इटारसी। मुगलों (Mughals) से युद्ध के समय महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) ने जंगल में शरण ली थी और उस वक्त उन्हें वहां घास की रोटी (Grass Ki Roti) खाकर जीवन व्यतीत करना पड़ा था। ये रोटियां घास के साथ अन्य वनस्पति और बीजों को मिलाकर बनायी जाती थीं, जो पौष्टिक होती थीं। ऐसे ही घास और बीजों को मिश्रित करके महाराणा प्रताप जयंती पर ग्राम सुपरली (Village Superly) के किसान योगेन्द्र पाल सिंह सोलंकी ने नगर के कुछ गणमान्यजनों को आटा वितरित किया और घास की रोटियां भी खिलायीं।
श्री सोलंकी ने कहा कि धार्मिक स्थलों के पुजारियों और प्रधानों को यह आटा इसलिए दिया है कि ताकि वे इसे प्रसाद में मिलाकर इस स्वाभिमान के आटे को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा सकें। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप का त्याग और स्वाभिमान हम सभी को उत्सव के रूप में उनका जन्मदिन मनाने की प्रेरणा देता है।
स्वयं ने बनाया है आटा
बता दें कि इस आटे का निर्माण योगेन्द्रपाल सिंह ने स्वयं किया है और भविष्य में भी महाराणा प्रताप जयंती पर घर-घर में उसी तर्ज पर रोटियां बनें जैसे महाराणा प्रताप ने बनाकर खायी थीं। महाराणा प्रताप जयंती के अवसर पर ग्राम डोलरिया (Village Dolaria) में राजपूत कल्याण समिति (Rajput Welfare Committee) के पदाधिकारियों को उक्त आटे की रोटियां खिलायी गयीं।
यहां वितरित किया आटा
किसान योगेन्द्र सिंह सोलंकी ने गुरुद्वारा (Gurudwara), पूज्य सिंधी पंचायत (Pujya Sindhi Panchayat), श्री द्वारिकाधीश मंदिर (Shri Dwarkadhish Mandir) के पुजारी, साईं मंदिर (Sai Mandir) के पदाधिकारी, माता मंदिर हास्पिटल (Mata Mandir Hospital) के संचालक डॉ. अनिल सिंह, हिन्दु महासभा (Hindu Mahasabha) के प्रांतीय महामंत्री कन्हैया रैकवार और भारत सिंह को आटा दिया और कुछ को आटे की रोटियां खिलायीं।