ज्ञानार्जन करने नर्मदा परिक्रमा पर निकले अनंत, लिखेंगे किताब

इटारसी। महाराष्ट्र के ठाणे निवासी अनंत कोल्हटकर ज्ञानार्जन का उद्देश्य लेकर नर्मदा परिक्रमा पर निकले हैं। दक्षिण तट ओमकारेश्वर से नर्मदा परिक्रमा से निकले अनंत का मानना है कि नर्मदा परिक्रमा करना आसान काम नहीं है। महज आस्था लेकर निकलना कोई ठीक बात नहीं है, बल्कि आस्था के साथ नर्मदा परिक्रमा का महत्व भी जानें।

महाराष्ट्र के कारोबारी करीब 60 वर्ष के अनंत कोल्हटकर अपने साथी विजय ओजाड़ेकर के साथ नर्मदा परिक्रमा पर 13 नवंबर को ओमकारेश्वर से निकले हैं और वे दक्षिण पथ पूर्ण करके उत्तर तट पर चल रहे हैं। ग्राम नेहलाई में इस संवाददाता से बातचीत में उन्होंने बताया कि उनका नर्मदा परिक्रमा का विचार दस वर्ष पुराना था। परिजनों ने उनको आने नहीं दिया। तीन बेटियों का विवाह करके पारिवारिक जिम्मेदारी से निवृत होकर वे नर्मदा परिक्रमा पर निकले हैं।

पहले अभ्यास किया, फिर निकले

उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने आसपास के तीर्थस्थलों पर पैदल चलने का अभ्यास किया। हर रोज दस-बीस किलोमीटर पैदल चले हैं। पीठ पर दस-पंद्रह किलो वजन लादकर पहले अभ्यास किया है। उन्होंने कहा कि यदि वास्तव में परिक्रमा पूर्ण करना है तो आपको अभ्यास करना चाहिए। उन्होंने यू-ट्यब चैनल, किताबों का अध्ययन किया, अब वे स्वयं अपने अनुभवों के आधार पर किताब लिखेंगे।

धरती बिछौना, आकाश की चादर

यदि मन में आस्था है, तो परिक्रमा में कोई भी भोग-विलास मन में नहीं लाना चाहिए। वे धरती पर सोते हैं, वह भी खुले आसमान के नीचे। तन पर महज दो कपड़े और शेष सारा सामान पीछे गाड़ी में आता है। वे पैदल चलते हैं। इससे वे स्वयं की क्षमता भी पहचान पा रहे हैं।

जितना लो, उतना दो भी

पूरी परिक्रमा पर वे यदि कहीं से भी कुछ लेते हैं तो उतना वापस भी करते हैं। उनका कहना है कि सब चीजें फ्री में लेना उचित नहीं है। वे जहां भी आश्रम में रुके हैं तो उस आश्रम में दान दिया है, जहां भी भंडारे में भी खाना खाया है तो उस जगह पर दान भी दिया है। उनका कहना है कि कर्ज लेकर परिक्रमा नहीं करना। वापस नहीं करोगे तो आपके सिर पर कर्ज चढ़ता जाएगा। उनका कहना है कि बिना अभ्यास परिक्रमा पर नहीं निकलना, क्योंकि यदि परिक्रमा पूरी ईमानदारी से पूर्ण नहीं की तो इसका कोई मतलब नहीं। कई लोग पैदल भी चलते हैं और थकने पर वाहन पर चलने लगते हैं। इसका कोई अर्थ नहीं।

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AUTHORRohit

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