- पर्यूषण पर्व के अंतर्गत श्री तारण तरण दिगंबर जैन चैत्यालय में प्रवचन
इटारसी। नगर में पर्यूषण पर्व के कार्यक्रम प्रारंभ हो गये हैं। श्री तारण तरण दिगंबर जैन चैत्यालय पहली लाइन में इंदौर से आये डॉ उदय जैन ने प्रात: कालीन प्रवचन में उत्तम मार्दव धर्म पर चर्चा की। उन्होंने ने कहा कि मृदुता या कोमलता के भाव होने को, मान/मद/अभिमान/ अहंकार का अभाव होने को ‘उत्तम मार्दव’ धर्म कहते हैं।
उन्होंने किसी अहंकारी व्यक्ति की तुलना एक नशे में चूर व्यक्ति से की, और कहा कि जैसे नशे में धुत व्यक्ति को कोई समझा नहीं सकता, उसी प्रकार अभिमानी व्यक्ति को भी कोई समझा नहीं सकता, क्योंकि मद के कारण वह व्यक्ति सब कुछ भूल जाता है। कर्म सिद्धांत के आधार पर उन्होंने बताया कि हमें वर्तमान में जो धन, संपत्ति, भोग, उपभोग की सामग्री मिली है, वह हमारे पूर्व जन्मों में बांधे गए पुण्य कर्म के उदय के कारण मिली है।
वर्तमान में जो हमारी प्रतिष्ठा बढ़ रही है या हमारी प्रशंसा हो रही है, वह हमारे द्वारा पूर्व जन्म में बांधे गए यश नाम कर्म के उदय के कारण मिल रही है, तथा वर्तमान में जो हमें ज्ञान या तीक्ष्ण बुद्धि प्राप्त हुई है, वह हमारे द्वारा बांधे गए ज्ञानावर्णी कर्म के क्षयोपशम के कारण है।
इसी प्रकार शरीर, रूप आदि भी हमारे पूर्व जन्म के बांधे गए नाम कर्म के उदय अनुसार ही मिले हैं, और हम, मैंने यह सब मेहनत से प्राप्त किया है, ऐसा मानकर अहंकार करते हैं। ऐसे मिथ्या ज्ञान के कारण ही हम अहंकार/अभिमान में डूबे रहते हैं।
मद आठ प्रकार के होते हैं
ज्ञान का मद, पूजा/प्रतिष्ठा/ऐश्वर्य का मद, कुल का मद, जाति का मद, बल का मद, ऋद्धि का मद, तप का मद और शरीर/रूप का मद। इन 8 प्रकार का मदों में हम उलझे रहते हैं एवं धर्मात्मा, व्रती, गुरुजनों व विद्वानों को देखकर उनकी विनय नहीं करते जबकि देव, गुरु और शास्त्र का मन, वचन और काय से सत्कार करना उत्तम मार्दव धर्म है।