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बहुरंग : आर्क डी ट्रायम्फ – पेरिस, बनारस : मैं आ रहा हूं …

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– विनोद कुशवाहा

‘ इंडिया गेट ‘ जैसे दिखने वाले पेरिस के “आर्क डी ट्रायम्फ” को 1806 में नेपोलियन ने बनवाया था। ये स्मारक स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है। फिर भी न मेरा फ्रांस जाने का मन है और न ही पेरिस जा कर ये स्मारक देखने की इच्छा है। वैसे भी अन्य लोगों की तरह मेरा मन कभी विदेश जाने का नहीं हुआ। हां लाहौर देखने की तमन्ना जरूर है। पंजाबी में एक कहावत है ‘जिन लाहौर न देख्यां …’ जिसका सीधा सा मतलब है – ‘जिसने लाहौर नहीं देखा उसने कुछ नहीं देखा’। लाहौर कला एवं संस्कृति का अभूतपूर्व संगम है। उसकी तुलना सिर्फ हमारी दिल्ली से की जाती है जैसे करांची , मुम्बई से साम्यता रखता है। खैर। विस्तार से चर्चा फिर कभी। फिलहाल मेरी अपनी बात। पता नहीं क्यों मेरा मन कभी “तिरुपति “या “वैष्णो देवी” जाने का नहीं हुआ। ऐसा नहीं कि इन स्थानों पर मेरी आस्था नहीं है लेकिन अंदर से कभी इच्छा नहीं हुई। हां, वहां से बुलावा आया तो जाने में देर भी नहीं करूंगा। स्वर्ण मंदिर देखने की अभिलाषा जरूर है। वहां के पवित्र सरोवर का पानी माथे से लगाना है। मत्था टेकना है। लंगर चखना है। वाहे गुरु दी कृपा हुई तो कार सेवा करना चाहूंगा। भक्तों के जूते चप्पल साफ कर उन्हें सहेजकर रखने की सेवा करने का भी मन है। माँ शारदा का मैहर, आल्हा ऊदल का मैहर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के मैहर जाने की मन में इच्छा थी तो वहां हो आया। ऐसे ही अजमेर जाने की ख्वाहिश थी तो वहां भी ख्वाजा साहब की दरगाह पर मेरी हाजिरी लग गई।”हाजी अली ( मुम्बई , ताजुद्दीन बाबा (नागपुर), ख़्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती, (अजमेर) , निजामुद्दीन औलिया (दिल्ली )” मुस्लिम भाईयों के दिलों में बसते हैं तो हमारे हिंदू भाई भी वहां सजदा करते हैं। इनमें से मुझे केवल नागपुर और अजमेर के ही दीदार हुए हैं। नागपुर में भी ” ताजुद्दीन बाबा ” की दरगाह पर तो मैं अनायास ही पहुंचा हूं। वहां जाने का कोई कार्यक्रम नहीं था। ये मान कर चलिये कि उनका बुलावा था इसलिये पहुंच गया। जिन स्थानों पर जीवन में कभी जाने का सोच रखा था वे न तो ज्यादा दूर थे, न ही इतने पास थे कि मैं कभी भी पहुंच जाता। जैसे मैहर, बनारस, लखनऊ, अमृतसर, अजमेर और लाहौर। लाहौर तो मेरी पहुंच के बाहर है। हां इतना अवश्य है कि सेवा निवृत्ति लेने के बाद मैंने शेष स्थानों पर जाने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश की और कर रहा हूं। मेरी मैहर, अजमेर यात्रा इसी सिलसिले की कड़ियां हैं। यदि ‘ लॉक डाउन ‘ न हुआ होता तो शायद अब तक इन सारे स्थानों की मेरी यात्रा पूरी हो चुकी होती। जैसे ही ‘ लॉक डाउन ‘ खुलेगा मैं सबसे पहले बनारस जाना चाहूंगा जहां भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं। बनारस को काशी भी कहा जाता है और काशी ” मोक्ष का द्वार ” भी है। हमारे यहां ‘ गरुण पुराण ‘ में कहा गया है –
अयोध्या , मथुरा , काशी , कांची , अवंतिका , पुरी
द्वारावती चैव सप्तैताः मोक्षदायिका ।

अर्थात् इन सात स्थानों में से यदि किसी स्थान पर व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है मगर मुझे मोक्ष की कामना नहीं है। मैं तो उस कथन को लेकर चल रहा हूं जिसमें कहा गया है – ‘ जिसने बनारस की सुबह और अवध ( लखनऊ ) की शाम नहीं देखी उसने कुछ नहीं देखा ‘। हालांकि तब ” अवध की शाम ” का उल्लेख इसलिये किया गया होगा क्योंकि शाम को शुरू होकर देर रात तक चलने वाले मुजरों के कारण अवध की शामें रंगीन हुआ करतीं थीं। हां अब अवध ( लखनऊ ) को उसकी नफासत, नजाकत और तहजीब की वजह से देखा जा सकता है। हालांकि मेरी प्राथमिकताओं में बनारस सबसे ऊपर है। अभी पिछले दिनों मेरे अभिन्न मित्र अजय सूर्यवंशी ने मेरे बनारस प्रेम के कारण मुझे व्हाट्सएप पर एक कविता भेजी जो यहां आपसे साझा करना चाहूंगा –

आह बनारस ~ वाह बनारस
मस्ती की है चाह बनारस ।
वरुणा और अस्सी में बसती
काशी का विस्तार बनारस !!
न तड़क – भड़क न आडम्बर,
अपनी मौज में मस्त बनारस ,
दीपांजली गंगा मैय्या की
मणिकर्णिका है शव-दाह बनारस !
पहन लंगोटी छान के बूटी
भैया जी भइलन सांड बनारस ,
शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला में
सबको देता शिकस्त बनारस !
मोह माया में जकड़े मानुस को
आध्यात्मिकता की छाँह बनारस ,
अंधी गलियां तड़पी पाने को
रवि रश्मि की एक पनाह बनारस !
देसी और विदेशियों का आकर्षण
सर्व-शिक्षा का चरागाह बनारस ,
धर्म-कर्म निर्वाह बनारस
मोक्ष प्राप्ति की चाह बनारस !
फीके हैं सब पिज्जा बर्गर
कचौड़ी, जलेबी, चाट बनारस ,
हाईवे फ्लाई ओवर से दूर कहीं
घाटों का शहंशाह बनारस !
मिटा सके इसके वजूद को
नहीं किसी में इतना साहस ,
गुरु निकलेगा कितना गुरुतर
बूझ न पाया थाह बनारस !
आह बनारस वाह बनारस ।
मस्ती की हर चाह बनारस !!
मैं पूर्व जन्म, प्रारब्ध, नियति, ज्योतिष, हस्त रेखा, अंक विज्ञान, वास्तु, लाल किताब, काली किताब सब पर विश्वास नहीं करता तो अविश्वास भी नहीं करता। इसलिये ही साहित्य के अतिरिक्त इन सबका भी मैंने अध्य्यन किया है। कभी – कभी मुझे लगता है कि किसी जन्म में मेरा सम्बन्ध अशोक नगर और आमला से रहा होगा। इनमें से आमला में तो मैं पिछले कुछ वर्षों पहले तक रहा हूं। वहां की कुछ जगहें ऐसी भी थीं जो मुझे जानी – पहचानी लगती थीं और अपनी तरफ खींचतीं भी थीं। अशोक नगर मैं कभी गया नहीं लेकिन सपनों में मैंने अशोक नगर के कुछ स्थान जरूर देखे हैं। बाद में नेट पर सर्च किया तो वे स्थान सपनों में देखे गए स्थानों से काफी कुछ मेल खाते हैं। अब इसको आप क्या कहेंगे? लगता तो अविश्वसनीय होगा पर यही सच है। मैं तो ये भी दावा करता हूं कि मेरा अगला जन्म ओस्लो ( नार्वे ) में होगा। इसका जिक्र मैंने अपनी एक मित्र अमृता ( दिल्ली ) से किया था। उन्होंने कहा -‘ हो सकता है। क्यों नहीं हो सकता। ‘ उनके इस जवाब से मुझे बेहद तसल्ली मिली। लगा कि चलो कोई तो है जो मेरा विश्वास करता है। क्या आपको भी इस सब पर विश्वास है?

लेखक मूलतः कहानीकार है परन्तु विभिन्न विधाओं में भी दखल है।
Contact : 96445 43026

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