झरोखा: बेइंतहा पड़ रही सर्दी से ठिठुरते और कंपकपाते, नर्मदांचल की धमनियों में नगर पालिका चुनाव की कुनमुनाहट बहने लगी है। हालाकि अभी वक्त है, लेकिन जब ठंड बढ़ने लगती तो आपस में हथेलिया रगड़ने का अलग लुत्फ है, यह हमारी आदि परम्परा है, लिहाजा लोग इस गौरव कार्य में लग गए। अपनी अपनी उर्सी, अंगीठी,अलाब ओर कुछ नहीं तो इधर उधर कूड़ा कचरा एकत्र कर सुलगा, टाईम पास मूंगफली शैली में हाथ तापने लगे है। बहरहाल चुनाव चर्चा की गरमाहट सूबे की फिजा में घुलने की इस बेला में चाय ठेले, हाठ, बाट, घाट, बाग गोया मिले चार यार, लग जाता चुनाव चर्चा बाजार। लोग उड़ाने लगते अपने अपने पर बेपर के परिंदे, भले उनके अभी पंख भी खुले नहीं, फुदकना भी नहीं जानते। यूं हुआ तो इतना भर है कि सामान्य असामान्य ओबीसी, महिला रिजर्व वार्ड की घोषणा भर हुई है, पर भाई लोगो ने अपने अपने अरबी घोड़े रेस कोट में दौड़ा दिए ओर छोडना शुरू कर दिए कयास के कबूतर उनके पंख भी पूरे नहीं खुले,ओर न उनके अपने गुम्बद, कंगूरे का ठौर ठिकाना पता, लेकिन चर्चा का चाट ठेला चलाने में रोक थोड़ी ही है। चुनाव नपा, विधानसभा, पंचायत अथवा अमेरिका प्रेसिडेंट के हो, इनके अनमोल बोल डेट से लेकर से लेकर चुनाव के नतीजे तक एलान कर देते है। जैसे इन्हें ऊपर वाले ने मोबाइल पर पहले सब मेसेज कर दिया हो। जब की अभी कोई मंजर साफ नहीं, न कोई सूरत मूरत। चलिए हमे क्या उधो से लेना क्या माधो से। हम तो अमर कवि विपिन जोशी की पंक्तियां में हर आने वाले की आहट सुन आनंदित हूं, स्मरण कर खुश हो लेते है। हां बकोल इस शेर के यह जरूर है। एक चेहरे पर से पर्दा के इ चेहरे है,आज इंसान की तस्वीर बनाना मुश्किल है।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateria),वरिष्ठ पत्रकार कवि
सम्पादक शब्द ध्वज,9893903003,9407505691