राजनर्तकी ने काव्य कौशल से की जब अपने पवित्र प्रेम की रक्षा…

Post by: Poonam Soni

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झरोखा :  पंकज पटेरिया/ विश्व प्रसिद्ध भगवान राम राजा सरकार की म.प्र. जिला टीकमगढ़ स्थित ओरछा नगरी। बुंदेलखंड का गौरव किरीट है। रामजी यहां के राजा सरकार है, उन्हें रोज गॉड ऑफ ऑनर दिया जाता है और किसी भी वी आई पी को नहीं। उनकी हाजरी में म.प्र शासन की तरफ से सशस्त्र पुलिस टुकड़ी तैनात है। ओरछा भव्य मन्दिर महलों छतरियो कल कल बहती बेतवा,सुरम्य वन अंचल की सुंदरता के कारण पर्यटकों को प्रिय स्थली है। यही की थी अनिद्य सुंदरी कुशल नर्तकी भावुक कवियत्री राय प्रवीण। वे माधो लुहार की बेटी थी। एक सुबह शिकार पर निकले ओरछा नरेश मधुकर शाह के पुत्र राजकुमार इंद्रजीत चक्की चलाते गाते रायप्रवीण के मधुर गीत सुन मोहित हो गए। इन्द्र जीत उन्हें उनके गांव से ओरछा शिक्षा दीक्षा के लिए ले आए। यहां महाकवि केशवदास महा राज ने अपनी काव्य प्रिया की प्रतिभा को तराश कर चार चांद लगा दिए। केशव दास की रचित पदो पर राय प्रवीण पर मोहक नृत्य गायन करती थी। इंद्रजीत उन्हें अपनी प्रेयसी मान बैठे थे, तो सुंदर बाला भी उनसे प्रेम करने लगीं। दिन ब दिन फैलती राय प्रवीण की ख्याति मुगल दरबार तक पहुंची, और बादशाह अकबर इतने बावले हो गए कि उन्होंने राय प्रवीण को
अपने दरबार हाजिर होने का फरमान ओरछा नरेश को भेजा तथा हुक्म की नाफर मानी पर एक करोड़ जुर्माना की सजा भी मुकर्रर की गई। अकबर के हुक्म को न मानना मुमकिन नहीं था। लिहाजा रूपसी गुरु महाकवि केश वदास के साथ अकबर दरबार आगरा पहुंची। अकबर और उनके बीच मोहक काव्य संवाद हुआ। उनकी सुंदरता और प्रतिभा से अभिभूत बादशाह उन्हें अपने हरम में रखने मन बना चुका था। बुद्धि की धनी राय प्रवीण बादशाह की मंशा को भाप गई। तत्काल उसने बादशाह को एक दो हा सुना दिया विनती राय प्रवीण की शाह सुजान जूठी पातर भखत है, बारी बायस स्नान जिसका अर्थ यह है कि वह किसी और को अपना हृदय दे चुकी है, जूठी पत्तल लिहाजा केवल कौवे कुत्ते ही खाते है। यह सुनकर अकबर बादशाह राय की प्रतिभा और दोहे में छिपे संकेत को समझ गया,तत्काल ढेर सारे उपहारों के साथ उसने राय प्रवीण को ओरछा विदा किया। इधर त्रासदी यह हुई,उत्कट प्रणय के बाद भी इंद्रजीत ओर राय प्रवीण विवाह बन्धन में नहीं बन्ध सके। कहते है नर्तकी राय प्रवीण ने आत्मदाह कर प्रा नो की आहुति देदी, तो दुखी इंद्रजीत ने भी जीवन लीला ख़तम कर ली। इन्द्र जीत प्रवीण को उपहार एक भव्य महल बनवाया था,जो आज भी उनके अधूरे प्रेम की दुखद कथा सुनाता वीरान खड़ा है। यद्यपि सरकारी संरक्षण में। महाकवि केशव जयंती महोत्सव के आमंत्रण पर इस लेखक को खमोश खड़े शून्य में संवाद करते राय प्रवीण महल को देखा है। मुंबई दिल्ली रेल लाइन झा सी पहुंच कर कुल जमा 17 किलो मीटर दूर स्थित ओरछा नगर आसानी जाया जा सकता है। आप भी जाइए। जय राम राजा सरकार जु की।

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पंकज पटेरिया, वरिष्ठ पत्रकार/कवि,
संपादक:शब्द ध्वज मोब: 989390303

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