दोपहर 1 बजे से शाम 6 बजे तक नहीं खुली साइट
सोहागपुर। कक्षा पांचवी और आठवीं की परीक्षाओं को बोर्ड (Board) के माध्यम से करवाने की जिद के बाद ऐतिहासिक छलावा परिणाम साबित हुआ। आरएसके (RSK) द्वारा जारी हुआ परीक्षा परिणाम जिससे गुस्साए और नाराज सोपास संगठन (SOPAS Organization) के संचालक आलोक गिरोटिया (Alok Girotia) सहित प्राय: प्राय: सभी संचालकों ने राज्य शिक्षा केंद्र (State Education Center) की विफलता बताते हुए स्कूल संचालकों, अभिभावकों व छात्रों के प्रति सहानुभूति प्रकट की। सोपास के आलोक गिरोटिया ने बताया कि परीक्षा परिणाम घोषित होने की जानकारी मिलने पर दोपहर 12.30 से अभिभावक, संचालक और छात्र सभी मोबाइल (Mobile) व लेप टॉप पर अटके बैठे रहे जिन्हें करीब 6 घंटों से ऊपर के इंतजार के बाद भी परीक्षा परिणाम देखने को नहीं मिला।
परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद पोर्टल (Portal) पर सर्वर डाउन (Server Down) व साइट प्रॉब्लम के चलते जब छात्रों को उनका परीक्षा परिणाम दिखाई नहीं दिया तो चिंताओं के चलते भीषण गर्मी में माथे का पसीना गायब था पर किसी जवाबदार अधिकारी का एक बयान तक जारी नहीं हुआ। आलोक गिरोटिया ने लिखा कि ख़ामियों का भंडार ये शिक्षा विभाग कब तक यूं ही मासूमों के साथ खिलवाड़ करता रहेगा ?
कौन समझेगा इनकी मनोदशा ?
स्वतंत्र अवस्था की उम्र में एक तरफ बोर्ड पैटर्न पर हुई परीक्षाओं से 5वीं और 8वीं के छात्र और छात्राओं को गुजरना पड़ा। परीक्षा के पूर्व करीब सितंबर माह से अभिवावकों, स्कूल संचालकों के साथ विषय अध्यापक की समझाइश या हिदायत में बंधे 10 से 14 वर्ष के छात्र-छात्राओं को परीक्षा देने जब पहले दिन परीक्षा हाल में बैठना पड़ा तो उसके पूर्व रोल नंबर खोजने में भी बड़ी मशक्कत करनी पड़ी और उसके बाद कभी जमीन में बिना तख्ती के परीक्षा देने को बाध्य हुए परीक्षार्थी जब परीक्षा की चिंताओं से मुक्त होने की सुगंध महसूस ही कर रहे थे, तभी पांचवी और आठवीं के पेपर लीक होने से दोबारा पेपर होने की चिंता सताने लगी।
इस चिंता में उन्हें हफ्तों इंतजार में गुजारने पड़े तो जब इन सब चिंताओं से बाहर निकले ही थे, तो परीक्षा परिणाम घोषित होने के लिए उत्साहित छात्र छात्राओं को सर्वर डाउन/ साइट प्रॉब्लम के चलते उन्हें परीक्षा परिणाम देखने को नहीं मिला तो अंदर ही अंदर किशोरावस्था के छात्र छात्रायें सहमे से नजर आए जिनकी मनोदशा कोई मनोचिकित्सक ही समझ सकता है। संवाददाता के सर्वे के अनुसार शिक्षित वर्ग ने तर्क संगत अनुभव साझा करते हुए कहा कि यह उम्र इतनी चिंताओं के काबिल नहीं है, जितनी उनकी परीक्षाएं ली जा चुकी हैं। ऐसे में एक मानवीय सवाल उठता है कि आखिर इन किशोर किशोरियों की मनोदशा कौन समझेगा जबकि शिक्षा विभाग की लापरवाहियां चरम पर हों।