नेकी का पेड़ दे रहा गरीबों की जरूरत के फल

Post by: Manju Thakur

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राजधानी के निकट सीहोर में विस्तार ले रहा अपनत्व का दायरा
सीहोर। राजधानी से करीब 40 किलोमीटर दूर, सीहोर कस्बे में नेकी का पेड़ अब काफी फलने-फूलने लगा है। इसका बीजारोपण जब हुआ था तो 1966 में आयी फिल्म बादल के गीतों का यह पंक्तियां अवश्य ज़ेहन में रही होंगी…
बाज़ार से ज़माने के, कुछ भी न हम खरीदेंगे
हां, बेचकर खुशी अपनी लोगों के ग़म खरीदेंगे
बुझते दिये जलाने के लिये, तू जी, ऐ दिल, ज़माने के लियेsehore10012017-2
अपने लिये जिये तो क्या जिये…..
निश्चित ही, किसी भी नेक काम के लिए नेक इरादा, करने का जुनून और उसे अंज़ाम तक पहुंचाने का साहस होना जरूरी है। सीहोर एसडीएम राजकुमार खत्री में ये सारी खूबियां हैं, जो उनके अपने पिछले सारे कार्यकाल में उन लोगों ने देखी भी हैं, जहां वे पदस्थ रहे हैं. कहते हैं न आदत मुश्किल से छूटती है। उनके भीतर पीडि़तों के चेहरों पर मुस्कान लाने की आदत है। और…ये ऐसी आदत है, जो कोई भी नेक इनसान छोडऩा नहीं चाहेगा।
दरअसल, नेकी का पेड़ जैसा कॉन्सेप्ट कोई पहला या नया नहीं है। लेकिन एक सरकारी अधिकारी इसका अगुवा बने, यह खास बात है, जो विरली है। एसडीएम राजकुमार खत्री के साथ इस सोच को सलाम करने वालों की पूरी टीम है। तहसील परिसर में श्री खत्री के साथ तहसीलदार संतोष मुद्गल, तहसील के कर्मचारियों, वकीलों, दस्तावेज लेखकों और स्टाम्प वेंडरों की टीम है, जो नेक इरादा लेकर इस पेड़ पर नेकी को फलित करने अपने कर्म के जल का छिड़काव कर रही है।
sehore10012017-3ऐसे होती है सेवा
तहसील परिसर में बीस कंटेनर रखे हैं, जिनमें कोई भी व्यक्ति ऐसा सामान रखकर जा सकता है, जो वह अपने लिए अनुपयोगी मानता हो। परंतु यह अन्य लोगों के लिए जरूरत का सामान हो सकता है। जिसे इस सामान की जरूरत हो, वह इस सामान को ले जा सकता है। ठंड के मौसम में जैसे प्रकृति खुश होती है, पेड़ों पर पत्ते, फल आदि भरपूर होते हैं, वैसे ही इस नेकी के पेड़ पर भी मौसमी फल रूपी गर्म कपड़े जैसे स्वेटर, मफलर, शॉल, बच्चों के जूते सबसे अधिक आ रहे हैं। इसके अलावा सामान्य दिनों के कपड़े, किताबें, दवाईयां, घर का अन्य सामान आदि प्राप्त हो रहे हैं। सारी चीजें अलग-अलग कंटेनर में लोग रखकर जाते हैं और गरीब लोग अपनी जरूरत के मुताबिक ये सामान लेकर जाते हैं। नेकी के इस काम के लिए बाकायदा सेवा करने एक व्यक्ति की ड्यूटी रहती है जिसकी जिम्मेदारी यह देखने की है कि कोई भी लालचवश इसका दुरुपयोग न करने लगे। उसे यह देखना होता है कि एक ही व्यक्ति अधिक चीजें न ले जाए।
इसलिए है, नेकी का पेड़
इस परिसर में दो बरगद के पेड़ हैं। जिनकी छांव में वर्षों से लोग अपने काम के दौरान रहते हैं। इन पेड़ों के साथ वर्षो से रहने पर सबकी भावना जुड़ गई है। इसलिए इस पहल को हमने भी नेकी का पेड़ नाम दिया है। लोग यहां वह सामान दे सकते हैं जो उनके लिए अनुपयोगी हो गया हो। यह सामान वे लोग ले जा सकते हैं, जो उनके लिए उपयोगी हो। लोग जागरुक है, स्वप्रेरणा से भी यहां सामान लेकर आ रहे हैं और कुछ हम भी लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।
राजकुमार खत्री, एसडीएम

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