इटारसी। पितृपक्ष आरंभ की पूर्णिमा 7 सितंबर को हुये चंद्रग्रहण के 15 दिन बाद अब अमावस्या पर सूर्यग्रहण की खगोलीय घटना होने जा रही है । हालांकि यह भारत में नहीं दिखेगा। जोड़ी के रूप मे हुये इन दोनो ग्रहण की घटना के बाद अगला ग्रहण किस महीने में हो सकता है इस बारे में आमलोग कम ही सोचते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ग्रहण भी एक निश्चित अंतराल के बाद होते हैं। ग्रहण के टाइम टेबिल की प्रकृति को बताने बृहस्पति साइंस सेंटर के डायरेक्टर राजेश पाराशर ने ग्रहणज्ञान कार्यक्रम का आयोजन किया ।
राजेश पाराशर ने बताया कि अंतरिक्ष मे सूर्य की परिक्रमा पृथ्वी कर रही है और पृथ्वी की परिक्रमा चंद्रमा कर रहा है। परिक्रमा के दौरान जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा आ जाता है तब सूर्यग्रहण होता है और जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो चंद्रग्रहण होता है। राजेश पाराशर ने बताया कि चंद्रमा की कक्षा, पृथ्वी की कक्षा को दो बिंदुओं पर काटती है जिन्हें नोडस कहा जाता है। जब ये पिंड इन नोडस के पास होता हे तो ग्रहण हो सकता है। यह समय ग्रहण का मौसम या इकलिप्स सीजन कहलाता है जो कि लगभग 35 दिन का होता है। इस एक मौसम में कम से कम दो और अधिकतम 3 ग्रहण हो सकते हैं।
ग्रहण के इस मौसम के लगभग 173 दिन या छह महीने बाद जब ये पिंड विपरीत नोड पर पहुंचेंगे तो फिर ग्रहण का मौसम आता है। इस तरह साल में लगभग हर छह माह में ग्रहण का मौसम आता है जिसमें कम से कम दो ग्रहण होते हैं। राजेश पाराशर ने बताया कि हर छह माह में ग्रहण मौसम के कारण ही इस साल 2025 में मार्च माह में दो ग्रहण की जोड़ी होने के लगभग 6 माह ही ये दोनों ग्रहण अब सितंबर में हो रहे हैं। लगभग छह माह बाद फिर नया ग्रहण मौसम फरवरी मार्च 2026 में आयेगा तब फिर दो ग्रहण होंगे। कार्यक्रम में एमएस नरवरिया ने सहयोग किया। कार्यक्रम का आयोजन सांई फाच्र्यून सिटी इटारसी में किया। तो अब आप बिना कैलेंडर या पंचाग, जानिये आगामी ग्रहण माह का ज्ञान








