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सुमन कल्याणपुर की आवाज में होता था लता जी आवाज का भ्रम

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: अखिलेश शुक्ल –
सुमनकल्याणपुर आज करीब 85 वर्ष की हैं, एक ऐसी सुरीली आवाज की मालिक, जिसे सुनकर लोगों को लता जी की आवाज का भ्रम हो जाता था। सुमन कल्याणपुर स्वयं लता जी की आवाज को बेहद पसंद करती हैं।
दोस्तों अपनी बात की शुरूआत वालीवुड इंडस्ट्री के कुछ प्रसिद्ध गीतों से कर रहा हूं …
1. ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे … (फिल्म जब जब फूल खिले 1961)
2.आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़ुबान पर सबको मालूम है और सबको खबर हो गयी…(ब्रहमचारी 1968)
3. तुमसे ओ दीवाने कभी मैंने मुहब्बत ना करनी थी। मगर इस दिल ने मुझे धोखा दे दिया…(फर्ज 1967)
मित्रों इन गीतों में किस महिला गायिका का स्वर है? आप कहेगें, यह भी कोई कहने की बात है। इसमें महान पार्श्व गायिका स्व. लता जी की स्वर है। लेकिन दोस्तों यह सच नहीं हैं। हां मैं ठीक कह रहा हूं। इन गीतों में मोहम्मद रफी साहब के साथ सुमन कल्याणपुर जी की आवाज हैं।
सबसे बडी बात महान गायिका स्व. लता जी के जैसी सुरीली मधुर कोमल आवाज वाली यह गायिका सुमन कल्याणपुर जी है। मित्रों सुमन जी के लिये स्व. लता जी जैसी मधुर आवाज वरदान की अपेक्षा अभिशाप बन गई। वे स्व. लता जी के गायन के पीछे भुला दी गई। आईये आज जानते है सुमन कल्याणपुर जी के बारे में-
यह वह दौर था जब देश आजाद होने के लिये झटपटा रहा था। देश भर में आजादी के मस्तानों की टोली घूम रही थीं। उन्हीं दिनों अविभाजित भारत के मुख्य नगर ढाका (वर्तमान में यह बांग्लादेश की राजधानी) में 28 जनवरी 1937 को सुमन जी का जन्म हुआ। उनके पिता शंकर बाबू ढाका में सेंट्रल बैंक ऑफ इडिया की शाखा में क्लर्क थे। शंकर एवं उनकी पत्नि सीता से 6 संतानें हुई। उनमें सुमन जी सबसे बडी थी।
शंकर बाबू पारिवारिक कारणों से सन 1943 में बंबई (आज का मुम्बई) आ गये। सुमन जी को बचपन से ही संगीत से लगाव था। वे चित्रकला तथा संगीत में बहुत अधिक रूचि लेती थीं। उनके पडौस में रहने वाले पंडित केशव राव भोले संगीत के अच्छे जानकार थे। उन्होंने जब सुमन जी को देखा तो उन्हें लगा की यह प्रतिभा यूं ही मुरझाना नहीं चाहियें। उन्होंने शंकर बाबू को सलाह दी की सुमन को संगीत की विधिवत शिक्षा दिलाई जाये। यही से सुमन जी के बचपन का गायन का यह शौक परवान चढ़ने लगा। विधिवत संगीत शिक्षा से उनके गायन में और भी निखार आया। बाद में उन्होंने गुरूजी मास्टर नवरंग, अब्दुल रहमान खान जैसे संगीत के महारथियों से जाना की कैसे गायन में गहराई, कोमलता तथा सरसता लाई जाती है।
उनका परिवार एकाकी था। किसी महिला सदस्य को घर की चहरदीवारी लांघने की अनुमति नहीं थी। लेकिन पड़ौसी केशव राव का प्रस्ताव शंकर बाबू नहीं टाल सके। केशव राव जी रेडियो स्टेशन पर काम करते थे। काफी टालमटोल के बाद शंकर बाबू ने सुमन जी को रेडियो पर गाने की अनुमति प्रदान की। यहीं से सुमन जी के सुरों का जादू बिखरना शुरू हो गया।

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फिल्मों में गायन के लिये उन्हें बहुत अधिक इंतजार नहीं करना पड़ा। सबसे पहले सन 1953 में उन्होंने मराठी फिल्म शुक्राची चांदनी में गीत गाकर उपस्थिति दर्ज कराई। उस समय के मशहूर निर्देशक शेख मुख्तार को अपनी फिल्म मंगू के लिये नये कोमल मधुर सुरों की जरूरत थी। सुमन जी ने फिल्म मंगू में संगीत निर्देशक मोहम्मद शफी के संगीत निर्देशन में तीन गीत गाये।
लेकिन हाय रे सुमन जी का दुर्भाग्य। मंगू फिल्म के रिलीज होने से पहले ही उसके संगीत का दायित्व ओपी नैयर को सौंप दिया गया। ओ. पी. नैयर गीतों के प्रस्तुतिकरण में किसी तरह की रिस्क नहीं लेना चाहते थे। इसलिये उन्होंने इस फिल्म के केवल एक गीत को जगह दी जिसे सुमन जी ने गाया था। गीत था, कोई पुकारे धीरे से तुझे… के साथ सुमन जी ने अपना केरियर बतौर पार्श्व गायिका शुरू किया।

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सुमन जी ने अपने केरियर में लगभग एक हजार गाने गाये हैं। तलत महमूद के साथ ही उन्होंने मोहम्मद रफी साहब एवं मुकेश जी के साथ सुरों को साधा है। उन्होंने हिंदी ही नहीं मराठी, गुजराती मैथिली, तमिल के साथ ही कई भारतीय भाषाओं के गीतो को अपना कंठ दिया।
आप कभी, गीत दिल ने फिर याद किया… (फिल्म दिल ने फिर याद किया 1966) गीत सुनें। इसे सुमन जी ने रफी साहब तथा मुकेश जी के साथ गाया है। आपको एक अलग ही अहसास होगा। वह अहसास आपकी अंतरात्मा की गहराई को छू लेगा। यह आज के बनावटी गीतों में संभव नहीं है।
दोस्तों याद कीजिये 6 वें और सांतवें दशक वह दौर जब वालीवुड के गीतों की दुनिया दीवानी थी। उस दौर में स्व. लता जी का परचम लहराया करता था। मुकेश जी, रफी साहब तथा किशोर दा अपना अलग ही जलवा था।
उस दौर में जब निर्माता निर्देशक स्व. लता जी तक नहीं पहुंच पाते थे तब सुमन जी को विकल्प के तौर पर चुनते थें। सुमन जी महान गायिका स्व. लता जी का विकल्प थीं। और ऐसा विकल्प जिसे फिल्म इंडस्ट्री हृदय से स्वीकारती थी। स्व. लता जी आशा भोसले, उषा मंगेशकर जैसी ख्यातिनाम गायिकों के बीच उभरकर शीर्ष पर पहुंचने के प्रयास में सुमन जी पीछे रह गई। इसके पीछे प्रमुख कारण उनकी आवाज का स्व. लता जी से मिलता जुलता होना था।
सुमन जी का रफी साहब के साथ पार्श्व गायन का अजीब संयोग है। जब रायल्टी को लेकर स्व. लता जी एवं रफी साहब में अनबन हो गई उस समय दोनों ने एक दूसरे के साथ गाने से इंकार कर दिया। उस वक्त रफी साहब के साथ विकल्प के तौर पर सुमन जी थीं। सुमन जी की उस गोल्डन इरा में दोनों ने 140 से अधिक गीत गाये। यह सभी गीत बेहद पापुलर हुये।
सुमन जी के भारतीय संगीत में योगदान को उस वक्त महाराष्ट्र सरकार ने परखा। सन 2010 में उन्हें लता मंगेशकर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
सबसे प्रमुख बात, सुमन कल्याणपुर ने कभी भी अपने साथ होने वाले व्यवहार को प्रगट नहीं होने दिया। वे अपना काम बाखूबी करती रहीं। दोस्तों यह सच है कि यदि स्व. लता जी भारत में जन्मी नहीं होती तो शायद सुमन कल्याणपुर प्रथम पायदान की पार्श्व गायिका होती?
उनका गाया गीत बहना ने भाई कलाई पर प्यार बांधा है… (फिल्म रेशम की डोरी 1974) आज भी लोकप्रिय है। जिसे आप रक्षा बंधन पर सुनते हैं।
सुमन जी वालीवुड में संगीत के क्षेत्र की राजनीति से उब चुकी थीं। उन्हें लगने लगा था कि उनका अब यहां कोई भविष्य नहीं है। इस शानदार पार्श्व गायिका ने सन 1981 सुपर हिट मूवी नसीब में आखिरी बार गीत गाया। जिसके बोल थे, जिंदगी इम्तहान लेती है …(फिल्म नसीब 1981)
मुझे उम्मीद है जब भी आप किसी पुरानी हिंदी फिल्म का गीत सुनेगें। उसमें महिला प्ले बैक सिंगर का नाम जरूर जानना चाहेगें? क्या पता शायद वह गीत भी सुमन जी का गाया हुआ गीत हो?

AKHILESH SHUKLA
अखिलेश शुक्ल
इ-समीक्षक, लेखक व साहित्यकार
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