शरद पूर्णिमा वाला चांद
रजत रशिमयो वाला चांद,
दो मेहंदी वाले हाथो से,
मुंह अपना छिपता चांद,
तुम चांद की जैसी लगती
तुम जैसा ही लगता चांद,
छिप छिप जाता बादल में
घुंघट में मुस्कुराता चांद,
संग चांदनी चन्दन गंधा
कभी टहलता रहता चांद,
आदमगढ़ पहाडी पर
उदास बैठा तनहा चांद,
कभी कभी खिड़की पर आता
खोया खोया रहता चांद,
झिलमिला जाता यादों में
कभी अरसे पहले देखा चांद।।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
होशंगाबाद, 9893903003