होशंगाबाद। पुण्य सलिला नर्मदा जी के जग प्रसिद्ध मां की गोद से सेठानी घाट, (SethaniGhat) स्थित भव्य प्राचीन मंदिरों की श्रृंखला। इन्हीं के मध्य में है, प्राचीन सिद्ध नर्मदेश्वर महादेव (Narmadeshwar Mahadev) जी का मनोहारी मन्दिर। इस प्रसिद्ध मन्दिर के निर्माण का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना घाट का। जनहित में महादान शीला सेठानी जी (Sheela sethani ji) और सहृदय अंग्रेज कलेक्टर(Collector) की पहल और आर्थिक सहयोग से सन् 1881 में सेठानी घाट (SethaniGhat) का निर्माण शुरू हुआ। तभी नर्मदा जी से प्राप्त नर्मदेश्वर(Narmadeshwar) की स्थापना की गई। तभी से पूजा पाठ और रुद्राभिषेक का श्री गणेश प्रख्यात पुरोहित बह्मलीन तीर्थराज पण्डित गजाधर खड्डर (Gajadhar Khaddar)जी ने किया। तब से अविराम देवाधिदेव इन नर्मदेश्वर महादेव (Mahadev) की सावन मास रुद्राभिषेक की परंपरा चली आ रही है। पंडित जी जीवन पर्यन्त इस पावन परंपरा का निर्वाह करते रहे। उनके निधन के बाद उनके पुत्र पंडित दामोदर प्रसाद (Damodar prasad) जी खड्डर जीवन भर नर्मदेश्वर जी के अभिषेक (Abhishek) का दायित्व निर्वाह करते रहे। 1966 में पंडित जी परलोकवासी हुए और यह शुभ कार्य करने का सौभाग्य मिला उनके पुत्र प्राचीन नर्मदा मंदिर(Narmada Mandir) के मुख्य अर्चक पंडित गोपाल प्रसाद खड्डर (Gopal prasad Khaddar) जी को। 78 वर्षीय पंडित जी ने बताया कि पूर्वज द्वारा शुरू की गई परंपरानुसार हर साल सावन मास में प्रतिदिन पांच पुरोहित (Purohit) के साथ पंचोपचार विधान से महादेव नर्मदेश्वर जी का रुद्राभिषेक किया जाता है। रोज शाम 6 बजे से 9 बजे तक। खड्डर जी बताते हैं, नर्मदा मैया की कृपा, पूर्वजों के आशीर्वाद प्रभु की यह सेवा चल रही है। यही प्रार्थना महादेव से है कि जब तक सांस है, चरण चाकरी चलती रहे। रोज संध्या से लेकर रात्रि तक श्रद्धालु उपस्थित होकर दिव्य अर्चना अभिषेक में सहभागी बन पुण्य लाभ लेते हैं और उस समय हर-हर महादेव के जय घोष से वातावरण अलौकिक आभा से दीप्त हो उठता है। वह सुख अद्भुत मनोहारी और अनिवरचनिय होता है। नर्मदे हर।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार/कवि
संपादक, शब्दध्वज
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