भोपाल। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से आता हूं, जिसने दुनिया को स्वीकार करना और सहिष्णुता सिखाई है और जो सभी धर्मों को सच मानता है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से आता हूं जिसने पृथ्वी के सभी धर्मों और देशों के सताए हुए लोगों को शरण दी है। स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) के शिकागो भाषण के इन अंश पर एकता परिषद के संस्थापक एवं अखिल भारतीय सर्वोदय समाज (All India Sarvodaya Samaj) के राष्ट्रीय संयोजक पीवी राजगोपाल (National Convenor PV Rajagopal) ने कहा कि हम आज स्वामी विवेकानंद की 158 वीं जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं, मैं 1893 में शिकागो में दिए विवेकानंद जी के भाषण में से इन शब्दों पर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। मेरा मानना है कि हमारे राष्ट्र की ताकत आत्मसात करने और एक साथ आगे बढऩे में निहित है। विवेकानंद जी एवं गांधी जी दोनों ही समावेशीता के विश्वासी थे और उनका मानना था कि भारत की सुंदरता विभिन्न फूलों से रचित एक गुलदस्ता है। हालांकि, आज यह देखना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि विवेकानंद जी एवं कई अन्य दार्शनिकों के देश में विभिन्न प्रचारों के माध्यम से इस ताकत को तोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। इस तरह के प्रयास का बहुत हालिया उदाहरण अहिंसक किसानों के कृषि कानूनों के खिलाफ जाने पर देखा जा सकता है। सत्ता में बैठे लोग इस विरोध को खालिस्तानी, अर्बन नक्सल जैसे नामों से चित्रित करने का प्रयास कर रहे हैं और वे इसे देशद्रोही कहते हैं। जो कि सरकार का मुख्य मुद्दे को संबोधित करने से हटने का प्रयास एक प्रयास है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के कल के बयान में आशा की किरण देखी जा सकती है जो किसानों के अहिंसक स्वभाव की सराहना करती है और सरकार से किसानों के मामले पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहती है। इससे पता चलता है कि इस तरह के अहिंसक और एकीकृत विरोध प्रदर्शन हमारे देश की ताकत हैं और कोई भी प्रचार तंत्र उनके खिलाफ काम नहीं कर सकता है। इस प्रकार, आज के युवाओं के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे स्वामी विवेकानंद के उपदेशों को समझें और अपने देश की घटती एकता को बचाने की दिशा में काम करें और राष्ट्र को विवेकानंद और गांधीजी के दर्शन की ओर अग्रसर करें।