गरजते बादल, चमकती बिजली को प्रिय है ऊंचे वृक्ष और ऊंची इमारतें

Post by: Poonam Soni

इटारसी। विज्ञान शिक्षक राजेश पाराशर (Science teacher Rajesh Parashar) ने बारिश के मौसम में आसमानी बिजली से बचाव के तरीके प्रयोग करके समझाये। रेस्ट हाउस परिसर में उन्होंने आज एक प्रदर्शनी में गरज-चमक के बादलों के साथ बिजली को पेड़ों या ऊंची इमारतों पर गिरते दिखाया है।
प्रयोग में दिखाया कि आकाश में चमकती और गरजती बिजली जैसे ही एक ऊंचे पेड़ के पास पहुंची, उसे पृथ्वी से मिलने का सहारा मिला और समा गइ पृथ्वी में। इनके मिलन का माध्यम बना पेड़। इस पूरे घटना को प्रयोगों द्वारा लाइव प्रदर्शन किया गया।
पाराशर ने बताया कि कुछ ऐसा ही होता रहता है, मानसून (Monsoon) के समय। बिजली के आकाश से पृथ्वी तक पहुंचने के शिकार बनते हैं प्राणी, जो भीगने से बचने के लिये वृक्षों को छाता समझ बैठते। हर साल बिजली गिरने की प्राकृतिक घटना से जनहानि होती है। इस घटना को रोका तो नहीं जा सकता है, लेकिन जनहानि को वैज्ञानिक समझ के साथ जरूर कम किया जा सकता है।
आदित्य पाराशर ने बताया कि बिजली चमकना एक प्राकृतिक क्रिया है। आसमान में विपरीत आवेश के बादल हवा में घुमड़ते रहते हैं। जब ये टकराते हैं तो इनमें घर्षण होने से बिजली पैदा होती है। आसमान में किसी तरह का चालक पदार्थ न होने से बिजली पृथ्वी पर चालक पदार्थ की तलाश करती है। नुकसान तब होता है जब बिजली जमीन पर आ जाती है। जिससे करोड़ों वोल्ट के एक साथ संपर्क में आने से जनहानि हो सकती है। एमएस नरवरिया ने बताया कि अगर इसके संपर्क मेंं कोई प्राणी आता है तो डीप बर्न होने से टिशू डैमेज हो जाते हैं। नर्वस सिस्टम (nervous system) पर असर पड़ता है। हार्ट अटैक होने से मृत्यु हो जाती है। कार्यक्रम में कैलाश पटैल ने मॉडल का संयोजन किया।
श्री पाराशर ने संदेश दिया कि बरसात के पानी में भीग जाना ज्यादा समझदारी है, बजाय इसके कि आप वृक्ष को छाता समझें। वृक्ष के नीचे आप कुछ देर तो पानी की बौछार से बच सकते हैं लेकिन बिजली तो वृक्ष की मित्र होती है। बिजली चमकने गरजने के दौरान ऊंचाई पर स्थित इमारत पर पर न जायें। मोबाइल भी बिजली को आकर्षित कर सकते हैं। उनका प्रयोग इन स्थानों पर न करें। तडि़त चालक लगी इमारत मेंं बिजली बिना किसी नुकसान के सीधे जमीन में समा जाती है। इसलिये ये इमारत सुरक्षित होती हैं

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