एक अनुपयोगी बोतल बन सकती है चलती फिरती प्रयोगशाला

Post by: Rohit Nage

Updated on:

  • – परीक्षा के अंकों से जिंदगी का ये रिश्ता क्या कहलाता है समझने की जरूरत : राजेश पाराशर
  • – सांई फार्च्यून सिटी साइंस कैंप में नागपुर, पुणे, प्रयागराज के सांइटिस्ट बढ़ा रहेच्चों का विज्ञान से नाता

इटारसी। दो आंखों से देखा तो दिखी गहराई। लेकिन एक आंख से यह अनुमान लगाना मुश्किल हो गया कि कोई वस्तु कितनी गहराई पर है। एक कंचे और कटोरी की मदद से प्रयोग करके बच्चों ने दो आंखों का महत्व जाना। एक बोतल में तीन छिद्र करके जब पानी भरा गया तो सबसे नीचे के छिद्र से पानी की धार सबसे आगे तक जा रही थी। इस प्रयोग से किसी डैम की दीवार को नीचे से चौड़ा क्यों बनाया जाता है, इस प्रकार से बीस से अधिक प्रयोग करके बच्चों को रिसोर्स साइंटिस्ट सुरेश अग्रवाल ने समझाया।

उन्होंने कहा कि सत्य की खोज करना ही विज्ञान का लक्ष्य होता है। वीबी रायगांवकर ने चंद्रमा और पृथ्वी के पात्र बनाकर समझाया कि हमें हमेशा चांद का एक ही भाग क्यों दिखाई देता है। उन्होनें गैलेक्सी, सौरमंडल से संबंधित खगोल विज्ञान के अनेक प्रयोग खेल के माध्यम से समझाये। हार्टीकल्चर के स्त्रोत विद्वान केएस तोमर ने हाईड्रोपोनिक्स पद्धति की वैज्ञानिक जानकारी दी। किचन गार्डन में पौधों की देखभाल के वैज्ञानिक तथ्यों को बताया। साइंस कैम्प के आयोजक राजेश पाराशर ने कहा कि ने कहा कि बच्चों के परीक्षा नंबरों का उसके जीवन से रिश्ता क्या कहलाता है, इस पर विचार करने की जरूरत है।

हम बच्चों को ढेर सारे नंबर दिलाकर क्या कर लेंगे। नंबर लाने से अधिक महत्वपूर्ण स्किल बढ़ाना होता है। अच्छा शिक्षण वह है जो बच्चे को ऐसी स्थिति में लाये कि बच्चा अपनी मुश्किलें खुद हल करें। कैंप में बच्चों ने समझा है कि एक अनुपयोगी बोतल भी चलती फिरती प्रयोगशाला बन सकती है। कैंप गतिविधियों के फीडबैक लेते हुये बीबी गांधी तथा अनिल सिंह ने बच्चों से जानकारी प्राप्त की। समन्वयन एम एस नरवरिया तथा संजय मनवारे कर रहे हैं।

Leave a Comment

error: Content is protected !!