शारदेय नवरात्र पर्व श्री बूढ़ी माता मंदिर में होगी 351 अखंड ज्योति स्थापना

Post by: Rohit Nage

Sharday Navratri festival, 351 Akhand Jyoti will be established in Shri Budhi Mata Temple.
  • नवरात्रि उत्सव में नौ दिनों तक चलेगा धार्मिक अनुष्ठान

इटारसी। श्री बूढ़ी माता मंदिर मालवीयगंज में शारदेय नवरात्र पर्व पर धार्मिक अनुष्ठान किया जाएगा। 3 अक्टूबर एकम से प्रारंभ कार्यक्रम 11 अक्टूबर को संपन्न होगा। मंदिर समिति सचिव जगदीश मालवीय ने बताया कि मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के सहयोग से अखंड ज्योति घट स्थापना श्री शतचंडी दीप यज्ञ के तहत नौ दिनों तक अखंड ज्योति घट स्थापित होंगे। आचार्य पं. प्रमोद कुमार शास्त्री बीना के आचार्यत्व में यह समारोह होगा।

एकम तिथि पर मांगलिक भवन में 351 अखंड ज्योति घट स्थापना होगी। प्रतिदिन पूजन, दुर्गा पाठ, जप, आरती उपरांत प्रसाद वितरण होगा। नौ दिनों तक श्रद्धालुओं के सहयोग से शाम की आरती के बाद फलाहारी महाप्रसाद वितरण होगा। 1200 रुपये सेवा शुल्क देकर श्रद्धालु अपनी ओर से प्रसादी वितरण करा सकेंगे। मुख्य पर्व दुर्गा नवमीं पर दोपहर 1 बजे से हवन, शाम 5 बजे से कन्याभोज एवं शाम 7 बजे से भंडारा होगा।

प्राचीन मंदिर से जुड़ी आस्था

श्री बूढ़ी माता मंदिर शहर का प्राचीन देवी शक्ति केन्द्र है। मान्यता है कि इस मंदिर में की गई हर मनोकामना पूरी होती है। चैत्र एवं शारदेय दोनों नवरात्र पर यहां नौ दिनों तक धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। मंदिर समिति चैत्र नवरात्र में शतचंडी महायज्ञ एवं मेले का आयोजन करती है। विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा के मार्गदर्शन में मंदिर समिति ने श्रद्धालुओं के लिए कई सुविधाएं एवं मंदिर विकास कराया है। पूरे प्रदेश और देश-विदेश के श्रद्धालुओं की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है। मान्यता के अनुसार प्राचीन समय में गांव की सीमा के पास खोखला, मरई या खेड़ापति माता के नाम से मंदिर स्थापित किए जाते थे, जो उस गांव की रक्षा करते थे। इनमें बसी माता गांव की, चारों दिशाओं से आने वाली बाधाओं से रक्षा करती हैं। इसी तरह बूढ़ी माता मंदिर की जगह एक छोटी मढिय़ा थी, मेहरागांव सीमा के कारण यह खेड़ापति माता थी, बाद में इन्हीं खेड़ापति माता का नाम श्रीसप्तशती में 108 देवियों के नामों में से एक नाम वृद्ध माता के नाम से ही बूढ़ी माता नाम पड़ा।

इन्हें मां धूमावती माना है

बूढ़ी माता रहस्यम पुस्तक में इन्हें मां धूमावती माना है, इसके अनुसार बूढ़ी माता, मां पार्वती के महाकाली अवतार का एक उप अवतार है। जिनका प्रकृत्य माता महाकाली का स्वरूप, जो देवासुर संग्राम में असुरों की सेना से देवों की रक्षा के लिए हुआ था। यह एक अवतार माताजी के दस महाविद्या के अवतार में सप्तम महाविद्या माता धूमावती देवी के बूढ़े स्वरूप का है इसलिए इस अवतार को माता बूढ़ी कहा है। माता बूढ़ी के इस स्वरूप के शिव भगवान, अघोर शंकर हैं, जो श्मशान में वास करते हैं, इसलिए माता बूढी का वास भी श्मशान में माना गया है। मां की आराधना भगवान अघोर शिव के साथ की जाती है, मां का मंदिर नगर के बाहर श्मशान भूमि के समीप रहता है।

मढिय़ा के जीर्णोद्वार हेतु श्री शतचंडी महायज्ञ शुरू किया

साल 1975 में वीरान इलाके में स्थित मढिय़ा के जीर्णोद्वार हेतु श्री शतचंडी महायज्ञ शुरू किया। किवदंती के अनुसार मेहरागांव और इटारसी के बीच गोमती गंगा नदी के किनारे माता खेड़ापति का निवास था। साल 1812 में राजस्थान में युद्ध हुआ। इस युद्ध के पूर्व कई बंजारे एवं मारवाड़ी राजस्थान से बाहर चले गए, जब इनका जत्था इटारसी से निकला, बंजारों ने पानी और मैदान देखकर यहां डेरा डाला, अपने तंबू लगाए, इंसानों के साथ ही साथ ऊंट, गाडर, बकरी को भी स्थान व पानी की सुविधा मिली। यहां अपनी कुलदेवी माताजी चिलासेन को स्थापित किया। जब राजस्थान में लड़ाई समाप्त हुई, बंजारे वापस गए तब उन्होंने कुलदेवी को भी ले जाना चाहा। तब माता जी बोली अब मैं यहीं रहूंगी। इस तरह इस प्राचीन शक्ति केन्द्र को धार्मिक पहचान मिली।

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