– विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha) :
मध्यप्रदेश से कितनी ही ऐसी शख़्सियत हैं जिन्होंने विविध क्षेत्रों में अपनी काबिलियत दर्ज कराई है। चाहे उनका जन्म मध्यप्रदेश में हुआ हो या किसी न किसी रूप में ये हस्तियां हमारे अपने प्रदेश से जुड़ी रहीं। जां निसार अख्तर, कैफ भोपाली, असद भोपाली, शकीला बानो भोपाली, जावेद अख़्तर , सलीम साहब , लता मंगेशकर, किशोर कुमार, नवाब पटौदी, शर्मिला टैगोर, जया बच्चन, सलमान खान, रजा मुराद आदि कितने ही ऐसे नाम हैं जो इस संदर्भ में लिये जा सकते हैं। अगर सबका ज़िक्र करता बैठूंगा तो सदियां बीत जायेंगीं पर किस्सा खत्म नहीं होगा। फिलहाल बात लता दीनानाथ मंगेशकर की । जिनका जन्म ही इंदौर में हुआ था । वे चार बहनें हैं । उनके अतिरिक्त तीन बहनें और हैं मीना खादीकर, आशा भौंसले और उषा मंगेशकर । एक भाई हैं संगीतकार हृदयनाथ मंगेशकर । सभी भाई बहन गीत संगीत में पारंगत हैं मगर लता जी की बात ही कुछ और है । कोई भाई बहन लता जी के बराबर खड़ा नहीं हो पाया । हां किसी बात पर लता जी और संगीतकार ओ पी नैयर में अनबन हो जाने पर ओ पी नैयर ने आशा भौंसले को जरूर लता जी के लगभग बराबर ला खड़ा किया । आशा जी की आवाज में जो कशिश थी उन्होंने उसको उभारा और आशा भौंसले ने ज्यादातर गाने भी उसी अंदाज में गाये । साथ ही उन्होंने ओ पी नैयर के संगीत निर्देशन में ही और भी कई यादगार गाने दिए । उस समय उनको और ओ पी नैयर को लेकर फिल्म इंडस्ट्री में तरह – तरह की बातें भी चलती रहीं । बाद में आशा भौंसले के जीवन में आर डी बर्मन के आ जाने से इन सब चर्चाओं पर विराम सा लग गया जबकि आशा भौंसले के पहले पति से एक बेटा भी था । हेमंत भौंसले । उषा मंगेशकर के गाये हुए वैसे तो कई गीत हैं पर उनका एक गाना कुछ ज्यादा ही सुना जाता रहा है । ये वही गाना है जो उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व एक सार्वजनिक कार्यक्रम में गाया था । इस कार्यक्रम में बाला साहब ठाकरे भी मौजूद थे। उनकी फरमाईश पर उषा मंगेशकर को दोबारा ये गीत गाना पड़ा । गीत के बोल थे – मंगता है तो आ जा रसिया रे, नहीं तो मैं ये चली। मीना खादीकर गायन के क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय नहीं रहीं। हां इन सब बहनों के अकेले भाई पद्मश्री हृदयनाथ मंगेशकर जरूर भारतीय शास्त्रीय संगीत में निपुण हैं।
एक समय लता जी का नाम क्रिकेट जगत की जानी – मानी हस्ती क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष राज सिंह डूंगरपुर के साथ जोड़ा गया । बावजूद इस सबके उनका दामन पाक साफ रहा। हां उनके संबंधों में जरूर उतार – चढ़ाव आते रहे। जैसे लता जी की केवल ओ पी नैयर से ही नहीं बल्कि रफी साहब से भी अनबन रही । दोनों ने काफी समय तक साथ गाने नहीं गाये । लता और आशा को लेकर एक और उल्लेखनीय घटना का ज़िक्र करना यहां जरूरी है । देशप्रेम का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत ‘ ए मेरे वतन के लोगों ‘ पहले आशा भौंसले ही गाने वाली थीं । उन्होंने इसकी रिहर्सल तक की थी । मगर जब लता जी को ये मालूम पड़ा कि इस गीत को पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने गाया जाने वाला है तो आशा भौंसले को एक तरफ कर उन्होंने ही इस गीत को गाया । पंडित जी तो जैसे सब कुछ जानते थे । उन्होंने गीत खत्म होने के बाद केवल इतना ही पूछा कि ये लिखा किसने है ? तब उनका परिचय वहां बैठे कवि प्रदीप से कराया गया । प्रदीप भी बड़नगर , मध्यप्रदेश के थे ।
फिल्म इंडस्ट्री के शो मैन राजकपूर तो लता जी को लेकर एक फिल्म भी बनाना चाहते थे लेकिन लता जी इसके लिये तैयार नहीं हुईं । अन्यथा ‘ सत्यम शिवम सुंदरम ‘ का स्वरूप ही कुछ और होता ।
लता जी को अनगिनत सम्मान और पुरस्कार मिले मगर दुर्भाग्यवश उनको अनेक आरोपों का सामना भी करना पड़ा जिनमें सबसे बड़ा आरोप तो यही था कि उन्होंने अपनी बहनों को ही नहीं किसी को भी आगे बढ़ने में कोई मदद नहीं की । इस वट वृक्ष के नीचे कभी कोई पौधा पनप नहीं पाया । सुधा मल्होत्रा ( वो प्यार था या कुछ और था ) , सुमन कल्याणपुर ( मेरे महबूब न जा ) , सुलक्षणा पंडित ( तू ही सागर है तू ही किनारा ) , वाणी जयराम ( बोल रे पपीहरा ) , हेमलता ( अंखियों के झरोखों से ) , कंचन ( तुमने किसी से कभी प्यार किया है ) , अनुराधा पौडवाल ( तू मेरी ज़िंदगी है ) , कविता कृष्ण मूर्ति ( ओ साहिबा ओ साहिबा ) , साधना सरगम ( तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार करते हैं ) , अलका याज्ञनिक ( मेरा दिल भी कितना पागल है ) जैसे कितने ही नाम हैं जो लता जी के रहते हुए गुमनामी के अंधेरे में खो गए । इनमें सुधा मल्होत्रा और सुमन कल्याणपुर जैसी प्रतिभाएं भी थीं जो लताजी से बीस नहीं थीं तो उन्नीस भी नहीं थीं । सुलक्षणा पंडित ने तो लता मंगेशकर और उषा खन्ना के साथ फिल्म ‘ तकदीर ‘ में युगल गीत गाया था । बोल थे – ‘ पप्पा जल्दी आ जाना सात समुंदर पार से ‘ । हेमलता ने भी आशा भौंसले और उषा मंगेशकर के साथ फिल्म ‘ जीने की राह ‘ में एक गीत गाया था । ‘ चंदा को ढूंढने सभी तारे निकल पड़े ‘। ये सब कहां निकल गए कोई नहीं जानता । यहां तक कि हिमेश रेशमिया ने जिस स्ट्रीट सिंगर रानू ( इक प्यार का नगमा है ) को फुटपाथ से उठाकर स्टार बना दिया उसकी तारीफ करने की बजाय लता जी ने उसे भी नसीहत दे डाली । ताज्जुब है ।
एक बात और । इसे आप संयोग भी मान सकते हैं । हालांकि ये एक कड़वा सच है और इससे शायद ही कोई इन्कार कर पाए । कुछ गीत ऐसे हैं जो लता जी ने भी गाये हैं और किसी मेल सिंगर ने भी परंतु मेल सिंगर के गाये हुए गीत ही ज्यादा लोकप्रिय हुए । जैसे किशोर दा ने भी उन्हीं गीतों को गाया है । जिन गीतों को लता जी ने अपना स्वर दिया है । मगर आज भी किशोर दा के ही इन गीतों को सुना जाता है – खिलते हैं गुल यहां ( शर्मीली , रिमझिम गिरे सावन ( मंजिलें , ओ मेरे दिल के चैन ( द ट्रेन , मेरे नैना सावन भादों ( महबूबा ), अगर तुम न होते (अगर तुम न होते ) आदि । इसी तरह रफी साहब के भी कुछ गीत हैं जिनमें – वादियां मेरा दामन ( अभिलाषा ) , समझौता गमों से कर लो ( समझौता ) आदि उल्लेखनीय हैं । केवल किशोर दा और रफी साहब ही नहीं – मुझको इस रात की तन्हाई में ( मुकेश ), माई रे ( मदनमोहन ) , राम तेरी गंगा मैली हो गई ( सुरेश वाडेकर ) गीत भी बेहद पसंद किए गए । उपरोक्त गीतों के मेल सिंगर्स की आवाज की तुलना में लता जी के गाये हुए इन गीतों का स्मरण तक नहीं होता ।
इस सबके बावजूद लता जी आखिर लता मंगेशकर हैं । कहा जाता है कि हर गायक तीखा खाने से परहेज करता है । इधर लता जी को तीखे और मसालेदार व्यंजन ही पसन्द हैं । इतना ही नहीं मिर्च और अचार के बिना उनका खाना ही पूरा नहीं होता ।
कहा जाता है कि एक बार पाकिस्तान के किसी वजीर – ए – आजम ने मजाक में कहा था – ‘आप लता मंगेशकर हमें दे दीजिए और हमसे आजाद कश्मीर ले लीजिये ‘। बात भले ही मजाक में कही गई थी लेकिन इससे दीगर मुल्कों के लिए लता मंगेशकर की अहमियत का आप अंदाज लगा सकते हैं क्योंकि आखिर लता जी लता मंगेशकर हैं । स्व. दीनानाथ जी मंगेशकर की बेटी … पद्मश्री हृदयनाथ जी मंगेशकर की बहन ।
विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)
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