- झरोखा : पंकज पटेरिया
कहते हैं दुख दर्द की अलग-अलग जात नहीं होती, वे एक जात होते हैं। भले वे किसी जात के व्यक्ति हो। इसी तरह उनके सुख आनंद के क्षणों में एकजुट एक साथ है। आज के जमाने में तेजी से गिर रहे मानवीय मूल्यों में इंसानियत के रिश्ते में भीगी ऐसी मिसाल कहीं दिखाई दे तो निश्चित बहुत आश्चर्य होता है। अब जबकि मोबाइल और नेट की दुनिया के व्यवहार केवल हां और न में बंधे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
आदमी, आदमी से कट गया है, खुदगर्जी की खोह में कहीं गहरे दुबक गया है, तो जाहिर ऐसे उदाहरण स्वर्गिक लगते हैं। इस दुनिया के बिलकुल नहीं। लेकिन हकीकत कुछ और है। राजधानी भोपाल से कुल जमा 249 किलो मीटर दूर दमोह जिले के ब्लॉक जबेरा और हटा के 25 गांव में ऐसी नातेदारी करीब पांच पीढ़ी से चली आ रही है, और सुख-दुख में एक साथ, एक हाथ में एक हाथ लिए रहने की परंपरा आज भी मुस्तैदी से निभाई जा रही है।
सारे गांवों के लोग कहते हैं कि हमारे दुख सुख सभी एक साथ, सभी गांव घर के हैं। बताते हैं किसी गांव घर में किसी बेटी की शादी विवाह की बेला है, तो सारे गांव हंसी खुशी मिलकर उत्साह से दान दहेज बारात खाने पीने का खर्च उठाते हैं। इसी तरह किसी की मृत्यु के दुखद मौके पर सारे गांव की आंखें आंसू से भीग जाती हैं। अंतिम संस्कार का सामान सब मिलकर जुटाते।
अस्थि विसर्जन से लेकर तेरहवी तक सभी गांव जन सारे काम कारज निपटाते। कच्चे खपरैल मकानों में रहने वाले ये लोग यकीनन बड़े हैं और कितना बड़ा है, इनका कद। इनके सामने आज की इंटरनेट वाली चकाचौंध भरी दुनिया के हम लोग कितने बौने और कितने छोटे हैं।