उर्दू के जाने-माने शायर बशीर बद्र की वे लाइनें,
कोई हाथ भी न मिलाएगा,जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है,जऱा फ़ासले से मिला करो।
आज की परिस्थिति में सार्थक हैं। लेकिन, ये मनुष्य है, जो खुद को खुदा समझ बैठा है। यह समझ भी नहीं कि खुदा होना केवल अपने को ताकतवर साबित करना नहीं है। एक छोटा सा विषाणु आपको परेशान कर देता है, आप एक वर्ष से उससे संघर्ष कर रहे हैं। पूरी दुनिया का चिकित्सा विज्ञान उसके खात्मे के लिए वैक्सीन रूपी हथियार ईजाद नहीं कर पा रहे हैं। जो ईजाद करने का दावा है, वह भी शत प्रतिशत नहीं। कोई 95 फीसदी कारगर कह रहा है तो कोई 70 फीसदी।
जब आमजन को यह बात समझ आ गयी कि जिंदगी तो इसी के साथ जीना है, उसका डर खत्म होता गया और खतरा बढ़ता गया। अब चिकित्सा विज्ञान के धुरंधर कर रहे हैं कि कोरोना का तीसरा चरण पहले दो से ज्यादा खतरनाक है। इसमें आप रोगी की पहचान ही नहीं कर सकेंगे। यानी किसके शरीर में वायरस पल रहा है, उसका पता लगाना मुश्किल होगा। उसे खुद पता नहीं होगा तो वह कैसे सावधानी रखेगा। वह तो खुलेआम घूमता रहेगा और वायरस लोगों को बांटता रहेगा। जाहिर है, यह बड़ी चिंता का विषय है। बावजूद इसके सबकुछ खुला है, क्योंकि जिंदगी तो जीना ही है। मगर उन लोगों का क्या जो जिंदगी के साथ मजाक कर रहे हैं। बिना वजह चौक-चौराहों, बाजार में अपने बैठक स्थलों पर फिर से पुराने दिनों की तरह जाकर हंसी-ठिठौली करके खुद को तो खतरे में डाल ही रहे हैं, अपने घर के छोटे बच्चों और बुजुर्ग माता-पिता को भी खतरे में डाल रहे हैं। कहते हैं, अमुक बुजुर्ग कभी घर से नहीं निकला और संक्रमित हो गया। यह नहीं सोचा कि उसे वायरस आपने बाहर से लाकर दिया। चूंकि आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर थी, आपको फर्क नहीं पड़ा और आपका शहरी अपनी इम्युनिटी की बदौलत वायरस से लड़कर जीत गया। परंतु आपके घर के बुजुर्ग को इसके आगे हार माननी पड़ी। आपकी वजह से आपके घर का बच्चा पीड़ा झेलने लगा। जिन लोगों को कोरोना हुआ भी, उनमें से 80 फीसद से अधिक लोग ऐसे हैं जिनको अस्पताल जाने की जरूरत ही नहीं महसूस हुई और वे घर पर ही रह करके ठीक हो गए। इससे भी हमारी हिम्मत बढ़ी और हमें यह समझ में आने लगा कि यह कोई डराने वाली चीज नहीं है। इसी सोच ने लोगों को लापरवाह बना दिया। लेकिन, यह वायरस केवल आपके अकेले को नुकसान नहीं पहुंचाता, आपसे जुड़े तमाम लोग इसकी जद में आ जाते हैं, अत: सावधानी ही सुरक्षा है और इसे अपने पास तक न आने दें, इसी में समझदारी भी है।
दुनिया भर के वैज्ञानिक कोविड-19 से निपटने रिसर्च कर इसके संक्रमण को रोकने वैक्सीन बनाने में जुटे हैं। इस बीच अच्छी खबर भी हैं कि करीब आधा दर्जन टीकों का इंसानों पर परीक्षण शुरू हो गया है। मगर डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नाबारो ने जो कहा है, वह दुनिया भर की सरकारों, स्वास्थ्य संगठनों और लोगों के लिए चिंता के साथ-साथ गहन विचार का विषय होना चाहिए। डॉ डेविड के मुताबिक, हम पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि कोविड-19 की वैक्सीन (Covid-19 Vaccine) तैयार हो ही जाएगी और यदि हो भी गई, तो गुणवत्ता व सुरक्षा की कसौटी पर वह सौ फीसदी खरी उतरेगी। यानी प्रकारांतर से वह यही कह रहे हैं कि दुनिया इस वायरस से बचने के उपायों को ही इसका ठोस उपचार समझे। जाहिर है, कोविड-19 से निपटने में भी जागरूकता ही फिलहाल सबसे बड़ी दवा है।