इटारसी। शासकीय एमजीएम महाविद्यालय इटारसी (Government MGM College Itarsi) में ‘जल संरक्षण चुनौतियां एवं समाधान’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला में मुख्य वक्ता प्रोफेसर प्रमोद पाटिल भोपाल (Professor Pramod Patil Bhopal), विशिष्ट वक्ता डॉ उमेश धुर्वे सिवनी मालवा (Dr. Umesh Dhurve Seoni Malwa), डॉ रत्नाकर मिश्रा (Dr. Ratnakar Mishra), डॉ ओएन चौबे शासकीय नर्मदा महाविद्यालय नर्मदापुरम (Dr. ON Choubey Government Narmada College Narmadapuram), महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ राकेश मेहता (Dr. Rakesh Mehta), वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ विनोद कृष्णा (Dr. Vinod Krishna) मंचासीन रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की पूजा अर्चना से हुआ।
प्राचार्य डॉ राकेश मेहता ने स्वागत उद्बोधन के साथ विषय परिवर्तन करते हुए कहा कि जल संचयन की विभिन्न विधियां जिनके माध्यम से जल का संचयन किया जा सकता है। इसके अंतर्गत वाटरसेड प्रबंधन, भू जल संचयन, समग्र प्रक्रिया के आयाम होते हैं, जिनके माध्यम से जल को संग्रहित कर मानव समुदाय के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। विपरीत परासरण विधि के द्वारा समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य बनाया जा सकता है। शासकीय नर्मदा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ ओएन चौबे ने सतत संपोषित विकास को समझाते हुए कहा कि जल उपभोग के लिए सजगता की आवश्यकता है। छोटे-छोटे व्यवहारिक उदाहरण देकर समझाया।
मुख्य वक्ता प्रोफेसर प्रमोद पाटिल ने कहा कि पर्यावरण एवं पारिस्थितिक तंत्र को समझाते हुए कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र को तीन भागों में विभाजित किया सकता है। बीते हुए कल की पारिस्थितिकी वर्तमान पारिस्थितिकी आने वाले कल उल्लेख किया एवं समझाया कि पारिस्थितिकी तंत्र का उपयोग किया जाना चाहिए न कि उसका दोहन। विशिष्ट वक्ता डॉ उमेश धुर्वे ने कहा कि संपोषित विकास एक बैंक में जमा धन के रूप में है जिसे पूरी तरह खर्च कर दिया जाए तो कुछ भी नहीं बचेगा। इसलिए निरंतर उसमें वापस कुछ जमा करते हुए जाना चाहिए, जिससे सतत संचय बना रहे। सेज विश्वविद्यालय भोपाल से डॉ रत्नाकर मिश्रा ने कहा कि जल संरक्षण जल प्रबंधन है। जिसमें संपूर्ण पारिस्थितिकी को संरक्षित किया जाना चाहिए। संचालन डॉ संतोष अहिरवार ने तथा आभार डॉ विनोद कृष्णा ने किया।