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बहुरंग : शराब चीज ही ऐसी है …!

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– विनोद कुशवाहा
पंकज उदास ने इस ग़ज़ल को जब अपना स्वर दिया था तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि आगे चलकर इसकी सार्थकता साबित होगी लेकिन हुआ कुछ ऐसा ही। “टोटल लॉक डाऊन” के बीच ही जब आमदनी की खातिर राज्य सरकारों ने रोजमर्रा की चीजों को दरकिनार कर शराब पर से पाबंदी हटा ली, तब इधर बच्चे दूध के लिए तरस रहे थे उधर शराब की नदियां बह रही थीं। क्या सरकार कुछ दिन ठहर नहीं सकती थी? इतने दिन लोग बिना पिये रह गए तो आगे भी रह सकते थे।अवैध रूप से शराब की बिक्री की छुटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो एक तरह से शराब बेचने पर पूरी तरह से रोक लगी हुई थी। जहां गैर कानूनी ढंग से शराब बेची भी जा रही थी तो उसमें से भी कुछ मामलों में तो स्वयं पुलिस भी शामिल थी। खैर। इसका अर्थ ये भी है कि सरकार अगर संकल्प कर ले तो ‘नशाबंदी’ अथवा ‘मद्य निषेध कानून ‘ बनाकर उसे लागू किया जा सकता है। अब आप ये नहीं कह सकते कि – ‘मुंह से लगी हुई है ज़ालिम छूटती नहीं’ क्योंकि ‘टोटल लॉक डाऊन’ में भी तो आखिर कितने लोग बिना पिए भी इतने दिन रहे। चलिये आगे बढ़ते हैं। उपरोक्त गज़ल कुछ इस तरह थी –
शराब चीज ही ऐसी है जो न छोड़ी जाए ,
वो मेरे यार के जैसी है न छोड़ी जाए ।

देखिये जिस यार की यहां बात हो रही है उसे भी लोग बहुत आसानी से छोड़ देते हैं। रिश्ते तक तोड़ देते हैं क्योंकि रिश्तों में भी अब संवेदनशीलता कहां रह गई है तो शराब छोड़ना तो उससे ज्यादा आसान है। फिर आज के ज़माने में तो दोस्ती भी दुर्लभ है। इसलिये तो किसी शायर ने कहा है –
हमने भी देखे हैं , कई रंग बदलने वाले ,
दोस्त बन-बन के मिले हैं , मुझको मिटाने वाले ।

इसी संदर्भ में एक बात और याद आई कि इस देश में टीचर्स को कहीं भी काम करने के लिए झोंक दिया जाता है। जनगणना से लेकर पशु गणना तक शिक्षकों से कराई जाती है। एक सनकी आईएएस ने तो शिक्षकों की ड्यूटी शराब की दुकानों पर लगा दी थी। जब शिक्षक संगठनों ने इस आदेश का विरोध किया तब ये आदेश निरस्त किया गया। मतलब राजस्व बढ़ाने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। कोई भी तरीका आजमाया जा सकता है। जबकि माननीय न्यायालय से लेकर आयुक्त , लोक शिक्षण तक कई बार शासन -प्रशासन को ताकीद कर चुके हैं कि शिक्षकों से गैर शिक्षकीय कार्य न कराया जाए मगर कलेक्टर के आदेश के आगे सारे आदेश बौने साबित हो जाते हैं। जो शिक्षक हिम्मत दिखाते हैं उनके पक्ष में माननीय न्यायालय भी स्थगन देता है।

हमारे देश में कोई मामला कितना भी संवेदनशील क्यों न हो उस पर राजनीति होना लाजिमी है। फिर सरकार द्वारा शराब की दुकानें खुलवाने पर राजनीति नहीं होती ये कैसे सम्भव था। पिछले दिनों भिंड में राजनीति के नाम पर कुछ ऐसा ही तमाशा हुआ जब कांग्रेस नेताओं ने शराब लेने पहुंचे लोगों का ये कहते हुए फूल मालाओं से जोरदार स्वागत् किया कि -‘ देश की अर्थ व्यवस्था में आपका सराहनीय योगदान है’। उल्लेखनीय है कि शराब के ये शौकीन बोरियों में भर-भरकर शराब ले जा रहे थे।

दरअसल शराब की महिमा का गुणगान सदियों से किया जाता रहा है और स्थिति ये हो गई है कि आज शराब पीना ‘ स्टेट्स सिंबल ‘ बन गया है। यहां तक कि बाप बेटे एक टेबल पर बैठ कर शराब पीने लगे हैं। महिलायें भी शराबनोशी में शामिल होने लगी हैं। तो बात चल रही थी शराब की तारीफों के पुल बांधने की। इसमें शायरों की कलम तो स्याही की जगह शराब से ही लबरेज रहती थी और आज भी ये सिलसिला बदस्तूर जारी है –

मैं कहां जाऊं , होता नहीं फैसला ,
एक तरफ उसका घर , एक तरफ मयकदा ।
या
ला पिला दे साकिया ,
पैमाना पैमाने के बाद ।

हालांकि जितनी मस्ती में ये गज़लें लिखी नहीं गईं उससे कहीं ज्यादा इन गज़लों को झूम के गाया गया है। मेहंदी हसन, गुलाम अली, नुसरत फतेह अली खान, राहत फतेह अली खान, जगजीत सिंह, पंकज उदास कितने ही ऐसे नाम हैं जो पाकिस्तान के हों या हिंदुस्तान के दोनों का काम एक ही रहा ‘ पीने का पैगाम ‘ देना। कव्वाली गायकों ने भी क्या किया। यही तो उन्होंने भी किया। चाहे फिर वो जॉनी बाबू कव्वाल हों या अज़ीज नाजां। अज़ीज नाजां को तो आज भी ” झूम बराबर झूम शराबी ” के लिए ही याद किया जाता है। कवि हरिवंशराय बच्चन की ‘मधुशाला’ ने तो उन्हें सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था। उनकी शिकायत जब गाँधी जी तक पहुंची तो उन्होंने बच्चन जी को आकर मिलने के लिए कहा। हरिवंशराय बच्चन डरते – डरते गांधी जी के पास पहुंचे । गाँधी जी ने बच्चनजी से ‘ मधुशाला ‘ सुनी –

छोटे से जीवन में कितना , प्यार करुं , पी लूं हाला
आने के साथ जगत् में , कहलाया जाने वाला ,
स्वागत् के ही साथ विदा की , होती देखी तैयारी
बन्द लगी होने खुलते ही , मेरी जीवन मधुशाला ।

गांधी जी ने कहा कि – ‘मुझे तो इसमें कुछ आपत्तिजनक नहीं लगा ‘। फिर क्या था बच्चन जी की ‘मधुशाला’ कवि – सम्मेलनों के मंचों पर दौड़ने लगी। कवियों को कविता का पारिश्रमिक दिलाने की शुरुआत् का श्रेय भी बच्चन जी को ही जाता है।
उनके सुपुत्र सदी के महानायक अमिताभ ने शराब तो क्या कोल्ड ड्रिंक तक पीना छोड़ दिया है। यही हाल शाहरुख खान का भी है। हां वे ‘ चैन स्मोकर ‘ जरूर हैं संजय लीला भंसाली की ‘ देवदास ‘ में ” मार डाला … ” गीत के बीच देवदास, चन्द्रमुखी के सामने पारो को भुलाने के लिए पहली बार शराब को हाथ लगाता है। शाहरुख ने भी दृश्य में वास्तविकता लाने के लिये पहली बार ही शराब का स्वाद चखा था। केस्टो मुखर्जी के बारे में कहा जाता है कि वे पियक्कड़ का रोल अदा अवश्य करते थे मगर व्यक्तिगत् जीवन में केस्टो मुखर्जी ने कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया। वरना स्थिति तो ये है कि कवि – सम्मेलनों के मंचों पर न तो कवि बिना पिये कविता पढ़ पा रहा है न ही अभिनेता – अभिनेत्री इससे अछूते रह गए हैं। मीना कुमारी तो अपनी शराबनोशी के लिए ही प्रसिद्ध थी। उसी की वजह से उनकी जान भी चली गई। गुरुदत्त की फिल्म ‘ साहब बीबी गुलाम ‘ में मीना जी का जो किरदार था उसके मुताबिक उन्हें पति को खुश करने के लिये शराब भी पीना पड़ती है। बस उसी फिल्म के बाद से मीना आपा को शराब की लत् लग गई। जो ताज़िंदगी रही। हमारे गायकों में बाकी की तो चर्चा फिर कभी फिलहाल के एल सहगल की बात करेंगे जिनके बारे में भी कहा जाता है कि वो बिना पिये गा ही नहीं सकते थे। हां एक सुप्रसिद्ध म्यूजिक डायरेक्टर की जिद पर एकाध फिल्म में जरूर उन्होंने बिना शराब को छुए बमुश्किल गाया है जबकि इस स्थिति में सहगल साहब अपनी गायकी को लेकर ज्यादा कॉन्फिडेंट नहीं थे लेकिन उन्होंने न केवल गाया बल्कि बहुत अच्छा गाया। गाना भी हिट हुआ। मतलब ये है कि पीने वाले को तो पीने का बहाना चाहिए।
मेरे एक एकाऊंटेंट थे। उनकी पत्नी हमेशा उनके पीने की शिकायत लेकर मेरे सामने खड़ी रहती थी। जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि – ‘साहब , ये जब देखो तब मायके चली जाती है ‘। मैंने उनकी पत्नी से पूछा तो उन्होंने मुझे उनके पीने का उलाहना दिया। मैं मुस्कुरा कर रह गया । मैंने उनसे कहा -‘पीने के लिये अब आप इनको दोष नहीं दे सकतीं ‘। वे आश्चर्य चकित होकर बोलीं -‘ क्यों साहब् ? ‘ मैंने कहा – ‘देखिये इसका सीधा सा गणित है। जब आप मायके चली जाती हैं तब ये आपकी जुदाई के गम में पीते हैं और जब आप अपने मायके से वापस आ जाती हैं तो ये आपके लौटने की खुशी में पीते हैं। आप मायके जाना कम कर दीजिए ये पीना बन्द कर देंगे ‘। वे शरमाते हुए बोलीं-‘ ऐसा है साहब, तो मैं मायके जाना कम कर दूंगी ‘। मैंने एकाऊंटेन्ट से पूछा – ‘ क्यों भाई ? आपका क्या कहना है ‘। उसने जेब से एक क्वार्टर निकाली और सड़क पर फेंक दी। बोला – ‘ साहब आज से छोड़ दी ‘। इसके साथ ही हम तीनों ठहाका लगा कर हंस पड़े। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मैं मुस्कुरा रहा था। उनकी पत्नी खिलखिला कर हंस रही थीं। मेरे एकाऊंटेंट के ठहाकों से मेरा चेम्बर गूंज रहा था। चेम्बर के बाहर ऑफिस के अन्य लोग भी मुंह दबा कर हंस रहे थे। मैंने सबको अंदर बुला लिया। हमारा प्यून गंगाराम मेरे संकेत मात्र पर चाय-कॉफी-नाश्ता लेने चला गया। हम सबके एकाऊंटेंट आज खुद पीने की जगह सबको पिला रहे थे। चाय कॉफी । बस..

vinod kushwah

लेखक मूलतः कहानीकार है परन्तु विभिन्न विधाओं में भी दखल है। आपके 4 प्रकाशित काव्य संग्रह, अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं और कविताओं का प्रकाशन, भोपाल और बिलासपुर विश्व विद्यालय द्वारा प्रकाशित अविभाजित मध्यप्रदेश के कथाकारों पर केन्द्रित वृहत कथाकोश, कई पत्रिकाओं में वैचारिक प्रतिक्रियाओं का प्रकाशन, सोवियत रूस से कविताओं का प्रकाशन, आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण, कविताओं पर प्रदर्शनी हुई है। इसके अलावा आपने कृषि, पंचायत, समाज कल्याण, महिला बाल विकास, आरजीएम, शिक्षा विभाग में विभिन्न कार्यपालिका, प्रशासनिक, अकादमिक पदों पर सफलता पूर्वक कार्य किया है।
Contact : 96445 43026

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