ज्योर्तिलिंग के रूप में पूजे बाबा वैद्यनाथ (Baba Vaidyanath)

Post by: Manju Thakur

इटारसी। पाप का अंत होता है और पुण्य अनंत है। राक्षसी शक्तियां कुछ समय तो प्रकृति और मनुष्य सहित देवताओं को परेशान तो कर सकती हैं लेकिन उनका अंत होता ही है। देवों के देव महादेव इस हेतु ही आए कि वे देवताओं और जगत की राक्षसों से रक्षा कर सके। श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर (Shri Navgrah Durga Mandir) लक्कडग़ंज में चतुर्थ दिवस वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग (Vaidyanath jyortiling)की पूजा हुई और अभिषेक कराया गया।
मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे ने कहा कि महाराष्ट्र के परली और बिहार की चिताभूमि दो जगह वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग (Vaidyanath jyortiling) की पूजा और अभिषेक होता है। चिताभूमि में सावन मास में लाखों कावडिय़े गंगा का जल लाकर भगवान शिव को चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने पर दोबारा आते हैं। इस बार कोरोना महामारी के कारण काबड़ यात्रा नहीं निकल सकी। वहीं परली वैद्यनाथ (Vaidyanath) जो कि महाराष्ट्र के वीड जिले में है, यहां भी सावन मास में निरंतर उत्सव होते हैं। आदिगुरू शंकराचार्य ने परली के वैद्यनाथ को मान्यता दी है। वीड जिले में आंबेजोगाई से केवल 26 किमी दूरी पर यह स्थान है। ब्रह्मा वेणु और सरस्वती नदियों के आसपास वसा परली अति प्राचीन गांव है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती केवल परली में ही साथ-साथ निवास करते हैं। इसीलिए इस स्थान को अनोखी काशी भी कहते है। इस गांव का काशी जैसा महत्व होने के कारण यहां के लोगों को काशी तीर्थ यात्रा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। परली गांव के पहाड़ों में नदियों की घाटियों में उपयुक्त वन औषधियां मिलती हैं परली के ज्योर्तिलिंग को इसी कारण वैद्यनाथ नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु ने देवगणों को अमृत विजय प्राप्त करा दिया था। अत: इस तीर्थ स्थान को वैजयंती नाम भी प्राप्त हुआ। देव दानवों द्वारा किय अमृत मंथन से चौदह रत्न निकले थे उनमें धन्वंतरी और अमृत रत्न भी थे। अमृत को प्राप्त करने दानव दौड़े तब श्री विष्णु ने अमृत के संग धन्वंतरी को भी शंकर भगवान की लिंग मूर्ति में छिपा दिया था। दानवों ने जैसे लिंग मूर्ति को छूना चाहा वैसे लिंग मूर्ति से ज्वालायें निकली और दानव भाग खड़े हुए। परंतु शिव भक्तों ने जब लिंगमूर्ति को छुआ तब उसमें से अमृत धारायें निकली। परली में जाति और लिंग भेद नहीं होगा। आचार्य पं. विनोद दुबे ने कहा कि वैद्यनाथ लिंग मूर्ति में धन्वंतरी और अमृत होने के कारण इसे अमृतेश्वर तथा धन्वंतरी भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि शिव भक्त रावण की बर्बादी का श्राप भी यहीं से शुरू हुआ। यही पर मार्केण्डेय ऋषि को शिवजी की कृपा से जीवनदान मिला। उनकी अल्पायु को यमराज की पकड़ से शिवजी ने मुक्त किया था। उनकी स्मृति में यहां मार्केण्डेय सरोवर बना हुआ है। ज्योर्तिलिंग के पूजन और अभिषेक में सत्येन्द्र पांडे, पीयूष पांडे निरंतर सहयोग कर रहे हैं।

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