इटारसी। जब संपूर्ण मानव जाति की जान को खतरा हो, तो स्वास्थ्य विभाग से चूक होने की जरा भी गुजाइश नहीं होनी चाहिए। वह भी एक बार नहीं बल्कि तीन बार। धरती के भगवान का दर्जा प्राप्त डॉक्टर यदि इस तरह से कार्य करने लगेंगे तो फिर जान बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा। वैश्विक महामारी के दौर में यह कार्य अक्षम्य ही माना जाएगा, कि मरीज अस्पताल में भर्ती होते हैं, यहां से बिना कोरोना की जांच किये रैफर हो जाते हैं और उस पर बड़ी लापरवाही यह है कि जिला अस्पताल में भी उनकी कोरोना जांच नहीं कराके भोपाल रैफर कर दिया जाता है। भोपाल में जब सेंपल लेकर जांच होती है तो वे सभी कोरोना पॉजिटिव निकलते हैं। आखिर यह चूक कैसे हो गयी? इस तरह की चूक के नतीजे कितने भयावह होंगे, इसकी कल्पना मात्र से सिहरन उत्पन्न हो जाती है। जब संपूर्ण विश्व कई मानव जान खो चुका हो, उस वक्त ऐसी बातों को कतई नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। जब शहर एक काबिल डाक्टर के अलावा एक अन्य की मौत देख चुका है, ऐसे में आखिर ऐसी चूक होना किस ओर इशारा करता है?
यहां से रोग नहीं लगा
यहां भर्ती होने के बाद रैफर किये गये मरीजों का कोरोना पॉजिटिव पाये जाने से तो यह मांग भी उठना चाहिए कि यहां के सरकारी अस्पताल में इस एकमाह में भर्ती मरीजों का रिकार्ड निकालकर सभी की जांच करायी जानी चाहिए। हालांकि डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी शासकीय अस्पताल के अधीक्षक यह नहीं मानते कि किसी को अस्पताल से यह रोग लगा है। उनका कहना है कि यदि यहां से होता तो और भी मरीज भर्ती हैं या और भी मरीजों को रैफर किया जा रहा है, सभी को तो पॉजिटिव नहीं है। अब जिसे जैसा लग रहा है, अपनी मर्जी से मतलब निकाल रहा है। हालांकि इस शंका के लिए भी आज संपूर्ण अस्पताल को सेनेटाइज कर दिया गया है।
यहां भर्ती ही नहीं किया
बुधवार को जिस 72 वर्षीय मरीज को कोरोना पॉजिटिव आया है, वह इटारसी के सरकारी अस्पताल में भर्ती ही नहीं हुआ है। अधीक्षक डॉ. एके शिवानी का कहना है कि वह मरीज तो यहां सेंपल देने आया था। उसका सेंपल लिया और वह ओपीडी में चला गया। उसकी पुरानी सर्जिकल प्रॉब्लम है, ओपीडी में बताया तो उसे उसी समस्या के लिए होशंगाबाद रैफर किया गया था। वह यहां सेंपल देने आया था, इसकी जानकारी भी ओपीडी में पदस्थ स्टाफ को नहीं थी। उसने भी वहां यह नही बताया। ओपीडी में उसे बाहर से ही देखा और होशंगाबाद में समस्या दिखाने का कहकर रवाना कर दिया। ऐसे में यहां उसको भर्ती किया जाने का सवाल ही नहीं।
कौन होगा जिम्मेदार?
आखिर कोरोना ने विश्व में इतनी तबाही मचायी है, और यह वैश्विक महामारी घोषित किया जा चुका है तो इस मामले में इस तरह की चूक का जिम्मेदार किये माना जाए? जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सुधीर जैसानी अभी इटारसी में कैंप किये हुए हैं और सरकारी अस्पताल के अधीक्षक डॉ.एके शिवानी भी पूरे वक्त इस पर नजर रखे हुए हैं। दो-दो जिम्मेदारों के होते हुए इतनी बड़ी चूक होना, चिंता को अधिक बढ़ाने वाला ही है। बुधवार को जो मरीज पॉजिटिव आया उसके विषय में बताया जाता है कि वह भर्ती होने से मना कर रहा था फिर सवाल यह है कि आखिर किसके कहने से जिला अस्पताल में उस मरीज भर्ती किया गया है?
अस्पताल के 13 होम क्वारेंटाइन
सिविल अस्पताल के अब तक तेरह लोग होम क्वारेंटाइन किये जा चुके हैं। सरकारी अस्पताल में वैसे ही वर्षों से स्टाफ की कमी है और डाक्टर्स भी कम हैं। ऐसे में कोरोना पॉजिटिव मरीजों के संपर्क में आये तीन डाक्टर और 10 नर्सिंग स्टाफ को होम क्वारेंटाइन किया गया है। हालांकि कुछ की क्वारेंटाइन अवधि खत्म होने वाली है। लेकिन वर्तमान में तो ये तेरह लोग अस्पताल में नहीं हैं। शहर के इस एकमात्र सरकारी अस्पताल पर कोरोना के कारण वैसे ही काफी काम का दबाव है। शहर की निजी अस्पताल धीरे-धीरे ओपन हो रहे हैं, तो उम्मीद है कि यहां का दबाव कुछ कम होगा। अभी दयाल अस्पताल और जैसवानी क्लीनिक खुलने से कुछ राहत है।
इनका कहना है…!
अस्पताल से रोग लगने वाली बात कहां से आ गयी। यदि ऐसा है तो यहां तो और भी कई मरीज भर्ती हैं। वो तो पहले से ही संक्रमित रहे मरीज आये थे। यहां उनके लक्षण नहीं दिखे तो सेंपल नहीं लिया। यहां तो वे अपनी अन्य बीमारियों का इलाज कराने आये थे। जब स्थिति बिगड़ी तो रैफर कर दिया गया।
डॉ.एके शिवानी, अधीक्षक