– रोहित नागे :
हर रोज हमारा सामाना ऐसी चीजों से पड़ता है, जो प्रशासन से चाहते हैं, या प्रशासन द्वारा यह व्यवस्था हमें दी जानी चाहिए और हमारी उम्मीदों को हर समय निराशा ही मिलती है। लेकिन, क्या हमें पूरी तरह से प्रशासन या सरकार पर ही निर्भर रहना चाहिए? जरा सोचें। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत वर्ष 2021 के स्वच्छता सर्वेक्षण में हमारे शहर की रैंकिंग में सुधार तो हुआ है। लेकिन, हमें इतने में ही संतोष नहीं करना चाहिए, क्योंकि हम प्रथम दस में भी स्थान नहीं बना सके हैं। किसकी कमी है, कौन जिम्मेदार है, जैसे सवालों को पीछे छोड़ दें, क्योंकि नतीजे अब बदलने वाले नहीं हैं। परंतु आगे के वर्षों में नतीजों में बेहद चमत्कारिक बदलाव की उम्मीद यदि हम करें तो हमें भी इस अभियान में सहभागिता निभानी होगी। अब तक के नागरिक व्यवहार से तो यही महसूस हुआ है कि जनता इसे केवल सरकारी कार्यक्रम मानकर केवल कमियां, कमजोरी और शिकायतों तक अपनी भूमिका को सीमित कर रही है।
इस देश में 2 अक्टूबर 2014 को, गांधी जयंती के पावन मौके से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की लौ प्रज्वलित की थी। स्वच्छ भारत मिशन के ये सात वर्ष इतने आसान नहीं थे। आने वाले वर्षों में भी यह चुनौतीपूर्ण ही रहेगा। अभी न तो स्वच्छ भारत का सपना खत्म हुआ है और ना ही सफर। बल्कि अब तो 2 अक्टूबर 2014 को जलायी गई मशाल की लौ और तेज हो गयी है। हमें अपने आसपास के वातावरण को ऐसी नयी ऊंचाईयों पर ले जाना है जहां हरियाली हो, स्वच्छ हवा हो, मशीनों से सफाई हो, सफाई कर्मियों का जीवन सुरक्षित हो। वेस्ट को वेस्ट नहीं बल्कि रिसोर्स बनाना होगा। यह सब तभी संभव होगा, जब हम स्वयं स्वच्छता का महत्व समझेंगे और दूसरों को भी समझाएंगे कि स्वच्छता से ही समृद्धि है। स्वच्छता को अपनी आदत में लाना होगा। और एक खास बात यह कि स्वच्छता और सफाई में अंतर को समझना होगा। आमतौर पर हम सड़कों, गलियों और नालियों की सफाई को ही स्वच्छता मान लेते हैं। लेकिन, स्वच्छता एक व्यापक शब्द है, इसमें संपूर्ण स्वच्छता की भावना निहित है। सफाई से आशय केवल साफ करना ही हो सकता हो, लेकिन स्वच्छता में मानव अपशिष्ट, ठोस अपशिष्ट, अपशिष्ट जल, सीवेज प्रदूषण, औद्योगिक अपशिष्ट आदि व्यापक प्रबंधन करने की जरूरत होती है।
इस वर्ष स्वच्छ सर्वेक्षण 2022 में नागरिक सहभागिता की बहुत ज्यादा जरूरत होगी। केवल स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए ही नहीं बल्कि स्वच्छता क्रांति के लिए काम करने की जरूरत है। इस वर्ष यह जनता का आंदोलन बने, वार्ड से सामाजिक, धार्मिक समितियां, सामाजिक संगठन, स्वयंसेवी संगठन, युवाओं के संगठन आगे आएं। स्वच्छता के बीते सात वर्ष स्वच्छ भारत के कल की नींव हैं और सबके प्रयास से यह नींव आज जितनी मजबूत बन रही है, उस पर भविष्य की दीवार भी काफी मजबूत और खूबसूरत होगी। स्वच्छता की यह मशाल तभी तेज प्रज्वलित होगी जब इसमें हर नागरिक को अपनी भागीदारी निभानी होगी। नागरिक भागीदार बनेंगे तो हमारे शहर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शहरों में शुमार किये जाएंगे। तो फिर आज से ही हमें ठान लेना है कि अपने शहर को स्वच्छता में अव्वल स्थान दिलायेंगे।
स्वच्छ सर्वेक्षण में इंदौर, सूरत को ऐसे ही अव्वल स्थान नहीं मिले हैं। वहां प्रशासन के साथ ही वहां के नागरिकों ने भी अपने शहर को यह सम्मान दिलाने के लिए काफी सहयोग किया है। नागरिकों ने स्वच्छता को अपनी आदत बना लिया है। वे सड़क पर कचरा नहीं फैंकते, वे गीला और सूखा कचरा एक साथ नहीं रखते बल्कि अलग-अलग रखते और कचरा वाहन आने पर उसमें अलग-अलग ही देते हैं। वे अपनी नागरिक जिम्मेदारी भी निभाते हैं। हमारे शहर की भी बड़ी आबादी इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं, जो लोग अब तक इसे केवल सरकारी अभियान समझ रहे हैं, उनको भी अब इसे अपना दायित्व समझकर साथ आना होगा, तभी हम अपने शहर को अव्वल स्थान दिला सकते हैं। प्रशासन को भी अब नागरिकों को इस अभियान से जोडऩे के लिए उनके पास जाकर उनको यह भरोसा दिलाना होगा कि प्रशासन उनके लिए है और उनके लिए ही काम कर रहा है, तभी नागरिक भी इसमें अपना योगदान दे सकेंगे।
Rohit Nage
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