मध्यप्रदेश के प्रमुख रेलवे स्टेशन पर सफाई व्यवस्था में आपराधिक लापरवाही

मध्यप्रदेश के प्रमुख रेलवे स्टेशन पर सफाई व्यवस्था में आपराधिक लापरवाही

इटारसी। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के प्रमुख रेल जंक्शन (Rail Junction) का तमगा टांगे इटारसी रेलवे स्टेशन (Itarsi Railway Station) की व्यवस्था सुधारने एक अदद सख्त और अनुशासन पसंद अफसर की नितांत आवश्यकता है। वर्तमान अफसर तो इस कदर लापरवाह है कि उच्च अधिकारियों तक की आदेशों को हवा में उड़ा रहे हैं। दो दिन पूर्व ही वरिष्ठ मंडल वाणिज्य रेल प्रबंधक ने इस जंक्शन स्टेशन का निरीक्षण कर सफाई व्यवस्था और अन्य व्यवस्था में त्वरित सुधार के निर्देश दिये थे। उनके जाने के बाद व्यवस्था में तिलमात्र भी बदलाव नहीं दिखा है।

ठेके पर चल रही सफाई व्यवस्था में वेतन नहीं मिलने पर काम बंद करने वाले सफाई कर्मचारी भी बेफिक्र धूप सेंकते रहते हैं। इनको न तो कोई देखने की जुर्रत करता है और ना ही इनसे काम कराने की जेहमत उठाना चाहता है। हमने जब इटारसी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म का निरीक्षण किया तो कई व्यवस्थाएं बेपटरी दिखाई दी। सफाई व्यवस्था तो लगभग चौपट है। प्लेटफार्म की टाइल्स पर जमे तेल को देखकर लगा कि महीनों से इसे साफ नहीं किया गया है और इसने यहां स्थायी डेरा जमा लिया।

वेंडर्स की मनमानी पर लगाम नहीं

अवैध वेंडर्स के लिए कुख्यात इटारसी रेल जंक्शन वेंडर्स की मनमानी का भी शिकार है। जहां यात्रियों के बैठने की जगह होती है, वहां वेंडर कब्जा करके खानपान सामग्री रखकर यात्रियों के लिए परेशानी पैदा करते हैं। प्लेटफार्म दो और तीन में रखे डस्टबिन ऊपर ओवर होकर कचरा नीचे गिरा रहे थे तो खानपान की किसी सामग्री पर जालीदार कपड़ा नहीं डाला जा रहा है। जोन और डिवीजन के अफसरों के आने की खबर पूर्व से ही हो जाने के कारण आनन-फानन में व्यवस्था कुछ देर के लिए सुधार ली जाती है, अफसर के जाने के बाद हालात जस की तस हो जाते हैं।

मशीनों को एक तरफ रखा

प्लेटफार्म की सफाई व्यवस्था पूरी तरह से चौपट है, गंदगी के आलम में संक्रमित बीमारियां यात्रियों को अपनी गिरफ्त में ले सकती हैं। कभी आधुनिक मशीनों से सफाई का दावा किया गया था, ऐसी मशीनें एक तरफ रखी धूल खा रही हैं। रेल पटरी और एप्रॉन के किनारे इतनी गंदगी रहती है कि देख भर लेने से आदमी का मन खराब हो जाए। यह आपराधिक लापरवाही रेलवे स्टेशन पर हर रोज हो रही है और स्थानीय जिम्मेदार मैदान में उतरकर व्यवस्थाओं में सुधार लाने की अपेक्षा केवल कुर्सियों की शोभा बढ़ा रहे हैं। जब आला अधिकारी आते हैं तो उनके गुस्से का शिकार होने के बावजूद इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है। अफसर के जाने के बाद यह लोग चेन की सांस लेते हैं।

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AUTHORRohit

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