शताब्दी शिखर की ओर डॉ. विरही
होशंगाबाद. दो हफ़्ते पहले दादा का एक खत मिला। दिनांक 18 मार्च 2020 लिखा था। हिंदी काव्य जगत के जाज्वलवान नक्षत्र हैं। स्वनाम धन्य, सुकीर्ति सम्पन्न कवि डॉ. परशुराम शुक्ल विरही जिन्हें देश-विदेश के आत्मीयजन प्रेम-आदर से दादा कहते हैं। दादा पत्र में लिखते हैं 17 मार्च देर रात तुम्हारी नींद को खराब करने का काम करने का अधिकार प्राचीनतम पारिवारिक समाजिक व्यवस्था ने छोटों के विरूद्ध दिया है। मेरा तो मन है, ऐसे काम के लिए बड़ों को क्षमा मांगना चाहिये। कुछ और बातें ओर आखिर में…. दादा आशीष के फूल बरसाते लिखते हैं, बिना ‘परशÓ के परशुराम तुम्हारा दादा। शताब्दी शिखर की ओर पड़ते इन कवि ऋषि के पूज्य चरणों को मनहूं-मनहूं कीन्ह प्रणाम करने पखारता हूं। आज भी चमेली के फूल की सुन्दर मोहक लिखावट जो सम्मोहित कर देती ह,ै इतनी उदारता, इतनी विनयशीलता कि बहुत छोटी सी मामूली बात पर छोटे से बड़ों को माफी मांगने का कहना? मैं पानी-पानी हो गया हूं। महान शिक्षाविद, कवि, लेखक, निबंधकार, समीक्षा अनुवादक डॉ. विरही जी ऐसी शहाना शख्सियत है।
इसलिए कहा गया है विद्या ददाति विनयम ददाति पाचताम्। ईश्वर ने इतना नवाजा है पर यह उनका जन्म जात स्वभाव है। भगवान विष्णु को प्रभु ने पदघात किया तो विष्णु जी ने पूछा तुम्हारे पैर में चोट तो नहीं आयी? ऐसे ही गौतम बुद्ध जब ध्यान मग्न थे, एक व्यक्ति ने उन्हें गाली दे दी, जब वह चुप हो गया तो बुद्ध ने कहा, यदि मैंने तुम्हारी गाली नहीं स्वीकारी तो वह कहां गई? उस व्यक्ति को गलती समझ आ गई और उसने बुद्ध के चरण पकड़ लिए। यह विशेषता है, जो विरही जी को सुनहरे फ्रेम में अलहदा पहचान देती है। लिहाजा यह कहना बेजा नहीं होगा कि देखा जो उन्हें तो सर झुकाना न रहा याद। दरअसल नवाज आज अदा हुई है, या दाम। दुश्मन से भी झुक कर मिलिये, कुछ अजीब चीज़ मिलनसारी में है। इसलिए चाहे देश अथवा विदेश जानेे पहचाने वाले सुधिजन उन्हें सदा याद करते हुए पुलकन से भर जाते हैं। इंग्लैंड में दादा के मुरीद एक फादर चर्च में उनकी सेहत के लिए प्रेयर करते रहते। सुभाषित रत्न भंडारकार (156-158) का एक श्लोक प्रासंगिक है।
अमनंअक्षरं नास्ति नानोषर्धिर्वनस्पति।
अयोग्य: पुरषो नास्ति योजक स्तर दुर्लभ।। अर्थात ऐसा एक भी अक्षर नहीं जो मंत्र न हो एक भी ऐसी वनस्पति नहीं जो औषधि न हो और ऐसा एक भी मानव नहीं जो अयोग्य हो। बस योजक उपयोग करता दुर्लभ होती है, विरही जी का वही मानना है, और स्वामी विवेकानंद की यह उक्ति उनका चिंतन मनन और स्तुति है। मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है। इसलिए साक्षात देवता की पूजा करो। प्रस्तावित पुस्तकें जो याद रहा। प. पू. डॉ. परशुराम शुक्ल विरही जी की एक ऐसी सस्मरण यात्रा है जिसमें पृष्ठ-पृष्ठ ऐसी अद्वितीय मानवीयता, आपसी संबंध, त्याग परपीड़ा परोपकार के उच्च प्रतिमान के दर्शन कर श्रद्धानत हो जाते हैं हम। कविवर प. भवानी प्रसाद मिश्र ने एक साक्षात्कार में मुझसे कहा था, यार संसार में दूसरों के लिए सुख-दुख सच्चे हैं और अपने सुख-दुख झूठे हैं। दादा का तो यही दर्शन रहा है। मुझ जैसे बीसियों कवि, लेखकों को उन्होंने बनाया, संवारा है। मेरी क्या बिसात हजारों पृष्ठों में फैली उनकी सृजन यात्रा पर कुछ लिखूं? वे हमारे युग के सूर, तुलसी, कबीर हैं। हम उनकी कृपा से फूल फल रहे हैं। यह उनका ही जमाल जलवा रंगों खुशबू है। हमारी कोई औकात या शिनाख्त है। मुझे होशंगाबाद के कवि बालकृष्ण तिवारी का यह शेर याद आ गया रब ने हमारी शख्सियत के कितने टुकड़े कर दिए, एक टुकड़ा घूमकर इंसान की सूरत पा गया। हम उसी सूर्य व्यक्तित्व से प्रकाशित हैं। आद्य ऋषियों, महर्षि ने पहले पहल नभ पर सूर्य और चंद्र को देखा। दादा में सूर्य का तेज है, चंद्र की सौम्यता-शीतलता है। कविता उनके यहां पूजा-उपासना और इससे ऊपर राम काज है, जो शताब्दी शिखर पर की ओर बढ़ते जारी है। इस जय घोष के साथ राम काज किन्हें बिना मोहे कहां विश्राम?
पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार कवि
संपादक शब्द ध्वज
होशंगाबाद म. प्र.
मो. 9893903003,9407505691
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रामकाज कीन्हें बिना मोहे कहां विश्राम


Rohit Nage
Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.
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Anand aa gaya dada ji Bahut hi adbhut lekh hai. ekdum nadi ke pravah jaise akashiye bhavyata liye. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏