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एनबीए की मेधा पाटकर बोलीं विकास के नाम पर विनाश के रास्ते चल रही है सरकार

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नर्मदापुरम। विकास से किसी को इंकार नहीं है विकास होना चाहिए लेकिन विनाश की शर्त पर नहीं. सरकारें आज विकास के नाम पर विनाश के रास्ते पर चल रही है। नदी को बचाने की कारगर योजना नहीं है नदियों का अस्तित्व पर खतरा बरकरार है। बड़े बडे डेम बनाए जा रहे हैं, पहाड़ों का सीना छल नी किया जा रहा है, इसी कारण ऋतु चक्र बिगड़ रहा है।

अगर अभी भी सबक नही लिया गया तो इसका खामियाजा आने वाले दिनों में आमजन को भुगतान पड़ेगा। नदियों को बचाने के लिए आम जन को आगे आना होगा अन्यथा सरकारें सब कुछ ध्वस्त करने के बाद भी नहीं चेतेंगी। यह बात आज पत्रकारवार्ता में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने कही।

उन्होंने कहा कि एनबीए एक भारतीय सामाजिक आंदोलन है उन्होंने कहा विकास में राजनीति तंत्र और मंत्र बन गया जनता सच्चाई चाहती है किसान मजदूर मछुआरे के साथ नर्मदा का मुद्दा क्यों पर विचार नहीं किया जा रहा है इस आंदोलन का लक्ष्य भारत में जन आंदोलनों में एकता और ताकत को बढ़ावा देना है और न्याय के विकास के लिए काम करने के लिए सरकारी दमन से लडऩा और चुनौती देना है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन में के माध्यम से विस्थापितों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। विकास चाहिए विनाश नहीं प्रकृति संस्कृति और विकास पर विकास की अवधारणा जल जंगल जमीन पर होने वाले असर और आघात विस्थापन बिना शादी पर गंगा ब्रह्मपुत्र कावेरी महानदी गोदावरी के साथ नर्मदा घाटी दक्षिण से उत्तर पूर्व भारत के सभी किसान मजदूर आदिवासी मछुआरों के लिए हम लड़ाई लड़ रहे हैं।

उन्होंने केंद्र सरकार के मोदी सरकार पर भी जमकर हमला बोला। मेघा पाटकर ने कहा कि ग्यारा राज्यों के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता इस राष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत करेंगे देश और दुनिया में कोरोनाग्रस्त जीवन भुगतते हुए जाना है प्रकृति का महत्व जीवन का आधार रही है प्रकृति और प्राकृतिक व्यवस्था की एक एक इकाई नदी घाटी पहाड़ समंदर किनारा या मैदानी खेती क्षेत्र वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों से ही जीवित रहती है।

सरकार पर आरोप लगाए कि जिस तरह से बजट पेश हुआ है वह किसानों के साथ ही स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए सही नहीं है। मेधा पाटकर ने कहा कि बजट में 2022 में जितनी राशि किसानों के लिए आवंटित की गयी थी, उससे भी कम राशि इस बजट में दी गयी है। वहीं, किसानों के लिए अलग-अलग निधि जैसे पीएम कल्याण निधि में भी बजट का आवंटन कम किया गया है।

जिससे किसानों को अपनी उपज का सही दाम नहीं मिलेगा जबकि मंडियों की बढ़ोतरी होनी चाहिए थी, जिससे मंडियों में किसानों का माल अधिक बिकता। लेकिन सरकार तीन कानूनों पर अमल करते हुए आज भी निजी हाथों में ही किसानों की उपज का माल सौंपना चाहती है।

उन्होंने आरोप लगाया की अडानी जैसे लोगों को इससे फायदा होगा, उनके गोदामों में माल अधिक भर जायेगा जबकि ऑडीटर जनरल की रिपोर्ट है कि उनको अधिक भाड़ा दे दिया गया है। लेकिन सरकार यही चाहती है कि वे ही लोग किसानों का माल खरीदें। इस अवसर पर विभिन्न प्रांतों से आए हुए सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।

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