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चिंता नहीं चितवन करें मानव : प्रज्ञानंद जी

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इटारसी। श्री दिगंबर जैन तारण समाज संगठन सभा इटारसी के तत्वावधान में श्री जैन चैत्यालय पहली लाइन में चल रहे श्री तत्वार्थ साधना आराधना शिविर में संतों की वाणी से पुण्य विचार प्रकट हो रहे हैं। इसका लाभ समाज को मिल रहा है।
श्री तत्वार्थ साधना शिविर में संध्याकालीन प्रवचन में प्रज्ञानंद जी महाराज ने चिंता को चिता से भी बुरी बताया। उनका कहना था कि चिंता ना करके चिंतवन करें। इस संसार में गृहस्थ को सबसे पहले धन की चिंता होती है, यदि पुण्य उदय से धन मिल जाता है तो घर की चिंता होती है। यदि घर भी बन जाए तो स्त्री के प्राप्त होने की चिंता होती है यदि स्त्री प्राप्त हो जाए तो सेवक रखने की चिंता होती है और यदि सब प्राप्त हो जाए तो फिर पुत्र होने की चिंता बनी रहती है। यदि पुत्र प्राप्त हो जाए उसके निरोग होने की चिंता लगी रहती है, कन्या होने की चिंता लगी रहती है। इस संसार में चिंता का कभी अंत नहीं होता है। यदि सुखी होना चाहते हो तो चिंताओं को त्याग कर भगवान का चिंतन करें और संसार से मुक्ति को प्राप्त करें क्योंकि चिता मुर्दों को एक बार जलाती है जबकि चिंता व्यक्ति को बार-बार जलाकर भस्म कर देती है। इसलिए अब जीवों को चिंताओं का अंत कर देना चाहिए जिससे की आत्मा अनंत सुख को प्राप्त हो जाए। इसलिए परमार्थ बुद्धि में मन लगाना चाहिए।
इससे पूर्व प्रात: कालीन प्रवचन में बाल ब्रह्मचारी बसंत जी महाराज ने कहा कि संसार में हर व्यक्ति सुख चाहता है। सुख की प्राप्ति के लिए निरंतर उपाय भी करता है किंतु यह नहीं जानता कि किस उपाय से जीवन सुखी हो सकेगा। वस्तुत: अज्ञानता दुख का कारण और आत्मा ज्ञान सुख का कारण है। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने हृदय में ज्ञान ज्योति जलाने का प्रयास करना चाहिए इससे बढ़कर सुखी होने का और कोई उपाय नहीं है। आचार्य श्री तारण स्वामी जी ने ज्ञान समुच्चय सार ग्रंथ में सम्यक ज्ञान की महिमा का कथन किया है। मनुष्य के शरीर में आज्ञा चक्र ज्ञान केंद्र के नाम से जाना जाता है आज्ञा चक्र पर ज्ञान ज्योति निरंतर जल रही है। व्यक्ति को सही अर्थों में सुखी होने के लिए ज्ञान केंद्र को सक्रिय करने का पुरुषार्थ करना चाहिए हृदय में ज्ञान का प्रकाश होना ही सुख है। जबकि अज्ञान का अंधकार दुख है। आज आम आदमी शारीरिक वस्तुओं में सुख की खोज कर रहा है किंतु अपने अंदर नहीं झकता जहां सुख समुद्र लहराहा है ।

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