Rohit Nage, Itrasi –
जिंदगी में रंगों का बड़ा महत्व होता है। हर कोई चाहता है कि उसकी जिंदगी रंगीन हो, उसमें खुशियों के तरह-तरह के रंग हों, दुखों से दूर मन के भीतर गहरे तक खुशियां। तभी तो होली का त्योहार भी जिंदगी में रंगों और पकवानों का स्वाद लिए आता है। मनुष्य के जीवन में त्योहार कोई भी हों, इन सबके पीछे खुशियां ही होती हैं। यदि कहीं दुख भी है तो एक उम्मीद की किरण त्योहारों के माध्यम से आती है कि दुख है तो ज्यादा दिन उसकी जिंदगी नहीं रहेगी और खुशियों के फूल फिर जीवन में खिलेंगे। होली के रंग संभवत: बृज की धरा से संपूर्ण भारतवर्ष में फैले होंगे, क्योंकि यहां की होली का अंदाज ही निराला होता है। कोई भी शुरुआत कहीं से भी हो, जब यह अपने पंख फैलाती है तो इसका दायरा बढ़ता जाता है, त्योहार किसी एक जगह से शुरु होकर जब संपूर्ण देश में फैलते हैं तो सबकी खुशियां बन जाते हैं। भारत में होली के रंग पर्व बने, लोक संस्कार बने फिर इसकी आत्मा में रच बस गये।
होली बृज में लोक परंपरा बन गयी लेकिन देश के कई हिस्सों में आज भी होली का अकेला पर्व ऐसा है, जब लोग नये कपड़ों की नहीं बल्कि पुराने कपड़ों की चाहत रखते हैं। बृज में होली पर सजने-संवरने से लेकर उत्सवी माहौल और तैयारी भी उत्सवों जैसी ही होती है, लेकिन देश के कई हिस्सों में इससे आज एक बड़ा वर्ग दूरियां बनाने लगा है। बात जब इटारसी जैसे छोटे से कस्बाई संस्कृति की बसाहट की करें तो यहां से सैंकड़ों की संख्या में लोग इस त्योहार से दूर होने के लिए पलायन कर जाते हैं। बहाना भले ही देवदर्शन का हो, मगर यह सच है कि वे होली जैसे रंगों के त्योहार में घुस गयी कुसंस्कृति से बचना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें भगवान का ही सहारा लेना होता है, मानो हम विपत्ति में भगवान को याद करते हैं। जो लोग शहर छोड़ जाते हैं, उनके लिए होली किसी विपत्ति से कम नहीं है।
होली का पर्व तो वह होना चाहिए कि नयनों से इसके रंग कभी जुदा ही न हों। होली का अबीर-गुलाल कभी बिसरा ही नहीं सकें। लेकिन, अमन पसंदों को होली की हुड़दंग कभी पसंद ही नहीं आयी, क्योंकि इसमें अब असामाजिक तत्वों ने प्रवेश कर इस त्योहार पर मानो कब्जा जमा लिया हो। होली के दिन दिल मिल जाते हैं, लेकिन अब यह ज्यादातर दुश्मनी भुनाने का त्योहार बन गया है। केमिकल ने जब से रंगों में अतिक्रमण किया है, लोग रंगों से दूर भागने लगे हैं। अब पानी बचाओ का नारा देकर लोग होली से अपना बचाव करने लगे हैं, लेकिन इसके पीछे दरअसल भावना वही है कि खतरनाक रंगों से बचा जा सके। जो लोग इस पर्व से दूर नहीं होना चाहते हैं, वे भी अब इसमें आंशिक बदलाव करके सूखे रंगों और गुलाल से तिलक होली की वकालात करने लगे हैं।
बहरहाल, रंगों का यह पर्व मनाया जाना चाहिए, चाहे तिलक होली खेलें, गुलाल से खेलें या सूखे रंगों से। होली के ये रंग जिंदगी से कभी जुदा न हों, यह प्रयास हमेशा होना चाहिए, हमारी परंपरा को हम समृद्ध तभी बनाये रख सकेंगे, जब हमारे पूर्वजों के शुरु किये ये त्योहार हमेशा चलते रहें और जीवन में खुशियों के रंग बिखेरते रहें। होली की हृदय की गहराईयों से शुभकामनाएं।
Rohit Nage
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