- प्रसंगवश- पंकज पटेरिया
हाल ही में जो बज्रघात परम पूज्य कीर्ति शेष शिक्षाविद् एडवोकेट पंडित राम लाल शर्मा के हरेभरे परमार्थ की परिमल से भीगे लक्ष्मी विलास स्थित परिवार पर हुआ। वह अत्यंत दारुण दुखदाई है। काका जी के आत्मीय संबोधन से पुकारे जाने वाले के ज्येष्ठ पुत्र पूर्व मुख्य सचिव कृपा शंकर शर्मा के सुपुत्र आईपीएस मनीष शंकर शर्मा का दुखद निधन से समूचा नर्मदा अंचल गहन शोक में डूब गया। जिसने सुना, वह वहीं ठिठक गया। मैं स्वयं एक पल अवाक रह गया। भले उनकी मृत्यु नई दिल्ली में हुई,अपितु शहर पर एक अलग शोक निमग्नता की गहरी छाया महसूस की गई।
जैसी अपने ही परिवार का कोई लाड़ला बिछुड़ गया हो। यह अहसास निराधार नहीं था, बल्कि मंझले भैया, संझले भैया और हमारे विधायक डॉ सीतासरन शर्मा के भतीजे मनीष शंकर से नगर की नातेदारी परमार्थी संस्कार संपन्न शर्मा परिवार से ऐसी ही है। काका जी के देवलोक गमन के बाद उनके संस्कारवान सुपुत्र और उनकी अनुकृति भी उसी विरासत से अलंकृत हुए हैं।
दुख तकलीफ क्षीण छाया भी भूले से भी नगर के आकाश पर मंडराती है, तो परिवार ढाल बन खड़ा हो जाता है। नर्मदा जी की प्रलयंकारी बाढ़ के समय, या क्रूर करोना के वक्त स्वयं अस्वस्थ रहने के बाद भी डॉ. साहब और परिवार को चिंताकुल और हर संभव मदद लिए भागते हमने देखा है, तो ऐसी विपदा के समय क्षेत्र क्यों न दुखी हो।
हालांकि हम निष्चेष्ट निरूपाय यह कठोर सत्य जानते हैं। बकौल किसी शायर के सबको इस रजिस्टर में हाजरी लगाना है। मौत वाले दफ्तर में छुटियां नहीं होती। वहीं यह भी सत्य है कि हम साधु संन्यासी नहीं हैं कि दुख सुख का बोध न हो, आम जन हैं। आंखें नम जाती हंै दुख से हृदय फटता ही है। प्रभु मनीष शंकर को अपने चरणों मे शरण दें, और शर्मा परिवार परिजन को यह दारुण दुख सहने की शक्ति प्रदान करें।

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार कवि।