आज का संगीत क्षणिक सुख देता है- दिलीप सेन

सुनील सोन्हिया भोपाल द्वारा विशेष साक्षात्कार

जाने-माने फिल्म संगीतकार दिलीप सेन ने बहुत सारी फिल्मों में एक से बढ़कर एक हिट गानों की सौगात दी है। जब भी कोई लड़की देखूं मेरा दिल दीवाना बोले ओले ओले, अफ़लातून अफ़लातून लगभग 1500 गानों का कर्णप्रिय संगीत देकर फिल्म जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। एक निजी कार्यक्रम में शिरकत करने आए सुप्रसिद्ध संगीतकार दिलीप सेन समीर सेन फेम दिलीप सेन से उनके कैरियर और संगीत के बदलते दौर को लेकर की गई बातचीत के कुछ अंश…

आप के समय के संगीत और आज का संगीत, क्या अंतर पाते हैं ?
– 90 के दशक में तीन लोगों का संगीत लोगों को बहुत भाया था उनमें आनंद-मिलिंद, नदीम श्रवण और दिलीप सेन समीर सेन। मुझे यह कहते हुए बड़ा गर्व महसूस होता है कि उस दौर में हमने मेलोडी पर पूरा ध्यान दिया। आज का संगीत तो बस क्षणिक सुख प्रदान करता है। यह तो बस तुरंत रिलीफ जैसा है जैसे सिर दर्द हो जाए तो कोई पेन किलर खा लो ओर कुछ देर में रिलीफ मिल जाता है परंतु पक्का फायदा नहीं होता। आज का संगीत भी ऐसा ही है हमारे समय में कहानी के हिसाब से म्यूजिक तैयार किया जाता था लेकिन आजकल फिल्मों में बस खानापूर्ति के लिए गीत रखे जाते हैं।

पुराने गानों को नए कलेवर में लपेटकर उन्हें प्रस्तुत किया जा रहा है इस बारे में आपका क्या ख्याल है ?
– आजकल के नए संगीतकार पुराने गानों की आत्मा को ही मार डाल रहे हैं। उस समय के संगीत में ओरिजिनल वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता था जिसकी मधुरता सालों-साल कायम रहती है आज भी है। पुराने गानों को नई चाशनी में लपेटकर पेश कर रहे हैं जिससे संगीत की मधुरता खत्म हो रही है। इसके लिए मैं संगीतकारों को ज्यादा जिम्मेदार नहीं मानता हूं क्योंकि आजकल के निर्माता-निर्देशक जल्दी-जल्दी फिल्म बनाना चाहते हैं। वह कहते हैं कोई पुराना गाना उठाओ और उसे आधुनिक कलेवर पहनाकर प्रस्तुत कर दो। वैसे मेरा ख्याल है यदि वह आधुनिकरण भी करना चाहते हैं तो उस गाने के वास्तविक संगीतकार से नवीनीकरण कराना चाहिए। ताकि गाने का माधुर्य बरकरार रह सके।

क्या आपको लगता है गानों में अब मेलोडी से ज्यादा म्यूजिक पर जोर दिया जा रहा है ?
– मैं ऐसा नहीं समझता क्योंकि पाश्चात्य शैली का म्यूजिक आर डी बर्मन जी सबसे पहले कर आए थे। उन्होंने भी पश्चिमी संगीत को अपने तरीके से प्रस्तुत किया था। कल्याणजी-आनंदजी भी वेस्टर्न म्यूजिक पर गाना तैयार करते थे । पर आज की तरह पब्लिक डिमांड के नाम पर फूहड़ गाने नहीं होते थे। आजकल तो लोग यह सोचते हैं कि जितना वल्गर लिखो इतना बड़ा आइटम सॉन्ग बनेगा। पब्लिक भी यही पसंद करती है तो यह पूर्णतया गलत है। यही कारण है कि आज का संगीत सिर्फ फिल्म के परदे तक ही सीमित रहता है बाहर आने के बाद पब्लिक को गाने के बोल तक याद नहीं रहते।

अवार्ड फंक्शन में पक्षपात के बारे में आपके क्या विचार  ?
– पक्षपात तो आजकल दुनिया का एक अंग बन गया है । एक कहावत है न जो दिखता है वही बिकता है। अभिनय के कैटेगरी में हो सकता है पक्षपात कम होता हो। पर म्यूजिक इंडस्ट्री की बात करें तो इसमें पक्षपात होता है।

दिलीप सेन समीर सेन के संगीत संगीतबद्ध कुछ प्रमुख फिल्में ?
– ये दिल्लगी, अनाड़ी नंबर वन, सूरमा भोपाली, जिद्दी, इतिहास ,जुल्मी, आईना, अर्जुन पंडित, अचानक, सिसकियां ,मदर, हकीकत, अफलातून ,आग ,बागी आदि।

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