महाराजा अग्रसेन जीवन परिचय, जाने महाराजा अग्रसेन कौन थे, कब मनाई जाती हैं अग्रसेन जयंती, प्रारंभिक जीवन, विवाह, अग्रोहा धाम की स्थापना, कैसे बने अग्रसेन अग्रवाल समाज के पितामह, 18 गोत्र, एक ईंट और एक रुपया का सिद्दांत, राष्ट्रीय सम्मान, अंतिम समय, आरती सम्पूर्ण जानकारी।
महाराजा अग्रसेन जीवन परिचय (Maharaja Agrasen Biography)
पूरा नाम | महाराजा अग्रसेन |
जन्म | 3130 संवत 2073 ”विक्रम संवत शुरु होने से करीब 3130 साल पहले” |
पिता का नाम | महाराजा श्री वल्लभसेन |
माता का नाम | महारानी श्रीमती भगवती देवी |
पत्नी का नाम | महारानी माधवी, महारानी सुन्दरावती |
संतान | 18 पुत्र |
कब मनाई जाती हैं अग्रसेन जयंती ? (When is Agrasen Jayanti celebrated)
आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि, के दिन अग्रसेन जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह जयंती 26 सितंबर 2022 को मनाई जाएगी। इसी दिन अग्रवाल समाज के संस्थापक महाराजा अग्रसेन का जन्म हुआ था। महाराजा अग्रसेन हरियाणा राज्य के अग्रोहा शहर के राजा थे। महाराजा अग्रसेन का जन्म भगवान श्रीराम की चौतीस वी पीढ़ी में द्वापर के अंतिम काल (महाभारत काल) एवं कलयुग के प्रारंभ में अश्विन शुक्ल में हुआ था।
अग्रसेन जंयती पर महाराजा अग्रसेन के सम्मान में कई प्रकार के आयोजन किए जाते है एवं विधि पूजा-अर्चना की जाती है। महाराजा अग्रसेन जयंती की तैयारी पूर्व ही अग्रवाल समाज के लोग शुरू कर देते है। इनकी जयंती पर कई भजन-कीर्तन एवं नाट्य प्रतियोगिताओं एवं कई विशाल कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वैश्य समाज के अंतर्गत अग्रवाल समाज के साथ जैन, महेश्वरी, खंडेलवाल आदि भी आते हैं।
कौन थे महाराजा अग्रसेन (Who was Maharaja Agrasen)
महाराजा अग्रसेन, राजा वल्लभ सेन के बड़े पुत्र थे। महाराजा अग्रसेन ऐसे राजा थे जो हमेशा अपनी प्रजा के हित में सोचते थे और उनके लिए कार्य करते थे। इसी वजह से ही वह आज सभी के दिलों मे अमर है। इन्हें मनुष्यों के साथ-साथ जानवरों से भी बहुत लगाव था, इसलिए उन्होंने यज्ञों में होने वाली पशु की बलि को गलत साबित किया और अपना क्षत्रिय धर्म त्याग कर वैश्य समाज की स्थापना की।
इस प्रकार वे अग्रवाल समाज के पितामह बने। इन्होने महाभारत युद्ध में पांडवो के पक्ष में भी युद्ध किया था। इनकी नगरी का नाम प्रताप नगर था बाद में इन्होने अग्रोहा नामक नगरी की स्थापना की थी। जो हरियाणा राज्य मे स्थित है। अग्रोहा में सभी नगरवासी धन धान्य से सकुशल थे और अग्रसेन एक अच्छे राजा की तरह प्रसिद्द थे।
महाराजा अग्रसेन प्रारंभिक जीवन (Maharaja Agrasen Early Life)
महाराजा अग्रसेन प्रताप नगर के राजा वल्लभ और महारानी भगवती के सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में बड़े बेटे के रुप में जन्में थे, इन्होने ने ही अग्रवाल समाज का निर्माण एवं अग्रोहा धाम की स्थापना की थी। अग्रसेन के बारे में ऐसा कहा जाता है कि उनके जन्म होते ही महान गर्ग ॠषि ने उनके पिता से यह कहा था। कि वे आगे चलकर बहुत बड़े शासक बनेगें और उनके राज्य में एक नई शासन व्यवस्था का गठन होगा। जिसके कारण युगों-युगों तक उनका नाम अमर रहेगा। वह भविष्यवाणी सत्य हई और आज तक महाराजा अग्रसेन लोगो के दिलों मे अमर है।
महाराजा अग्रसेन विवाह (Maharaja Agarsen Marriage)
महाराजा अग्रसेन का दो विवाह हुआ था। पहला विवाह राजा नागराज की पुत्री राजकुमारी माधवी से हुई थी। यह शादी स्वयं वर थी, इस स्वंय वर मे राजा इंद्र ने भी हिस्सा लिया था, इस स्वंय वर मे राजकुमारी माघवी ने अग्रसेन को अपने वर के रुप में चुनने का फैसला लिया था। जिस कारण से इंद्र को काफी अपमान महसूस हुआ और इससे क्रोधित होकर उन्होंने अग्रसेन के नगर (प्रतापनगर) में कभी भी बारिश नहीं करने निर्णय लिया।
इंद्र के इस निर्णय से अग्रसेन के नगर (प्रताप नगर) में बारिश नहीं होने के कारण अकाल पड गया और प्रजा भूख-प्यास से तड़पने लगी। जिसे देखकर अग्रेसन और उनके भाई शूरसेन ने अपनी शक्तियों से राजा इंद्र से घमासान युद्द कर अपने राज्य प्रतापनगर को भयंकर अकाल जैसे संकट बचाने का निर्णय लिया।
इस युद्व को देखकर देवताओं ने नारदमुनि के साथ मिलकर महाराजा अग्रसेन और इंद्र के बीच समझौता करा दिया। लेकिन इसके बाद भी प्रतापनगर की प्रजा की मुसीबतें कम नहीं हुई और इंद्र एक के बाद एक नया संकट प्रताप नगर की प्रजा के लिए खडा कर रहे थे। यह देखकर महाराजा अग्रसेन ने हरियाणा और राजस्थान के बीच में सरस्वती नदीं के किनारे स्थित अपने राज्य प्रतापनगर को इंद्र के संकटो से बचाने के लिए भगवान शिव की कड़ी तपस्या की।
अग्रेसन की इस तपस्या को रोकने के लिए इंद्र ने कई तरह की परेशानी खड़ी की लेकिन वह नाकाम हुआ। अग्रसेन की तपस्या से देखकर भगवान शिव और माता लक्ष्मी प्रसन्न हुऐं। और अग्रसेन को दर्शन दिये तभी माता लक्ष्मी को इंद्र के दिये हुयें संकट के बारे में बताया। जिसके बाद देवी लक्ष्मी ने अग्रसेन जी को सलाह दी कि अगर वे कोलापुर के राजा महीरथ नागवंशी की पुत्री से विवाह कर लेंगे तो उन्हें उनकी सभी शक्तियां प्राप्त हो जाएंगी।
जिससे इन्द्र को अग्रसेन से युद्व करने से पहले सोचना पड़ेगा। इस तरह महाराजा अग्रसेन ने राजकुमारी सुंदरावती से दूसरा विवाह कर प्रतापनगर की प्रजा को इंद्र के संकट से बचाया।
अग्रोहा धाम की स्थापना (Establishment of Agroha Dham)
महाराज अग्रसेन का राज्य प्रताप नगर खुशहाली से चल रहा था। इसी दौरान इंद्र के दिए हुऐ संकट से प्रतापनगर की प्रजा को मुक्त करने के लिए अग्रसेन ने कडी तपस्या की जिससे खुश होकर माता लक्ष्मी ने उन्हें दर्शन दिये और उन्होंने अग्रसेन को एक नया राज्य बनाने और वैश्य जाति बनाने की प्ररेणा दी। जिसे स्वीकारते हुए राजा अग्रसेन और रानी माधवी ने पुरे देश की यात्रा की और अपनी समझ के अनुसार अग्रोहा राज्य की स्थापना की।
जिससे समस्त प्रजा के जीवन में सुधार आया। शुरु में इस राज्य का नाम अग्रेयगण रखा गया था, जिसे बदल कर अग्रोहा कर दिया गया था। यह हरियाणा राज्य में हैं। यहाँ लक्ष्मी माता का भव्य मंदिर भी हैं। वर्तमान में अग्रोहा का काफी विकास हो गया है। यहां महाराजा अग्रसेन और माता वैष्णव देवी का मंदिर भी है।
कैसे बने अग्रवाल समाज के पितामह (How did Agarwal become the Father of the society)
महाराजा अग्रसेन ने पूजा एवं धार्मिक अनुष्ठानों में पशुओं की बलि को करते हुए अपना धर्म त्याग दिया था। इसके बाद उन्होंने एक नए वैश्य (अग्रवाल समाज) की स्थापना की और इस तरह वे अग्रवाल समाज के पितामह बने। अग्रवाल समाज की उत्पत्ति के लिए 18 यज्ञ किए गए थे। और उनके आधार पर गौत्र बनाए थे।
अग्रसेन के 18 पुत्र थे, उन सभी पुत्रों का यज्ञ का संकल्प दिया गया, जिसे 18 ऋषि मुनियों ने पूरा करवाया। यज्ञ में बैठे सभी 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवाल समाज की स्थापना हुई। और 18 वें यज्ञ में जब पशु बलि की बात आई तब प्रतापनगर के अग्रोहा धाम के संस्थापक महाराजा अग्रसेन ने इस बात का जमकर विरोध किया और इस तरह आखिरी युद्द में पशु बलि देने से रोक दिया।
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अग्रवाल समाज के 18 गोत्र (18 Gotras of Agrawal Samaj)
- एरोन/एरन और्वा इन्द्रमल
- बंसल वत्स्य विशिष्ट
- बिंदल/विंदल विशिस्थ वृन्देव
- भंडल धौम्या वासुदेव
- धारण/डेरन धन्यास धवंदेव
- गर्ग/गर्गेया गर्गास्य पुष्पादेव
- गोयल/गोएल/गोमिल गेंदुमल गोएंका
- गोयन/गंगल गौतन गोधर
- जिंदल जेमिनो जैत्रसंघ
- कंसल कौशिक मनिपाल
- कुछल/कुच्चल कश्यप करानचंज
- मधुकुल/मुद्रल मुद्रल माधवसेन
- मंगल मांडव अमृतसेन
- मित्तल मैत्रेय मंत्रपति
- नंगल/नागल नागेंद नर्सेव
- सिंघल/सिंगला शंदल्या सिंधुपति
- तायल तैतिरेय ताराचंद
- तिंगल/तुंघल तांडव तम्बोल्कारना इस तरह अग्रवाज समाज (वैश्य समाज) की उत्पत्ति हुई, यह समाज प्रमुख रुप से व्यापार के लिए जाना जाता है।
एक ईंट और एक रुपया का सिद्दांत (Principle of one brick and one rupee)
”एक ईट और एक रुपया” का सिद्धांत काफी प्रचलित है। एक बार अग्रोहा राज्य में अकाल पड़ने के कारण भूखमरी, महामारी जैसे संकट आ गया। इस सकंट से निकालने के लिए महाराजा अग्रसेन अपने वेष-भूषा बदलकर नगर का भ्रमण करने निकले, तभी उन्होने देखा की एक परिवार में सिर्फ 4 लोग ही खाना खा पा रहे हैं। तभी उस परिवार में एक मेहमान का अगमन हुआ।
तब परिवार के सदस्यों ने अपनी-अपनी थालियों से थोड़ा-थोड़ा खाना निकालकर आए मेहमान के लिए पांचवी थाली परोस दी। यह देखकर महाराजा अग्रसेन ने ‘एक ईट और एक रुपया’ के सिद्धांत की शुरूआत की। उन्होंने इस सिद्धांत के अनुसार राज्य में आने वाले नए परिवार को नगर में रहने वाले हर परिवार की तरफ से एक ईट और एक रुपया देने के लिए कहा।
जिससे नगर में आने वाला नया परिवार ईटों से अपना घर का बना सका और उन रुपयों से अपने परिवार के पेट भरने के लिए काम शुरू कर सका। इस सिद्धांत के बाद महाराजा अग्रसेन एक नई पहचान मिली। और महाराजा अग्रसेन को उनके करुणामयी स्वभाव, समाजवाद के प्रवर्तक, युग पुरुष और राम राज्य के समर्थक के रुप में जाना जाने लगा।
महाराजा अग्रसेन राष्ट्रीय सम्मान (Maharaja Agrasen National Award)
महाराजा अग्रसेन के नाम पर 24 सितंबर, 1976 मे भारत सरकार ने 25 पैसे का डाक टिकट जारी किया था। इस सम्मान के अंतर्गत पुरस्कार के रूप में 2.00 लाख की सम्मान निधि प्रशस्ति एवं सम्मान पटिका प्रदान की जाती है। यह सम्मान उन्हें सामाजिक सद्भाव एवं सामाजिक समरसता, श्रेष्ठतम उपलब्धियों व योगदान के लिए सम्मानित करने के लिए सम्मान स्थापित किया गया है।
महाराजा अग्रसेन अंतिम समय (Agrasen Maharaj Last Time)
महाराजा अग्रसेन ने लगभग 100 वर्षो तक शासन किया उन्हें दयालु, कर्मठ व्यवहार के कारण इतिहास के पन्नो में एक भगवान के बराबर स्थान दिया गया है। इन पर कई किताबे भारतेंदु हरिशचंद्र ने लिखी हैं। सन 29 सितंबर, 1976 में अग्रसेन के राज्य अग्रोहा को धर्मिक स्थल बनाया गया था। यहाँ अग्रसेन जी का मंदिर भी बनवाया गया है। जिसकी स्थापना 1969 वसंत पंचमी के दिन की गई थी। इसे अग्रवाल समाज का तीर्थ स्थल भी कहा जाता हैं।
श्री अग्रसेन महाराज आरती (Shri Agrasen Maharaj Aarti)
“जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें।। जय श्री।
आश्विन शुक्ल एकं, नृप वल्लभ जय।
अग्र वंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे।। जय श्री।
केसरिया थ्वज फहरे, छात्र चवंर धारे।
झांझ, नफीरी नौबत बाजत तब द्वारे।। जय श्री।
अग्रोहा राजधानी, इंद्र शरण आये!
गोत्र अट्ठारह अनुपम, चारण गुंड गाये।। जय श्री।
सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता!
ईंट, रूपए की रीति, प्रकट करे ममता।। जय श्री।
ब्रहम्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा।।
कुल देवी महामाया, वैश्य करम कीन्हा।। जय श्री।
अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाये!
कहत त्रिलोक विनय से सुख संम्पति पाए।। जय श्री