- बालकृष्ण मालवीय
यह पक्तियां शहीद भगत सिंह के जीवन और उनके व्यक्तित्व को करती हैं। जैसा नाम, वैसा काम। क्रांति के साधक भगत सिंह वास्तव में क्रांति के भगत थे। क्रांति उनके अंदर कूट-कूट कर भरी थी। अब पिता एक बार भगतसिंह को खेत लेकर गये बीज बोने। तब छोटी उम्र के बालक भगत सिंह ने बीज बोने की जगह बंदूक बो दी। पिता ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो? तब भगत ने कहा बंदूक बो रहा हूं, इससे कई बंदूक उगेंगी। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था और 23 मार्च 1931 को फांसी दी गयी। आज उनके दो अन्य साथी राजगुरु, सुखदेव को भी फांसी दी गयी थी। उनका योगदान को भी भगत सिंह से कम नहीं था, पर आज केवल बात भगत सिंह जी की।
भगत सिंह के कई प्रेरणा स्त्रोत थे, जिनमें आर्य समाज के स्वामी दयानंद सरस्वती, लाला लाजपत राय, बंदा बौरागी, पुरुषोत्तम दास टंडन, भाई परमानन्द आदि। एक बार नेशनल कालेज में हुये समारोह में छात्रों ने नाटक प्रस्तुत किया। भगतसिंह ने उसमें सम्राट चन्द्रगुप्त का अभिनय किया। भाई परमानन्द जी उनके अभिनय को देखकर इतने प्रभाविन हुये कि मंच पर पहुंचकर उन्हें गले से लगा और कहा कि मेरा भगत सचमुच चंद्रगुप्त की तरह एक दिन भारत का गौरव बढ़ायेगा। और ये उनकी बात अक्षरश: सत्य सिद्ध हुई। भगत सिंह के बलिदान को पूरे राष्ट्र की धरोहर नहीं बनने देना चाहत थे कम्युनिस्ट। कम्युनिष्ट नेताओं ने भगत सिंह को, हमेशा आतंकवादी बताया और मिथ्या धारणा फैलाई कि उनके साथी जेल में मार्क्सवाद पढ़कर क्रांतिकारी बने और कम्युनिस्ट पार्टी में आ गये। लेकिन ये गलत साबित हुआ।
भगत सिंह महान सिख गुरुओं के जीवन से, आर्य समाज की विचारधारा से प्रेरणा लेकर, प्रभावित होकर देशभक्त बने, भगत सिंह और उनके साथी इतिहास लिखना चाहते थे। वे जानते थे कि देश की नजरें उन पर हैं, तनिक कमजोरी उनके इंकलाब को तबाह कर सकती है। इसी प्रकार कई जगह तत्कालीन कांग्रेस ने क्रांतिकारियों के विचार और बलिदान को अपमानित किया। क्रांतिकारी देश को आजाद कराने लड़े, उन्हें फांसी की सजा हुई, तबके कांग्रेसी नेताओं के हमारी फांसी की सजा कम करने की मांग से इनकार कर दिया था, यह कहकर कि हम गुमराह देशभक्त हैं, देश को आजाद कराने वालों के प्रति कोई संवेदना नहीं देश को बर्बाद करने वालों के प्रति संवेदना।
स्वामी श्रद्धानन्द जैसी विभूति की हत्या करने वाले सांप्रदायिक तत्व अब्दुल रसीद के प्राणों की भिक्षा तात्कालिक नेताओ ने अंग्रेज सरकार से मांगी थी। यदि अब्दुल रशीद से सहानुभूति थी तो भगतसिंह और उनके साथियों के प्रति क्यों नहीं दिखाई। अंत में इतना ही कि आज के युवाओं को अपना आदर्श फिल्मों के अभिनेता-अभिनेत्रियों को नहीं बल्कि हमारे देशभक्तों को मानना चाहिये और देश को उन्नति की ओर आदर्श युवा बन ले जाना चाहिये। आज 23 मार्च को राजगुरु सुखदेव, भगतसिंह के बलिदान दिवस पर उनको शत्-शत् नमन। विनम्र श्रद्धांजलि।