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मुगालते में मोदी सरकार, जाते जाते बची गद्दी

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देश में 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गये हैं। यह कई मायनों में चौंकाने वाले हैं। चुनावों के दौरान मतदाताओं की चुप्पी भी इसी ओर इशारा कर रही थी कि रिजल्ट अप्रत्याशित होगा। हालांकि भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए को बहुमत मिला है, लेकिन पिछले दो चुनावों की अपेक्षा भाजपा पिछड़ गई है, उसे पूर्व की तरह बहुमत नहीं मिला है। राजनीतिक समीकरण कुछ भी करा सकते हैं, लेकिन फिलहाल तो यही तस्वीर दिखाई दे रही है कि नरेंद्र मोदी लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने वाले देश के दूसरे पीएम बनने जा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के क्या मायने हैं? यह चिंताजनक है कि बीते एक दशक बाद मतदाताओं ने फिर से किसी एक दल को बहुमत नहीं दिया। भाजपा भी बहुमत से पिछड़ गई। बहुमत एनडीए को मिला है। इस तरह से वोट कर देश के मतदाताओं ने क्या संदेश दिया, इसे समझना मुश्किल है। मतदाताओं ने एक्जिट पोल से परे परिणाम चुनावों में दिया है। हालांकि दस वर्ष से शासन कर रही सरकार को ही मतदाताओं ने तीसरा मौका दिया है। एनडीए के नंबर भी कम आए हैं, लेकिन वे बहुमत के आंकड़े से ऊपर चले गये। अब सरकार तो होगी, एनडीए की। लेकिन, नरेन्द्र मोदी पूर्व की तरह उतने मजबूत प्रधानमंत्री नहीं होंगे। दरअसल, मतदाताओं की अपेक्षाओं को भाजपा समझ नहीं सकी। खुदमुख्तारी में लीन पार्टी ने राम मंदिर, मोदी का चेहरा, राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों को भुनाने की कोशिश की और जनता से सीधे जुड़े मुद्दे महंगाई, बेरोजगारी, दैनिक परेशानियों को पीछे कर दिया। लगभग 63 सीटों का नुकसान भाजपा को और एनडीए को 52 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। नुकसान अवश्य हुआ लेकिन एनडीए हारा नहीं बल्कि बहुमत में ही आया है। कमजोर अब भी नहीं है, क्योंकि बहुमत से बहुत ज्यादा सीटें उसके पास हैं। आंध्र के चंद्रबाबू नायडू और बिहार के नीतिश बाबू का साथ पाकर भाजपा सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ेगी। यूपी, महाराष्ट्र, बंगाल और बिहार में भाजपा की सीटें कम हो गयीं जबकि यूपी से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। यूपी साथ देता तो भाजपा को अकेले दम पर बहुमत मिल सकता था।
विपक्ष को उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली है। इसके पीछे उसका प्रभावी तरीके से चुनाव प्रचार, राहुल गांधी की यात्रा, एकसाथ मिलकर जनता के मन में लोकतंत्र खतरे में है, जैसी बातें बिठाना, महंगाई और बेरोजगारी सहित अन्य मुद्दों को जोरदार तरीके से मतदाताओं के समक्ष रखना ही प्रभावी रहा है। यूपी के लड़के इस बार उत्तरप्रदेश में चल निकला और नतीजा यह रहा कि यहां सपा और कांग्रेस दोनों को फायदा हो गया। अब मतदाताओं ने इन पार्टियों को जिस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है कि दोनों पक्षों की सरकार बनाने की लालसा जागृत हो गयी है। एनडीए तो बहुमत में है ही, इंडी गठबंधन भी सरकार बनाने के लिए जोड़तोड़ की रणनीति पर काम कर सकती है। वैसे भाजपा को यह अंदाज हो गया था कि दस वर्ष की सत्ता के बाद एंटी इनकम्बेंसी हो सकती है, शायद इसीलिए उसने अंतिम समय में एनडीए में नये साथी चुने। सबसे पहले नीतिश बाबू की वापसी करायी और चंद्रबाबू को भी अपने पाले में लिया। एचडी देवेगौड़ा से गठबंधन किया।
अयोध्या में भव्य राम मंदिर, हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन जैसी बड़ी सौगातें देकर वहां रोजगार के अवसर प्रदान करके भी उत्तरप्रदेश में भाजपा अपने प्रदर्शन को नहीं दोहरा सकी। यहां सपा और कांग्रेस ने राम मंदिर के न्यौता को ठुकराकर भी सफलता हासिल कर ली। भाजपा केवल राम मंदिर के मुद्दे को भुनाकर वैतरणी पार लगने की उम्मीद लगा बैठी थी। इसी मुद्दे ने भाजपा को दो सांसदों से दो बार पूर्ण बहुमत से सत्ता दिलायी। इससे पहले अटल जी के नेतृत्व में दो बार सत्ता भी इसी मुद्दे के कारण मिली, लेकिन जब मंदिर बन गया तो जनता ने भाजपा को ध्यान लगाने भेज दिया, यह आत्ममंथन करने के लिए आखिर कहां चूक हो गयी? उत्तरप्रदेश में कमी सीटों के कारण ही भाजपा अपने बूते पर बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी। कहा तो यह भी जा रहा है कि मोदी और शाह की जोड़ी के आगे पार्टी के अन्य नेताओं की चमक फीकी हो गयी थी। मोदी संघ से भी आगे चलने लगे थे, और यही कारण है कि संघ मोदी को अपनी सही स्थिति दिखाना चाहता था और उसने इसके लिए योगी का सहारा लिया। एक बात और कि मोदी शाह के निर्णयों में तानाशाही झलक स्पष्ट नजर आने लगी थी। जांच एजेंसियों के माध्यम से विपक्षी नेताओं के घर रेड, जांच, दो मुख्यमंत्रियों को जेल भेजना, लगातार विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई और अंधाधुंध दलबदल को बढ़ावा देने की नीति ने मतदाताओं के मन में विपक्ष के प्रति घृणा की जगह सहानुभूति की लहर बन गयी। इन सबके बीच मध्यप्रदेश ने भाजपा को भरपूर साथ दिया। इसके पीछे मुख्यमंत्री मोहन यादव, प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने पूरा प्रदेश कदमों से नाप दिया। अथक मेहनत का परिणाम यह रहा कि भाजपा को यहां सभी 29 सीटें मिल गयीं। मुख्यमंत्री मोहन यादव तो अपनी पहली परीक्षा में मैरिट सूची में आ गये। अब एनडीए और इंडी गठबंधन दोनों सरकार बनाने के लिए प्रयास में जुटी हैं, अगले कुछ दिनों में स्पष्ट हो जाएगा कि आखिर सत्ता का ताज किसके सिर पर रखा जाएगा। फिलहाल इंतजार ही करना लाजमी है।

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