नर्मदा विस्थापितों का पुनर्वास कोर्ट के आदेशानुसार करे

Post by: Manju Thakur

समाजवादी जन परिषद और श्रमिक आदिवासी संगठन ने की सरकार से मांग
इटारसी। समाजवादी जन परिषद, किसान आदिवासी संगठन एवं श्रमिक आदिवासी संगठन ने आज जारी विज्ञप्ति में कहा कि मेधा पाटकर और 11 अन्य साथी कोई मरने के लिए अनशन पर नहीं बैठे थे, बल्कि वो बांध में पानी भरने के पहले सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों के तहत 45 हजार नर्मदा विस्थापित परिवार के पुनर्वास की मांग को लेकर बैठे थे। सजप की प्रदेश अध्यक्ष स्मिता ने मेधा पाटकर सहित सभी आंदोलनकारी की तुरंत रिहाई की मांग करते हुए कहा कि, मप्र सरकार मेधा के स्वास्थ्य की चिंता का नाटक बंद करे और जो मुद्दा नर्मदा बचाओ आंदोलन उठा रहा है, उसे हल करे। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो उनसे जुड़े गांवों और शहरों में आन्दोलन होगा।
सजप के अनुराग मोदी ने कहा कि विकास ने नाम पर बिना पुनर्वास के लाखों लोगों को बांध में पानी भर और पुलिस के दम पर उजाड़ देना कौन-सा न्याय है? सरकार बार-बार इस बात को बढ़ा-चढ़कर मीडिया में पेश कर रही है, कि धार कलेक्टर ने कई बार मेधा से अनशन तोडऩे का निवेदन किया, वो नहीं मानी। जब्कि, वो इस बात पर मौन है कि नर्मदा विस्थापित पिछले 30 सालों से सरकार से नियम के अनुसार पुनर्वास करने जो निवेदन कर रहे हैं, उसपर उन्होंने अब-तक क्या किया? किसान आदिवासी संगठन के फागराम ने कहा, वो 1960-70 के दशक में बने तवा बांध से विस्थापित परिवार से हैं, उन्हें पुनर्वास क्या होता है, मालूम ही नहीं था। इसलिए पानी भरने पर ऐसे ही दूसरी जगह भागे, पहली बार, नर्मदा बचाओ आंदोलन ने उचित पुनर्वास की लड़ाई लड़ी। श्रमिक आदिवासी संगठन के राजेन्द्र गढ़वाल ने कहा कि शिवराज सरकार पुलिस के दम पर आंदोलनकारियों की आवाज न दबाए। अगर सरकार ने अपनी कार्यवाही नहीं रोकी तो जरूरत पडऩे पर प्रदेश के किसान, आदिवासी सरकार के इस दादागिरी के खिलाफ आवाज उठाएंगे।

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