मुझे इश्क़ है
सिर्फ़ तुमसे ही नहीं
तुमसे जुड़ी हर चीज से
वो शहर
जहां तुम रहते हो
उस शहर से इश्क़ है मुझे
जिन रास्तों से
तुम गुजरते हो न
उन राहों पे बिखरी
धूल से भी इश्क़ है मुझे
वो लोग जो रहते हैं
तुम्हारे आसपास
बेहद अपने से लगते हैं मुझे
तुम्हारे द्वार का नीम …
गांव का पीपल
क़दम्ब के वृक्ष सा प्रिय है मुझे
तुम्हारे आंगन की तुलसी बन
सदियों तलक
साथ रहने के ख्वाब
कई बार सजाए होंगे मैंने
वो घटाएं
जो तुम्हें भिगो कर
मुझे भिगाने आती हैं
बेहद प्रिय लगतीं हैं मुझे
वो पवन
जो तुम्हें छू के मेरे शहर
तुम्हारा एहसास लेकर आती है
मुझे इश्क है उससे भी
साथी मेरे …
मुझे इश्क़
सिर्फ तुमसे ही नहीं
तुमसे जुड़ी हर चीज से
सच … बेइंतिहां इश्क़ है।
मैथिली सिंह