जीवन के रंग: कब गुजर गया बचपन?

Post by: Poonam Soni

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हर माह होने वाली मासिक बैठकें चाहे किसी भी संस्था की क्यों न हो, जीवन में बहुत ऊर्जा भर देती हैं।
दोस्त जब साथ होते हैं तो सब भूल जाते हैं कि हम भी 50 प्लस के हो गये । मिलते हैं जब कभी तो इतनी मस्ती करते हैं मानो अभी 10 -12 साल के ही हों।
…दी भी क्या कमाल करती हैं । पहले गिनती सिखाती हैं फिर 10-10 रूपये के लिये झगड़ा करवाती हैं। ‘बहुत अच्छे होते है वह पल जब हम सब 10-10 रूपये के लिये झगड़ते हैं। पूरा बचपन वापिस आ जाता है। पता ही नही चलता कि बचपन बीते कितने साल गुजर गए।
ढे़र सारे कपड़े, तोहफे घर पर रखे हैं पर दोस्तों से मिली गिफ्ट तो बहुत निराली होती है। खेल-खेल में ऐसे बच्चे बन जाते हैं कि गिफ्ट लेने की ललक में थोड़ी सी चीटिंग भी कर लेते हैं। इतने प्यारे होते हैं दोस्त कि पता ही नहीं चलता कि हम कब 50 – 55 के हो गये। स्वाद भी बहुत बढ़ जाता है खाने का जब साथ में चटकारे लेकर खाते हैं। कभी फुलकी, कभी कचोड़ी, कभी खट्टी-मीठी लौंजी तो कभी बर्फ के गोले खाते हुये पता ही नही चलता कि बचपन गुजरे कितने साल हो गए। रंग – बिरंगे कपड़ों में सजकर कभी रानी तो कभी महारानी, कभी हेमा तो कभी रेखा बन जाते हैं। कभी बच्चों की तरह गुड़िया तो कभी परी भी बन जाते हैं। पता ही नही चलता कि हम कब 50 प्लस के हो गये।
साथ बिताये हुए वह पल न जाने कब निकल जाते हैं। कभी योजना बनाते हैं मानव सेवा की तो कभी माधव सेवा करते वक़्त बीत जाता है। फिर मानव सेवा ही तो माधव सेवा है। इस तरह पता ही नही चलता कि बचपन तो हाथ से निकल गया। परिवार ने, पिता ने, माँ ने विवाह कर एक जीवन साथी तो दिया पर साथ रहते – रहते पति भी दोस्त और हम सफर बन गये। उनके साथ रहते हुए जीवन ऐसे निकल गया कि पता ही नहीं चला कि कब 50 प्लस के हो गए।

nirja fojdar

नीरजा फौजदार (Neerja Faujdar)

होशंगाबाद

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