भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही त्याग की भावना आती है : डॉ. जैन

Rohit Nage

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The feeling of sacrifice comes only by purifying the inner soul: Dr. Jain

इटारसी। इन दिनों जैन समाज (Jain Samaj) का पर्यूषण पर्व (Paryushan Parva) चल रहा है और प्रतिदिन प्रवचन चल रहे हैं। पहली लाइन स्थित श्री चैत्यालय (Shri Chaityalaya) में इंदौर (Indore) के पंडित डॉ. उदय कुमार जैन (Dr. Uday Kumar Jain) ने आज उत्तम त्याग धर्म पर उद्गार प्रस्तुत किये।

उन्होंने कहा कि उत्तम त्याग धर्म हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाकर ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग करना मुमकिन है। त्याग की भावना भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही होती है।

आत्म शुद्धि के उद्देश्य से क्रोध, मान, माया और लोभ आदि विकारी भावों को छोडऩा तथा स्व और पर के उपकार की दृष्टि से अपने उपभोग के धन-धान्य आदि पदार्थों का सुपात्र को दान करना भी त्याग धर्म है।

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