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आईना भी खुशी से भर उठता है, सच तुम कितनी सुंदर हो

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झरोखा: पंकज पटेरियाl गुजरे दिनों कोरोना के क्रूर दौर में डर, आशंका से बुझे मन तनाव भरे चेहरे, गुम हुई हंसी-खुशी, चहल-पहल, सन्नाटा, गांव शहर की जैसे जुवान ही चली गई। अजीब मनहुशी भरा महोल था पिछले दिनों। रोज ब रोज एक न एक दुख की खबर से शोक निमग्न होता वातावरण। ऐसे कठिन पलो में बड़ी पशो पेश की स्थिति होती, कैसे बहलाए जाए इन लोगो को ओर क्या जतन हो कि लोट आए उदास चेहरों पर वहीं चमक दूधिया हंसी खुशी। अनायास ही फिसल गई होठों से ये पंक्ति तुम कितनी सुंदर हो, आईना भी खुशी से भर उठता है। एका एक जैसे धूल पुछ कर नहा गया सारा माहौल ताजा तरीन हो गया। उसकी एक क्षण पहले की सूरत पर मंद मुस्कान फेल गई, एक सुर्खी लाज की कोपोलो पर उतर आई। चेहरे पर एक साइड उतरी लट्टो को कान के पीछे ले जाते वह खुद ही बोल उठी कल भोपाल में चेक करा आते है। शायद सब ठीक हो, अभी से टेंशन कोन पाले। उम्मीद के मुताबिक मेरा मन बड़ा, मैंने तत्काल भरोसे की महक फैलाते जोड़ा यकीन न सब कुछ अच्छा ही रहेगा बेटा। मेरी बेटी जैसी उस लड़की में एक हौसला जाग गया था। दूसरे दिन घर परिवार जनों के साथ वह भोपाल गई सारी जांचे हुई, सब नार्मल आई।
रात भर मै भी फिक्र मंद रहा, ईश्वर से प्रार्थना करता रहा। दूसरे दिन शाम उस बेटी का ही फोन आया डरते डरते फोन लिया हेलो, दूसरे तरफ से खनक ती आवाज आई अंकल क्या जादू कर दिया आप ने। मैं तो बिल्कुल टंच फंट हूँ। डाक्टर बोले क्यों परेशान होती हो किसी को देख तुम क्यों टेंशन लेती हो। बीमार को देख कर अच्छी बाते कर उसका हौसला बड़ा ना चाहिए। उसको देख कर खुद मुंह लटका कर तबीयत खराब कर लेना अकल बंदी नहीं, बेवकूफी है। मैंने भी सत्ते पर सत्ता मारते कहा बेटा यही जादू है मुझे लगा कुछ दिन यह जादूगरी ओर करना चाहिए। लिहाजा कुछ दिन ओर रोज यह थेरेपी प्यार दुलार भरे अंदाज में अप्लाई करता रहा। दो चार दिन में ही गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी। घर आंगन हंसी खुशी से झूम ने लगा था। मैंने शरारत से फिर उछाल दी बही पंक्ति तुम कितनी सुंदर हो आईना भी खुशी भर उठता है तुम्हे देख कर। मुझे याद आ गया एक मोंजू शेर दो बोल प्यार के दिले नाशद की दवा होते है, बही खुदा की। दुआ होते है। लिहाजा सभी की खुशहाली और सभी की सलामती की हम ईश्वर से प्रार्थना करे। यही पूजा है, उपासना है आराधना है। नित्य उपासना बना लीजिए। खुश रहे खुश रखेगे।मास्क पहने डिस्टेंश रखे। सच आप कितने सुंदर है।

pankaj pateriya

पंकज पटेरिया, संपादक शब्द ध्वज
9893903003,9407505691

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