा हो जायेंगे, तब यह खबर वायरल नहीं हुई लेकिन अटल जी की चिर विदा के बाद बहुत वायरल हुई। जो भी सच्चाई हो लेकिन ग्रह योग ऐसे थे कि दोनो ने बुलंदियां पाई। अरबिंदो, ओशो माँ आंनदमयी, मेहर बाबा ओर प्रबोधानंद जी के सानिध्य में नीरज जी के निकट प्रेम परमात्मा ओर परमात्मा प्रेम हो गया था। उनकी स्मृति में उनकी पंक्ति को कोट कर प्रणाम –
इतना दानी नहीं समय जो
हर गमले में फूल खिला दे,
इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
शायद उनकी यही पंक्ति उनके जीवन का मंत्र बन जी गई थी। जिसे समझते वे पीड़ा का राजकुँवर कहलाए।
पंकज पटेरिया (Pankaj Patertia),वरिष्ठ पत्रकार, कवि
संपादक शब्द ध्वज,ज्योतिष सलाहकार,होशंगाबाद
9893903003, 9407505691