असुरों का अंत करने विष्णु को शिव ने दिया सुदर्शन चक्र

असुरों का अंत करने विष्णु को शिव ने दिया सुदर्शन चक्र

इटारसी। अवाम नगर में स्थित भगवान पशुपतिनाथ मंदिर परिसर में चल रही श्री शिव महापुराण के चतुर्थ दिवस की कथा को विस्तार देते हुए आचार्य पं. मधुसूदन शास्त्री ने कहा कि पृथ्वी पर जब-जब अत्याचार हुए हैं उनका अंत हुआ है। भारत में आतंकवादी जो देश को तोडऩे के मनसूबे पाल रहे हं,ै वह कभी पूरे नहीं होंगे। जिस तरह भगवान शंकर ने विष्णु भगवान को जगत की रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र दिया था और दानवों से त्रेताओं की रक्षा कराई थी। इस कलयुग में न तो अवतारी पुरूष है और ना ही साक्षात ईश्वर, परंतु राज सत्ता में बैठे हुए लोगों पर ईश्वर की बड़ी कृपा है कि भारत देश से आतंकवादियों को समाप्त करने के लिए कश्मीर से धारा 370 हटाई। भारत सरकार का यह कार्य सदैव याद रखा जाएगा।
आचार्य मधुसूदन शास्त्री ने कहा कि भगवान विष्णु के हर चित्र व मूर्ति में उन्हें सुदर्शन चक्र धारण किए दिखाया जाता है। यह सुदर्शन चक्र भगवान शंकर ने ही जगत कल्याण के लिए भगवान विष्णु को दिया था। इस संबंध में शिवमहापुराण के कोटिरुद्रसंहिता में एक कथा का उल्लेख है। जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़े तब सभी देवता श्रीहरि विष्णु के पास आए। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना की। वे हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे। प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प भगवान विष्णु शिव को चढ़ाते। तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया। शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला। तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और श्रीहरि के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान मांगा। तब भगवान शंकर ने विष्णु को अपना सुदर्शन चक्र दिया। विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार कर दिया। इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप से सदैव के लिए जुड़ गया। आचार्य मधुसूदन शास्त्री ने शिवमहापुराण के चतुर्थ दिवस भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र के अलावा लंका विजय के पश्चात भगवान श्रीराम की कथा का वर्णन किया। वहीं हनुमान जी के अवतार और जन्म की कथा को भी विस्तार से सुनाया।

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