हर दिल में ग़म था, और बैचेनी भी

हर दिल में ग़म था, और बैचेनी भी

वैश्विक महामारी ने ईंट और रस्सी के इस शहर से एक लोकप्रिय चिकित्सक को छीन लिया। शहर के पहले कोरोना पॉजिटिव (corona Positive) डॉ.नटवरलाल हेडा (Dr. Natvar Lal Heda)थे और काल के क्रूर हाथों ने उन्हें वापस मरीजों की सेवा में नहीं आने दिया। सहज, सरल और चिकित्सक के साथ ही उचित परामर्श देने की उनकी खासियत के कारण वे खासे लोकप्रिय थे। 24 अप्रैल को वे एम्स भोपाल में ही संसार से विदा हो गये। रात को करीब 8 बजे तक उनके देवलोक गमन की खबर जैसे ही इटारसी आयी, लोगों को सहसा भरोसा ही नहीं रहा। खबर सुनकर हर दिल में ग़म था और बैचेनी थी।
हर कोई नि:शब्द था। ऐसा लग रहा था मानो मेरे अपने परिवार का ही कोई सदस्य सदा के लिए चला गया हो। अपने मरीज के रोग की सटीक पहचान व उसको सटीक इलाज का उनका आत्मविश्वास व मरीज को जल्द स्वस्थ करने की कला बेमिसाल थी। वे अपने यहां आये मरीज को बहुत कम ही भोपाल या नागपुर रैफर करते थे। वे स्वयं मरीज में आत्मविश्वास भरते थे कि मरीज सकारात्मक सोच के साथ जल्द ही ठीक हो जाता था। वे रोटेरियन भी रहे, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारी भी रहे। आमतौर पर ऐलोपैथी का डाक्टर(Doctor) अन्य पैथी की दवा नहीं लेने देता है, लेकिन डाक्टर (Doctor) हेडा आयुर्वेदिक (Ayurvedic) दवाओं पर भी उतना ही भरोसा करते थे, और अपने यहां आये मरीजों को कम से कम ऐलोपैथी दवाएं लिखते थे, उनके साइड इफेक्ट बताकर दवाएं कम खाने का सुझाव भी देते थे। उनके यूं ही अचानक चले जाने से शहर मायूस था। हजारों आंखें उनका अंतिम दर्शन करना चाहती थी, उनको अंतिम विदाई के वक्त स्वयं मौजूद रहने की इच्छा रखते थे। कई तो ऐसे भी हैं, जिनके लिए डाक्टर हेडा चिकित्सक नहीं बल्कि भगवान ही थे। वे अपने इस भगवान का अंतिम दीदार भी नहीं कर सके। इस डाक्टर डे पर यह शहर उनकी कमी महसूस करेगा। अब उनकी डिस्पेंसरी सूनी है, उनसे जुड़े कम्पाउंडर आज भी आ जाते हैं, बेटा विदेश में है, पत्नी आशा हेडा, का वे खुद ख्याल रखते थे, अब देशबंधुपुरा के वेंकटेश क्लीनिक की दुनिया ही बदल गयी है। आज डाक्टर्स डे पर नर्मदांचल डॉट कॉम की ओर से उनको हृदय से श्रद्धांजलि।

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AUTHORRohit

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