पंकज पटेरिया/ उनका दर्शन देव पुरूष का दिव्य दर्शन था, उनका सानिध्य आलौकिक अनुभूति से मन प्राणों को भिगों देता था। और जीवन जैसे पूजा का अभिन्न अंग ऊदवती जो स्वयं निरंतर जलती रहती लेकिन परिवेश को सुवासित करती रहती। ऐसे ही बहुमुखी प्रतिभा की धनी थे, पंडित रामनारायण जी दुबे नर्मदांचल आकाश के एक ऐसे जाज्लयमान, नक्षत्र थे, जिनकी यश र्कीति केवल देश में नहीं लेकिन विश्व की हवायों में घुल मिल गई थी। दुबे जी को आत्मीयभाव से लोग राम दादा कहते थे। राम दादा दरअसल अत्यन्त सहज सरल सौम्य व्यक्ति थे। नृत्य,नाटय,गायन के अलावा एक महान चित्रकार भी थे। इस सब के बावजूद वे प्रचार प्रसार से दुर एक मौन साधक थे, ओर निरंतर अपनी साधना में जीवनपर्यत लीन रहे। राम दादा का जन्म 18 मई 1910 में होशंगाबाद (म.प्र.) मे हुआ था, उनके पिता पंडित नन्दलाल दुबे टेजरी एकाउन्टेट थे। राम दादा पहली अग्रेजी में पढते थे, तभी उनकी जीवन संगनी तूलिका हो गई थी, लिहाजा उन्होने शादी नही की ओर चित्रकला को ही अपना जीवन सर्मपित कर दिया था। चित्रकला की ऐसी कोई शैली नही थी, जिसपर उन्होंने काम नही किया हो ब्लाकि हर पेन्टिग को नया फ्रेम दिया ओर मन्त्रमुग्ध दर्शकों ने तारीफ के ढेर-ढेर गुलाब मौहक पेन्टिग पर बरसाए। वे एक विद्ववान शिक्षक भी थे, दादा ने नागपुर से एफ.ए. पास किया ओर जबलपुर से डिप्लोमा इन टीचिंग ली। तभी आप महाकवि माखनलाल चतुर्वेदी, पंडित भवानी प्रसाद तिवारी, सुभद्रा कुमारी चैहान, शाखाल साहब आदि के निकट सम्र्पक में आये, ओर इन विभूतियों से जीवन भर आत्मीय संबंध में बंधे रहे। इस महान चित्रकार ने चित्रकारिता से अपने रिश्तें के चलते अपने एक नेत्र की भी आहुति दे दी थी। इसका भी एक किस्सा है,टीचर टेनिंग के बाद उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर अंग्रेज सरकार ने उन्हें अध्यापक नियुक्त कर दिया था। उस समय सरमुलाम मोहद्दीन सुफी इस्पेक्टर आफॅ स्कूल थे, वे राम दादा की सुंदर लिखावट और पेन्टिग के ऐसे मुरीद हुए कि उन्होंने उनसे अपनी किताबों के लिए, चित्र बनाने के लिए गुजारिश करी, दादा तत्काल राजी हो गऐ। राम दादा ने रात दिन कठिन परिश्रम कर सुफी साहब की किताबें क्रमशः हिस्ट्री आफॅ कश्मीर, कश्मीर एट दा टाइम आफॅ सुल्तान जैनीबद्दीन, कंट्रीव्यूशन आफ इस्लाम टू दा वल्र्ड के लिए रात रात भर जागकर पेन्टिग की। इसके चलते उनकी एक आंख एक इंच से भी ज्यादा अन्दर धस गई थी। दादा ने अपना वचन निभाया था, लेकिन सुफी साहब जिन्हें इन्ही किताबों पर आक्सफोर्ड फिलाडेल्फिया, रोम ओर पेरिस से डाक्टेट मिली लेकिन उन्होंने दुबे दादा को कुछ पारिश्रमिक देना तो दुर उनका नाम भी किताबों में चित्रकार के नाते नही दिया। इस लेखक ने दादा के जीवन काल में इस बात पर एतराज किया तो वे सहज मुस्कान विखेरते बोले बेटा खुशबू तो हिन्दुस्तानी रहेगी, वह थोडी बदलती। नाम दाम न मिला तो कुछ नही जीवन के संध्याकाल में तात्कालिक सरकार से बडी लिखा पडी कर उनकी 300 रू/- पेंशन शुरू करवाई थी, उसे भी वे आधीपोनी जरूरत बन्दों को दे देते थे। जीवन की शाम में वे पोसकार्ड साइज के पोसकार्ड पर राम राम लिखते भगवान राम के चित्र बनाये करते थे। मेने एक बार उनसे फोटो मांगा तो उन्होने राम राम लिखा राम जी का ही फोटो मुझे दिया था ओर बोले थे कि राम मे ही लीन होना है। इस लिए राम रामम ही लिखता रहता हूॅ, अन्त में राम राम लिखते ही 15 फरवरी 1989 को राम में ही लीन हो गये राम दादा। उनकी स्मृति को प्रणाम।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateria)
मो. न. 9893903003,9407505691