फसल विविधिकरण न होने से कम हो रही जिले में भूमि की उर्वरा शक्ति

Post by: Rohit Nage

The fertility of land in the district is decreasing due to lack of crop diversification.
  • उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए फसल का विविधिकरण होना जरूरी है

नर्मदापुरम। जिले में फसल चक्र के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति प्रतिदिन कम हो रही है। भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए फसल का विविधिकरण होना जरूरी है। हमारे यहां धान-गेहूं-मूंग का फसल चक्र है, इसके कारण उर्वरा शक्ति कम हो रही है। कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि इसे बदलने की जरूरत है। फसल विविधिकरण की दिशा में किसानों को अपने प्रक्षेत्र में गेहूं की बजाए सरसों की फसल लेना चाहिए, जिसकी अच्छी मांग भी है।

नर्मदापुरम जिले में एक प्रकार का फसल चक्र (धान-गेहूं-मूंग) के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति दिन प्रति कम होती जा रही है जिसका प्रमुख कारण जिले में फसल विविधिकरण का न होना है। लगातार धान गेहूं के कारण मिट्टी लगातार कठोर होती जा रही हैं। जिसके कारण उत्पादन स्थिर या धीरे-धीरे कम होता है। इन सब समस्याओं का हल फसल विविधिकरण है। वर्तमान समय में किसानों की सोयाबीन तथा उड़द की फसल पक कर तैयार हो रही है। किसान अपने प्रक्षेत्र में गेहूं की बजाय सरसों की खेती करें तो बेहतर नतीजे मिल सकते हैं।

वर्तमान में सरसों की फसल किसानों के लिए लाभ का धंधा बन कर उभर रही है। सरसों की फसल लगाने का उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 25 अक्टूबर होता है। सरसों की फसल एक उचित फसल चक्र को दर्शाता हैं जैसे एक खाद्यान फसल के बाद तिलहन फसल तथा उसके बाद दलहन फसल। इस प्रकार का फसल चक्र मिट्टी की उर्वरता एवं पर्यावरण को संतुलित बनाये रखता है।

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त पैरामीटर –

  • बुवाई का समय : 15 अक्टूबर से 20 अक्टूबर
  • मिट्टी : लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में इसका उत्पादन आसानी से हो जाता है। जल भराव वाली मिट्टी उपयुक्त नहीं होती है।
  • खेत की तैयारी : बेहतर अंकुरण के लिए अच्छी जुताई वाली साफ और अच्छी तरह से भुरभुरी बीज क्यारी की जरूरत होती है। पहले गहरी जुताई करके भूमि को अच्छी तरह से तैयार किया जाना चाहिए, उसके बाद दो क्रॉस हैरोइंग करनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत से खरपतवार और ठूंठ अच्छी तरह से हटा दिए हों और मिट्टी में पर्याप्त नमी हो।
  • बीज दर : 1.5-2 किग्राम प्रति एकड़
  • खाद एवं उर्वरक : एफवायएम 5-8 टन प्रति एकड़ एवं 25-30 किग्रा नत्रजन, 20-25 किग्रा फॉस्फोरस तथा 15-18 किग्रा पोटाश की आवश्यक होती है।
  • सिंचाई : फूल खिलने से पहले और फली भरने की अवस्था में दो सिंचाई लाभदायक होती है।
  • उन्नत किस्मे – DRMRIJ-31 (गिरिराज), DRMRIC 16-38 (ब्रजराज), DRMR 2017-15 (राधिका), RH-725, RH-761 आदि।
error: Content is protected !!